यादों की पोटली
यादों की पोटली
"हमारी यादों में मिठास वो भरते हैं जो हमारे दिल के बेहद करीब होते हैं"माँ के कपड़ों की आलमारी के सबसे नीचे वाले आले में से उनके पेटीकोट तलाशते हुए अंतरा के हाथ में उनकी क्रीम कलर की साड़ी ब्लाउज और पेटीकोट एक साथ तहाए हुए मिल गए तो अंतरा उन्हें खींचकर निकालने लगी। तभी माँ की पुरानी डायरी से अंशु भैया की फोटो गिर गई। साथ में माँ ने उस पन्ने में भैया को ना जाने कितने तो आशीर्वाद लिखे थे। उस पन्ने के अंत में लिखा था,
"बच्चे बड़े हो जाते हैं पर माँ कभी बड़ी नहीं होती। वह तो हमेशा अपने बच्चे में बचपन की किलकारी और मासूमियत ढूंढती है। खिलौने बच्चों के लिए माँ की अनुपस्थिति में पहला विकल्प होते हैं,उसके बाद तो एक एक करके बच्चे की ज़िन्दगी में कई चीज़ेँ जुड़ती जाती हैं। कई लोग जुड़ते जाते हैं... कुछ विकल्प बनकर तो कुछ प्राथमिकता बनकर। पर माँ की ज़िन्दगी में उसके बच्चे हमेशा उसकी प्राथमिकता होते हैं और उसका कोई विकल्प कभी नहीं, कहीं नहीं होता। गुड्डो बड़ी हो गई पर माँ छोटी रह गई।
उसके बाद कलम की कुछ रोशनाई फ़ैल गई थी शायद या फिर आँसुओं से धुंधली पड़ गईं थीं आगे की तहरीरें।पढ़कर अंतरा एकदम अचंभित रह गई थी। माँ गुड्डो दीदी यानि आकांक्षा दीदी को विगत वर्षों में इतना याद करती रहीं हैं और बताया भी नहीं और ना ही किसीको अपने हृदय के इस अगाध दुख का पता लगने दिया। आज अगर वह माँ की साड़ी लेने के लिए उनकी आलमारी ना खोलती तो शायद माँ के मन की इतनी गहन व्यथा के बारे में अंतरा को कभी नहीं पता चल पाता। पर क्या दिद्दा भी माँ को इतना ही याद करती होंगी? क्या अजमेर के पुश्तैनी नवाब खानदान में शानो शौकत के बीच दिद्दा को कभी अपना बचपन और वयःसंधि तक का समय याद होगा? यह सब तो दिद्दा ही बताएंगी।सोचते सोचते अंतरा अम्मा के कपड़े लेकर अस्पताल की ओर चल दी।