यादगार होली
यादगार होली
"रेणु यहां क्या कर रही हो तुम। यहाँ अकेली क्यों बैठी हो ?"
"क्या करूँ सोम। कल होली है शादी के बाद मेरी पहली होली है। जानते हो न हमारे यहां पहली होली मायके में मनाते हैं। लेकिन मेरा तो मायका ही छूट गया। आखिर क्या गलती थी मेंरी। बस इतना ही न कि मैंने अपने माता पिता की इच्छा के विरुद्ध जाकर तुम्हें अपना जीवनसाथी चुना था। 2 साल कोशिश की न हमने उन्हें मनाने की। क्या मुझे इतना भी हक़ नहीं था कि हम अपनी मर्जी से अपना लाइफपार्टनर चुन सकूं। इसकी इतनी बड़ी सजा दी कि हमसे सारे रिश्ते ही तोड़ लिए ?"
"तुम्हें पछतावा हो रहा है अपने फैसले पर ?"
"बिल्कुल नहीं सोम। लेकिन मायका तो मायका होता है न। कम से कम त्यौहार पर बहुत याद आती है सबकी। "नम आंखों से रेणु ने कहा।
सुबह रेणु की सास ने कहा कि हमसब बाहर घूमने जा रहे हैं। रेणु का मन तो नहीं था लेकिन सास ससुर का मान रखने के लिए वो तैयार हो गई। गाड़ी जब उसके मायके की गलियों की तरफ मुड़ी तो उसने कहा,हम गलत जगह जा रहे हैं जिसपर सोम ने मुस्कुराते हुए कहा हम सही जगह जा रहे हैं। मायके पहुंच कर देखा तो सब उसका इंतजार कर रहे थे। पापा थोड़े नाराज लग रहे थे लेकिन बाकी सब खुश थे। उसे असमंजस में देखकर उसकी मम्मी ने कहा,सोम और उसके परिवारवालों का फोन आया था उन्होंने हमसे काफी देर बात की और एक नई शुरुआत की पेशकश की। हमें भी महसूस हुआ जब हमारी बेटी के ससुराल वाले उसकी खुशी के लिए झुक सकते हैं तो हम क्यों अपने झूठे अहम में रहें।
यह सुनकर रेणु बहुत खुश हुई और सबने मिलजुलकर होली खेलनी शुरू की। लेकिन उसने देखा पापा नाराज हैं अभी तक। सोम और रेणु ने उनके पास जाकर कान पकडते हुए सॉरी पापा कहा। रेणु को रोते हुए देखकर उनका दिल पिघल गया और उन्होंने दोनों को गले कग लिया। फिर तो जमकर होली खेली गई। यह होली सभी के। जीवन में खुशियों के रंग बिखेर गई और यादगार बन गई।