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Arunima Bahadur

Inspirational

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Arunima Bahadur

Inspirational

दीप बन प्रज्वलित हो जाएं

दीप बन प्रज्वलित हो जाएं

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कुछ दुःखित हूँ,

बहुत व्यथित हूँ,

देख दुःख कुछ अपनो का,

आज दुःख से मैं ग्रसित हूँ।

सब अपने हैं,

जग अपना है,

फिर भेदभाव ये क्यो पनपा है।

कोई रोटी को मोहताज हैं,

कही छपन्न भोग का थाल है।

कही अन्न का एंक दाना नही,

कही अन्न का सड़ता भंडार है।

कोई भूखे पेट सो जाता है,

कोई अन्न कूड़े में फेक आता है।

कही इन सर्द हवाओं में,

तन ढकने को वस्त्र नही,

कोई चंद लम्हो में,

नया वस्त्र ले आता है।

किसी के फटे वस्त्रो पर

पैबंद नही,

कोई लाखों के

वस्त्र हीरों से सजाता हैं।

कितनी देखे असमानता

शब्द कम पड़ जायेंगे,

पर असमानता एंं न मिटेंगी।

कब तक इन दुखो को

माँ भारती सहेगी।

क्यूँ न आज कुछ कदम बढायें,

दुखियो का कुछ कष्ट मिटाएंँ।

कुछ आवश्कताओं को आज घटाएंं,

कुछ दुखियो के घर सजाएं।

कुछ अंश अपना भी लगाएं,

इस दीवाली हर घर सजाएं।

हर भेदभाव अब मिटाये,

कुछ दीपक दुखियो के घर जलाएं।

खुद एंक दीपक बन जाये,

प्रज्वलित हो वसुधा जगमगाये।।



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