Rajesh Chandrani Madanlal Jain

Inspirational

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Rajesh Chandrani Madanlal Jain

Inspirational

यशस्वी (8) ...

यशस्वी (8) ...

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इधर, मुझसे राय ले लेने के बाद, यशस्वी ने माँ से चर्चा करने का निर्णय किया। यशस्वी, माँ से यह जानने को इच्छुक थी कि किन कारण और आशाओं को लेकर माँ, अपने दूसरे विवाह पर विचार कर रही थी। एक रात जब बहने पढ़ रहीं थी तब,

यशस्वी ने अलग कमरे में माँ से पूछा - माँ, तुम 43 की उम्र में, क्यों दूसरा विवाह करना चाहती हो?

माँ ने कहा - अगर, यह प्रस्ताव घर बैठे न आया होता तो मैं शादी की नहीं सोच रही थी। जब, वह पूछने आये तो मैं, उनके दो बेटों के जो अभी छोटे हैं, के लालन पालन में उनका हाथ बँटाना चाहती हूँ। तुम नहीं जानती कि तुम्हारे पापा ने, बेटे के लिए, मेरी इच्छा के विरुध्द दो कन्या भ्रूण गिरवाये थे। मैं, इसे अपना किया पाप मानती हूँ। दो बेटों की, ऐसी दूसरी माँ बनने की जिम्मेदारी निभा कर, मैं इसका प्रायश्चित करना चाहती हूँ। 

अपनी चुप रहने वाली माँ को, साधारण महिला मानने वाली यशस्वी, उनसे यह तार्किक (Logical) उत्तर सुनकर चकित हुई। यशस्वी के लिए यह सुखद अनुभूति थी कि साधारण दिखती, कोई महिला भी ऐसी समझ रखती हो सकती है।

माँ से उसने फिर पूछा - माँ, अपनी संस्कृति में विवाह से जुड़ा रिश्ता तो, सात जन्मों का होता है?

माँ ने उल्टा प्रश्न किया - यशस्वी तुम यह सोच रही हो, मैं दूसरा विवाह कर, यह मान्यता झुठला रही हूँ?

यशस्वी - हूँ! (बस कह सकी)

तब माँ ने कहा - अगर ईश्वर ने ऐसा बनाया होता तो, दूसरे विवाह का विचार किसी के दिमाग में नहीं आता। मैंने तो साठ वर्ष के विधुर को भी दूसरी शादी करते देखा है। ये रीतियाँ मनुष्य ने बनाई हैं। जिसमें वर्जनायें, नारी के लिए ही तय कर रखीं हैं। अगर रिश्ता सात जन्म वाला होता तो, कोई विधुर शादी नहीं करता। 

इस उत्तर से यशस्वी को चर्चा में रस आने लगा, उसने फिर पूछा - माँ अपने विवाह से आप, रिश्ता सात जन्म का नहीं होता, ऐसा सिद्ध करना चाहती हो?

माँ ने उत्तर दिया - स्त्री तो वैसे त्याग, सहनशीलता और अन्य कठिनतम कार्य करती है, जैसे पुरुष नहीं कर पाते हैं। मगर नारी के किये से कुछ सिध्द हुआ, कोई मानता कहाँ हैं। मैं शादी करके उन परित्यक्ता, तलाकशुदा या विधवा स्त्री को पुनर्विवाह का साहस एवं उदाहरण देने का पुनीत कार्य करना चाहती हूँ, जो पुनर्विवाह करना चाहती हैं और जिन्हें योग्य पुरुष का प्रस्ताव आया हो।

यशस्वी ने तब कहा - माँ, मैं (तथा बहनें) आपके साथ तो उस घर में जा न सकेंगी!

माँ ने कहा - अगर तुम छोटी होतीं तो मैं शादी नहीं करती। लेकिन तुमने जिस खूबी से एक बेटे, जैसा कारनामा करके दिखाया है, इस परिवार के लिए यथोचित धन अर्जन करके दिखलाया है, इसे समझते हुए ही मैं, शादी की सोच पा रही हूँ। तुम बेटियों को मैं, साथ ले जाने की सोच भी नहीं रही हूँ। 18 एवं 16 वर्षीया अपनी बहनों की उनके बड़े होते तक (अगले) कुछ वर्षों, तुम जिम्मेदारी उठा सकोगी, मुझे यह विश्वास है। 

यशस्वी ने फिर एक तर्क रखा - लेकिन चाचा के बच्चे छोटे हैं, वह तो शादी कर रहे हैं?

माँ ने कहा तुम समझ सकती हो इसलिए यह उत्तर देती हूँ कि - मैंने सौतेले बेटों के साथ, किसी माँ को ऐसा करते नहीं सुना, मगर सौतेली बेटियों के साथ, बाप को व्यभिचार करते सुना है। आशय यह कि तुम्हें, उस घर में चाचा से ख़तरा हो सकता है लेकिन मुझसे उनके पुत्रों को ऐसा कोई खतरा नहीं होगा। 

यशस्वी ने तब कहा - माँ, शायद मुझे आप से नहीं पूछना चाहिए तो भी पूछना चाहती हूँ कि क्या, इस शादी से आपकी, अपनी शारीरिक जरूरतों की पूर्ति भी एक कारण है?

माँ ने उत्तर दिया - पास पड़ोस, रिश्तेदार एवं जानने वाले, मेरे शादी किये जाने पर रस ले लेकर बातें करेंगे। इस उम्र में शादी करने की, मुझे क्या जरूरत है, कहते हुए मुझे धिक्कारेंगे। मगर यदि, मैं शादी न करूँ तो, कई पुरुष मुझसे अवैध संबंधों के लिए हिकमत करेंगे। वे, इसे मेरी जरूरत सिद्ध करते हुए, अपने मंतव्य पूरे करने चाहेंगे। इस कटु सच को ठीक प्रकार से कोई, भुक्तभोगी महिला ही जानती हैं। औरों को क्या है, उन्हें तो मुहँ मिला है जिसे (मुहँ को), कुछ भी कह सकने का अधिकार होता है।   

फिर, यशस्वी को पूछने के लिए कुछ नहीं सूझा था। अगले कुछ दिनों में यशस्वी ने तैयारियाँ की थीं। 

फिर माँ से अपनी हुई चर्चा अक्षरशः लिखते हुए यशस्वी ने, मुझे, कुछ फोटो भेजे थे। जिनसे यह पता चला था कि उसने माँ की शादी, एक सादे समारोह में संपन्न करवा दी थी।

जिसे पढ़-देख कर, मैं सोच रहा था कि नारी और पुरुषों को लेकर 'समाज विसंगतियों' को, जिस खूबी से यशस्वी की माँ ने कहा है, अगर किसी चयन प्रक्रिया में ऐसा इंटरव्यू, कोई अभ्यर्थी (कैन्डिडेट) देता तो उसे मैं, 100% अंक देता ..



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