व्यावसायिक मुस्कान...
व्यावसायिक मुस्कान...
कुछ लोग मैं जानती हूँ अपने आसपड़ोस में.....
वह न जाने कितनी सारी बातें करते है....
सिर्फ़ बातें.....
पैसों की....
अमीरी की....
बिज़नेस की.....
अक्सर उनकी बड़े बनने की बातें सुनती रहती हुँ....
मेरा मन ख़ुशी से भर जाता है....
वह उँचे कुलाँचे भरने लगता है....
मुझे उस लड़के के माँ बाबा पर गर्व होने लगता है.... मुझे लगता है कितने खुश होंगे इसके माँ बाबा अपने बेटे की तरक्की से.....
एक बार मुझे भी मौका मिलता है उनके घर जाने का....
इस ख्याल से मैं फूली नहीं समाती हूँ.... आज मुझे मौका मिलेगा उस लड़के के ख्वाबों को जानने का....
उसे समझने का भी....
पहली बार खाली हाथ उनके घर नहीं जा सकते न? तैयार होकर और हाथों में सूंदर सा फूलों का बूके लेकर मैं जाती हूँ उनके घर.... मैं डोर बेल बजाती हूँ.... जानकर की नौकरों की इतनी फौज होने के बावजूद दरवाज़ा खुलने में देर देखकर मै जरा अचंभित हो जाती हूँ। आख़िरकार दरवाजा खुल जाता है... मुझे अंदर आने को भी कहा गया है....
नफासत से सजे ड्रॉइंग रूम में सोफ़े में बैठते हुए घर के टेन्स माहौल को मैं भाँप जाती हूँ....
घर का माहौल कुछ हल्का करने के लिए मैं बात करने की कोशिश करने लगती हूँ हाथ में पकडे बुके को देने से शायद टेन्स माहौल हल्का हो जाए यह सोचकर मैं बेटे के बारे में पूछती हूँ... आखिर बुके तो मैं उसके लिए ही तो लेकर आयी थी.... बेटा आया... मुझे देख कर झट से उसने अपने चेहरे पर एक हँसी चिपका ली ... मैं अब तक जो माँ से मुखातिब थी अपने ऑब्जरवेशन से एक पल में जान गयी थी की बेटे जैसी विलक्षण प्रतिभा उस सीधी सादी माँ में न के बराबर थी....
मैंने मुस्कुराते हुए बेटे को बुके दिया... 'इसकी क्या ज़रूरत थी' कहते हुए बेटे ने व्यावसायिक मुस्कराहट से वह बुके लिया .... उसी मुस्कान से बेटा मेरे से मुखातिब होकर बात करने लगा। हमारी बातचीत आगे बढ़ने लगी। क्योंकि मेरे पास बात करने के लिए बहुत सारी बातें थी...
बेटा बिज़नेस प्लान, बैंक बैलेंस और भी न जाने क्या क्या बोलने लगा। लगा की उसके लिए बस पैसा और अमीर होना ही जिंदगी का एकमेव लक्ष्य है।
मेरे जैसे अनुभवी व्यक्ति को चीज़ें शायद जल्दी ही समझ आ जाती है।माँ और बाबा बस हमारी बातें सुन भर रहे थे।कौन माँ बाबा अपने बच्चों की सफलता से खुश नहीं होते?लेकिन यहाँ उनके निगाहों में बेरुखी तो नही थी बल्कि अपनापन या खुशी भी नुमायां नही हो रही थी....
बेटे को शायद अब तक माँ बाबा की बेरुखी का ख़याल हो आया... वह मुझे शिकायती लहज़े में कहने लगा, "कल मैंने इनके लिए बिरयानी मंगवाई थी ऑनलाइन.. बेहद महँगे हॉटेल से..…लेकिन न जाने क्यों माहौल अचानक गहमागहमी का हो गया और फिर माँ बाबा ने उस बिरयानी को खाने से ही मना कर दिया था।" एक पल रुक कर वह फिर आगे कहने लगा, "मैंने भी गुस्से में कह दिया की अगर नहीं खाओगे तो मै पूरी बिरयानी गली के कुत्तों को खिलाऊँगा।" मैं चौंक कर माँ बाबा की तरफ़ देखने लगी।
अनुभवी माँ बाबा क्योंकि व्यवहार जानते थे...वे खामोश रहे.... वातावरण में तल्ख़ी घुलने लगी....न जाने क्यों माहौल में एक अजीब सी ख़ामोशी छा गयी... मैंने हँसते हुए कहा, "आपका बेटा बड़ा दयालु है। आज तक मैंने किसी व्यक्ति को गली के कुत्तों को बिरयानी खिलाते हुए नहीं सुना है।"
फिर उठते हुए मैंने कहा, "चलती हूँ ..." मुझे वहाँ ठहरना अब बेवज़ह लगने लगा।मैं घर लौट आयी...
