एक सोच
एक सोच
कल जो बेटे ने ,आकर पूछा
वसुदेव कूटुंबकम का मतलब क्या है ?
सोचता ही रह गया था मैं
ना समझा पाया कुछ भी उसे'!
दंगे भड़क रहे ,कही पर
जात- पात की आँधी है ।
अमीरी -ग़रीबी की फ़र्क़ कही ,
कहीं,अपने - पराए की राजनीति है।
भाई- भाई के खून का प्यासा
पैसों का बोलबाला है।
मैं -मैं के अभिमान के बीच
बलिदान का मुँह ही काला है।
घर में अपनों की खबर नहीं
दुनिया का हाल क्या रख पाएँगे ।
वसुदेव कुटुम्बकम के सही मायने
क्या ,अपने बच्चों को बतला पाएँगें?
जहाँ दिल से दिल मिलते थे ,सबके
आज नज़रें चुराया करते हैं।
मिलकर , हाल पूछना तो दूर
वट्स अप पर ,लास्ट सीन का
स्टेट्स भी छुपाया करते है।
सरहद पर खींची लाइनों से
दिलों के बँटवारें से हो रहे,
जब हाथ ही ना मिला पाए सब से,
कैसे, गले भी मिलने की सोचें?
इन्हीं ख़यालों में गुम सा जब
देखा मैंने उसकी तरफ़
आश्चर्य से उसने बोला,पापा
क्या भूल गये हो,इसका मतलब?
सच ही कहा था ,उसने शायद
हम सब भूल से गए हैं।
स्वार्थ खुद पर हावी है इतना
वसुदेव कूटुंबकम के मायने ही बदल गए हैं!