औकात मेरी तुम्हारी
औकात मेरी तुम्हारी
राधिका की शादी जबसे सोमेश से हुई थी रोज अपमान का घूंट पीना जैसे उसकी किस्मत ही बन गई थी। जब चाहो बेइज्जत कर देना ,हाथ उठा देना जैसे सोमेश की आदत बन गई थी।जब राधिका ने इस बारे में सास को बताना चाहा तो उन्होंने भी यही कहा इसकी यो आदत ही है गुस्से में पता नहीं चलता क्या कर रहा है और संस्कारों से बंधी राधिका चुप रह जाती थी।
होली वाले दिन भांग पीने से रोकने पर सोमेश ने मेहमानों के सामने उसे थप्पड़ मार दिया।
रंग लगे हाथों की छाप देखकर बेशर्मी से हंसते हुए सोमेश ने कहा, अच्छा है अब कुछ समय तक निशान रहेगा गालों पर तो औकात याद रहेगी अपनी।
राधिका ने जवाब दिया,औकात तो मैं भी याद दिला सकती हूं तुम्हारी लेकिन अगर मैं भी तुम्हारे जैसी बन गई तो मेरे और तुम्हारे संस्कारों में फर्क क्या रह जाएगा।
रंग के निशान तो जल्दी साफ हो जाएंगे लेकिन जो तमाचा आज सोमेश के संस्कारों पर पड़ा था उसके निशान लंबे समय तक सोमेश के दिल पर रहेंगे।
