तरंग मज मनातल्या
तरंग मज मनातल्या
*या आल्या त्या गेल्या
तरंग मज मनातल्या
जागवून जाती किनार
कधी नव्या कधी जुन्या*
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*अशांत करती विचार
डावडोलून कोलाहल
उसळतात भावना मग
न ऐकण्याच्या धुंतीत*
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*आवेश असं वरवर
वाऱ्या बरोबर जातं
चित्त काळाशार मग
बुडा लगत शांत दिसतं*
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*या जगण्याच्या चाळीतं
लुडबुडलं काहीतरी
तरंग मज मनातलं
थोडया पुरतं वळवळतं*
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*मग नकळत भोंवर येतं
मज गमावण्यास काही
चढ उताऱ्याची वाट ही
जणू खेळ खेळवती मज*
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*दिसागणिक दिस भरवती
त्या मज बाद करण्यास
पण मन असं रंग रंगीला
प्रेमानं रंगवून जातं खेळ सारं*
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*तरंग त्या तरंग शेवटी
जीवाचं जिणं वळवती
विषय विषयांचे खडे तयात
का? कुणी? फेकतं राहतं*
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*खेळ मनी तरंगांचा काही निराळा
शब्दाचं सागर महासागर इथं
तयात चालती तणांच्या बोटी
कधी स्थिर तर कधी हेलकावतं*
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