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Prakash Chavhan

Tragedy Others

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Prakash Chavhan

Tragedy Others

तरंग मज मनातल्या

तरंग मज मनातल्या

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*या आल्या त्या गेल्या 

तरंग मज मनातल्या 

जागवून जाती किनार 

कधी नव्या कधी जुन्या*

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*अशांत करती विचार 

डावडोलून कोलाहल

उसळतात भावना मग 

न ऐकण्याच्या धुंतीत*

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*आवेश असं वरवर 

वाऱ्या बरोबर जातं 

 चित्त काळाशार मग 

बुडा लगत शांत दिसतं*

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*या जगण्याच्या चाळीतं 

लुडबुडलं काहीतरी 

तरंग मज मनातलं 

थोडया पुरतं वळवळतं*

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*मग नकळत भोंवर येतं 

मज गमावण्यास काही 

चढ उताऱ्याची वाट ही

जणू खेळ खेळवती मज*

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*दिसागणिक दिस भरवती

त्या मज बाद करण्यास 

पण मन असं रंग रंगीला 

प्रेमानं रंगवून जातं खेळ सारं*

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*तरंग त्या तरंग शेवटी 

जीवाचं जिणं वळवती 

विषय विषयांचे खडे तयात 

का? कुणी? फेकतं राहतं*

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*खेळ मनी तरंगांचा काही निराळा 

शब्दाचं सागर महासागर इथं 

तयात चालती तणांच्या बोटी 

कधी स्थिर तर कधी हेलकावतं*

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