ये तेरा घर, ये मेरा घर

ये तेरा घर, ये मेरा घर

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मानुष ये मेरे ब्लाउज का हुक लगा दो न प्लीज ! कियारा के स्कूल में मीटिंग है। मैं वैसे ही लेट हो रही हूँ ।मानवी ने बड़े प्यार से शरारती अंदाज़ में मानुष को आवाज़ दी पर आज मानुष की बात मानवी को अंदर तक आहत कर गयी। मानुष को पता नहीं किस बात पर इतनी झुँझलाट आ रही थी कि उसने वही बैठे-बैठे चिल्लाते हुए कहा "ऐसे कपड़े ही क्यों पहनती हो, जिसमें दूसरे की मदद लेनी पड़े।" मानवी की आँखों से टप-टप आँसू बहने लगे। उसने जल्दी से एक सूट निकला और तैयार हो गयी।

रास्ते में मानवी यही सोचती रही की मानुष कितना बदल गया है। शादी से पहले हर समय उसके साथ रहने के बहाने ढूँढता रहता था और शादी के बाद भी कितने प्यार से ज़बरदस्ती मानवी को बोला था की "तुम अपने लिए बैकलैस ब्लाउज़ बनवाया करो, जिसमें सिर्फ एक-दो हुक हों ताकि जब तुम मेरी मदद माँगो तो मैं मैडम की खिदमत में हाज़िर हो सकूँ। अब मानुष कितना बदल गया है, हर बात में गुस्सा करना। कभी, हाथ में जो भी सामान हो उसे फेंक कर मारना। कल रात को सब्ज़ी में ज़रा सा नमक कम रहने की वजह से गुस्से में खाने की भरी हुई प्लेट ही फेंक दी ।दोनों बच्चे कितना डर गए थे ।सहम कर मेरे पीछे आ कर खड़े हो गए थे। मानवी ने सोचा "मैं कितना मना करती थी मानुष को, फ़ालतू खर्चे करने को पर उसे तो एशो आराम की ज़िन्दगी इतनी पसंद थी की लोन ले लेकर बड़ी सी गाड़ी, बड़ा सा घर, विदेश ट्रिप और भी न जाने क्या-क्या। कभी अपने ऊपर रोक ही नहीं लगायी और हर थोड़े दिन में जॉब बदलना की मैं एक कंपनी में ज़्यादा दिन काम नहीं कर सकता। अच्छी खासी लगी लगायी जॉब, उस नयी कंपनी के चक्कर में और वो कंपनी कुछ ही दिनों में बंद हो गयी और अब नौकरी है नहीं, लोन देने वाले अपना पैसा लेने के लिए सर पर खड़े रहते हैं। तो सारा गुस्सा मेरे ऊपर निकाल देता है ।

मुझे भी कोई अच्छी नौकरी तो मिल नहीं पा रही। जितनी सैलरी मिलेगी, उतनी तो आने-जाने में, बच्चों को डे बोर्डिंग में डालने में, उनकी ट्यूशियन्स लगाने में ही निकल जायेगी। मानवी यही सब सोचती रही न जाने कब स्कूल आ गया। उसने बुझे मन से मीटिंग अटेंड की और घर आ गयी। आज उसने सोचा चलो पिछले कुछ समय से मानुष इतना परेशान है, आज मैं सारा खाना उसकी पसंद का बनाती हूँ। उसने अपने दोनों बच्चों चार साल की कियारा और छः साल के आरव को दूसरे कमरे में जल्दी ही सुला दिया। बहुत अच्छे से तैयार हुई। घर की सभी लाइटें बंद कर दी और थोड़ी सी मोमबत्तियाँ जला दी। तभी बैल बजी मानवी ने मुस्कुराते हुए दरवाज़ा खोला। मानुष भी आज बड़े मूड में लग रहा था। उसने बड़े प्यार से मानवी को गोद में उठा लिया और सोफे पर लिटा दिया और बोला "मैं सबके लिए खाना और आइसक्रीम लाया हूँ, जल्दी से बच्चों को बुलाओ।" 


मानवी ने कहा "आज मैं तुम में खोना चाहती हूँ, इसलिए मैंने बच्चों को जल्दी सुला दिया।" मानुष कुछ बड़बड़ाता हुआ बच्चों को उठा कर बाहर ले आया और अपने हाथों से सब को खाना खिलाने लगा। उसने मानवी के भी मना करते-करते उसे भी खाना खिलाया और उन सबका मन न होने पर भी उन्हें आइसक्रीम खिलाई। थोड़ी देर बाद बच्चों के मुंह से खून आने लगा और मानवी को भी सांस लेने में मुश्किल होने लगी उसने मानुष से बस इतना पूछा "तुमने हमें खाने में..?" मानुष उसे बाहों में सम्भालते हुए बोला "मुझे माफ़ कर दो मानवी, कल बैंक वालों ने घर सील करने को बोला है और जिन दोस्तों से पैसा लेकर मैं बैंक का पैसा दे रहा था, उन्होंने आज तुम सबको मारने की धमकी दी थी। जिससे भी मदद मांगी उसने ही साफ़ मन कर दिया। मेरे पास कोई और रास्ता नहीं था। मैंने सोचा उनके हाथों मरने से दुनिया भर में अपनी इज़्ज़त उछलवाने से अच्छा है, मैं ही सबकी जीवन लीला सम्पाप्त कर देता हूँ। तुम यह मत सोचना की मैंने सिर्फ तुम लोगों को ही मार दिया। मैं तो तुम सब के बिना दो पल भी नहीं जी सकता।" मानवी ने कहा "तुम्हारी झूठी इज़्ज़त को बचाने के लिए तुमने मेरे बच्चों की ज़िन्दगी शुरू होने से पहले ही खत्म कर दी।" बस मानवी इतना ही बोल पाई थी की उसने भी दम तोड़ दिया। बच्चों की जीवन लीला पहले ही समाप्त हो चुकी थी। मानुष ने एक लम्बा सा पत्र लिखा जिसमें अपनी और अपने बच्चों कि मौत का ज़िम्मेदार उसने खुद को ठहराया और खुद भी वो पंखे से लटक गया। अगले दिन जब मेड के बहुत देर तक बैल बजाने पर भी दरवाज़ा नहीं खोला गया तो पुलिस की मदद से दरवाज़ा तोड़ा गया और रोज़ की तरह यह अखबार की एक खबर बन कर रह गया की एक हँसता खेलता परिवार समाप्त ।


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