होली अपनेपन वाली
होली अपनेपन वाली
"रेवा, तुमने पैकिंग कर ली न। हम कल ही जा रहे हैं गांव। इस बार हम होली पूरे परिवार के साथ मनाएंगे। "
"लेकिन किशोर तुम्हें तो पता ही है न मैं कभी गांव में नहीं रही। सिर्फ दो दिन गई थी शादी के बाद। साड़ी पहनो, पल्लू रखो मुझसे नहीं होता ये सब। उस पर से इतना काम। मैं नहीं जाऊंगी तुमको जाना है तो चले जाओ। "
"अरे रेवा,बस दो दिन की बात है तुम्हें बहुत अच्छा लगेगा। मालूम है बचपन में हम कितने मजे करते थे। गुझिया,दही भल्ले,रंग,पिचकारी। वाह मजा आ जाता था। "
किशोर के आंखों की चमक देखकर रेवा गांव जाने के लिए तैयार हो जाती है। वहां पहुंचकर सबका अपनापन देखकर उसे बहुत अच्छा लगता है। होली वाले दिन देवर ननद ने चुपके से उसके गालों पर गुलाल लगा दिया। पहले तो रेवा गुस्सा हुई लेकिन जब किशोर ने कहा, चलो हम रंग के बदले रंग लगाकर बदला लेते हैं फिर तो होली की ऐसी मस्ती चढ़ी सबपर कि रेवा को रोकना मुश्किल हो गया। बहुत मजे किए सबने। गांव से वापस आते वक्त रेवा ने कहा अबसे सारे त्यौहार हम यहीं मनाएंगे।
