वट सावित्री कथा
वट सावित्री कथा
हमारी सनातन संस्कृति कितनी महान है।प्राचीन काल में ऋषि मुनि यह जानते थे कि प्रकृति ईश्वर का वरदान है।प्रकृति सुरक्षित रहेगी तब मनुष्य का जीवन सुरक्षित रहेगा इसलिए उन्होंने वृक्षों को पूजनीय बताया।वट वृक्ष में भी माता सावित्री का वास होता है, जिनके आशीर्वाद से अखण्ड सौभाग्य की प्राप्ति होती है।
इस बार वट सावित्री व्रत 30 मई को मनाया जायेगा।सुहागन स्त्रियों के लिये यह यह अति श्रेष्ठ उपवास माना गया है।
सौभाग्यवती स्त्रियाँ प्रात:से उपवास रहें और पूजन की तैयारी करें।पूजन सामग्री में सौभाग्य का सामान रखें।
नैवेद्य में चना,भीगी चने की दाल ,नारियल ,मिष्ठान्न आदि रखें।
108 परिक्रमा के पश्चात सुहागन स्त्रियाँ वटवृक्ष के नीचे सत्यवान सावित्री की कथा का श्रवण करें।
सावित्री मद्रदेश के राजा अश्वपति की बेटी थी जब वह विवाह के योग की हुई तो राजा द्युमत्सेन के पुत्र सत्यवान से उसका विवाह हो गया ।नारद जी को जब पता चला तब उन्होंने बतलाया कि सत्यवान अल्पायु और 1 वर्ष बाद उसकी मृत्यु हो जाएगी ।
सावित्री पतिव्रता स्त्री थी सावित्री ने मृत्यु तिथि के 3 दिन पूर्व से ही व्रत करना प्रारम्भ कर दिया और जब सत्यवान लकड़ी काटने जंगल में गया तो उनके पास यमराज आये और सत्यवान की जीवात्मा हरण करके ले गए ।
सावित्री ने व्याकुल होकर उनसे पूछा "हे देव! आप कौन हैं ?"
उस पुरुष ने उत्तर दिया -हे देवी मैं यम हूँ और आज तुम्हारे पति सत्यवान की आयु क्षीण हो गई है, अतः मैं उसे बांधकर ले जा रहा हूं ।
यह सुनकर सावित्री उनके पीछे पीछे चलने लगीं यमराज ने बहुत मना किया ।
सावित्री के पतिव्रत धर्मनिष्ठा से प्रसन्न होकर उन्होंने उसे उससे वर मांगने के लिए कहा ।
पहले वर में सावित्री ने सास ससुर के लिए दृष्टि का वरदान मांगा ।दूसरे वर में उनका खोया राज्य वापस मांगी फिर उसने कहा यदि आप मुझ पर प्रसन्न है तो मुझे सौ पुत्र प्राप्त करने की कामना है।यमराज ने प्रसन्न होकर सभी वरदान दे दिए ।
सावित्री बोली मेरे स्वामी के प्राण आप लेकर जा रहे हैं उनके बिना मुझे 100 पुत्र कैसे प्राप्त होंगे आपका वचन मिथ्या हो जाएगा ।
यह सुनकर यमराज ने सावित्री के पति की आत्मा को मुक्त कर दिया ।सत्यवान पुनर्जीवित हो गए ।
उनके बूढ़े माता पिता को दृष्टि प्राप्त हो गयी।उनका खोया हुआ राज-पाठ वापस मिल गया।
उसी समय से यह सावित्री पूजन व्रत विधान चला आ रहा है। सावित्री माता अपने अखंड पतिव्रत धर्म के लिए सुहागन स्त्रियों के लिए सदैव पूजनीय हो गई "श्रद्धा और विश्वास की हमेशा जीत होती है।"
