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Neerja Sharma

Abstract

4.6  

Neerja Sharma

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ईर्ष्या

ईर्ष्या

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मध्ययम वर्गीय परिवार में जन्म

पिता शिक्षक,माँ गृहिणी

बड़ा भाई ,हम दो बहने

पर किसी से ईर्ष्या नहीं।


न किसी से जलन, न ईर्ष्या

न लड़ाई न झगड़ा, सब शान्त

यह शब्द नहीं जाना जिंदगीभर

सामने वाले की अच्छाई को माना।


अब इसे संस्कार कहूँ या कर्म

पर जीवन रहा सदा ही सत्

ज्यादा की कभी चाह नहीं 

कम कभी किसी से मिला नहीं।


जब सब ठीक-ठाक

तो काहे की ईर्ष्या?

किससे ईर्ष्या?

क्यों ईर्ष्या?


सोच अगर अच्छी हो 

तो ईर्ष्या भी बुरी नहीं 

प्रतिस्पर्धा का बात हो 

तो ईर्ष्या भी बुरी नहीं।


करनी हो ईर्ष्या अगर

तो बेहतर से बेहतर बन

और बढ़िया प्रदर्शन कर

जीवन में आगे-आगे बढ़।


ये तो मन का है भाव 

स्वतः ही उपज आता 

अगर भावना है कुंठित 

जीवन नर्क हो जाता।


दूसरे की समृद्धि देखकर

क्यों अपना खून जलाता 

अगर ईर्ष्या से मिल जाता 

तो हरेक अमीर बन जाता।


द्वेष ,ईर्ष्या और जलन का 

दिल से पूर्ण परित्याग कर

प्यार महोब्बत गले लगाकर

दुनिया में अपना नाम कर।


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