मैं आपका वफादार हूँ
मैं आपका वफादार हूँ
एक थे सेठ रूपचंद। महासमुंद के बुधवारी बाजार में उनकी कपड़ों की एक दुकान थी। एक दिन वे दुकान बंद करके घर वापस लौट रहे थे ।एक कुतिया अपने बच्चों के साथ सड़क के किनारे बैठी थी, तभी एक तेज रफ्तार ट्रक उस कुतिया के साथ नन्हे पिल्लों को रौंदते हुये गुजर गयी। बस एक बच्चा जो पास में खेल रहा था , वह सुरक्षित बच गया। वह माँ के मृत शरीर को सूँघता हुआ करूण स्वर में चीत्कार करने लगा। सेठ जी ने इस दृश्य को देखा तो उनकी आत्मा सिहर गयी। वे उस नन्हे पिल्ले को घर ले आये ।पहले तो उनकी पत्नी रश्मि ने विरोध किया कि इसे कैसे रखेंगे, फिर उस नन्हे पिल्ले की कहानी सुनकर उसकी अंतरात्मा भी द्रवित हो गयी। वह दूध रोटी लेकर आ गयी ,उस नन्हे पिल्ले को पुचकार कर खिलाने का प्रयास करने लगी।
दूसरे दिन रश्मि ने कहा -हम इसे प्यार से मोती कहेंगे। मोती भी उन दोनों को पहचानने लगा। सेठ जी की प्रतीक्षा में वह द्वार पर बैठ जाता था। उनके आते ही पूँछ हिलाता हुआ स्वागत करता। थोड़े ही दिनों में वह बहुत सुंदर दिखने लगा। भूरा रंग और हर समय चौकन्नी आँखें। वह किसी भी अजनबी व्यक्ति को घर में नहीं घुसने देता था। भौंक भौंक कर प्राण कँपा देता था। रश्मि के पुचकारते ही वह शांत होकर बैठ जाता था।
सेठ जी की शादी को पंद्रह बरस हो गये थे। उनकी कोई औलाद नहीं थीं। मोती को वे अपना बेटा मानने लगे थे। छह माह के पश्चात रश्मि ने उन्हें गर्भवती होने की खुशखबरी सुनायी। रूपचंद तो खुशी से फूले नहीं समाये। वे बोले -मोती बेटा भी हमारे लिये लक्की बनकर आया है ।जैसे कोई देवदूत ही खुशियाँ लेकर आ गये हैं। मोती को पहले से ज्यादा वे प्यार करने लगे।
एक दिन उनके घर में नये मेहमान का जन्म हुआ। स्वस्थ गोलमटोल गौर वर्णी पुत्र को देखकर सेठ जी बहुत प्रसन्न हुये। बच्चा भी धीरे धीरे बड़ा होने लगा।बच्चे की बाल सुलभ चेष्टाओं को देखकर दोनों भाव विभोर हो जाते थे। उसे प्यार से वे मनु कहकर बुलाते थे। सेठ जी कहते- मनु और मोती ये मेरे दो अनमोल रतन हैं। मनु बाल खेलता तो मोती भी उसके साथ खेलने लगता। मोती बोल नहीं पाता था लेकिन मालिक के प्रति स्वामीभक्ति वह पूँछ हिला कर प्रकट कर देता था ।
सेठजी भी उसकी पीठ थपथपाकर शाबाशी दे देते थे और मोती की आँखों में कृतज्ञता का भाव चमकने लगता था।
एक दिन सेठजी को व्यापार के सिलसिले में पुलगांव ,दुर्ग जाना पड़ा। रात्रि में रश्मि और मनु खाना खाकर सो गये। मोती भी सीढ़ी के नीचे सोया हुआ था।करीब 2 बजे थोड़ी सी आहट हुई तो मोती के कान खड़े हो गये। उसने टोह ली ।चोर संख्या में पाँच थे। एक आदमी बाहर खड़ा हो गया। दूसरा घर के लान में खड़ा हो गया ।घर के अंदर तीन लोग घुस गये।
रश्मि उनकी आहट से जाग गयी और सामने नकाबपोशों को देखकर बहुत डर गयी। एक आदमी ने कहा -आलमारी की चाबी दो ,जो भी कीमती सामान है उसे हमारे हवाले करो नहीं तो तुम्हारे बच्चे को अभी ठिकाने लगाते है। वह बेचारी डर गयी। उसने कहा -तुम्हें जो लेना है ले लो लेकिन मेरे बच्वे को
कुछ नहीं होना चाहिये। नन्हा मनु जाग गया वह रोने लगा। दुष्टों ने उसका मुँह बाँध दिया। रश्मि को भी वे लोग कमरे के अंदर बंद कर भाग गये । उन लोगों के भागने के बाद रश्मि जोर जोर से आवाज लगाने लगी जिसे सुनकर पड़ोस के लोग जाग गये और घर में भीड़ लग गयी।
सेठ रूपचंद को रश्मि ने इस घटना के बारे में फोन से सूचित किया। दूसरे दिन सुबह रूपचंद घबराये हुये पहुँच गये। उन्होंने पुलिस थाने में रिपोर्ट दर्ज की।तहकीकात के लिये पुलिस फोर्स घर आयी। अचानक सेठजी का ध्यान मोती की ओर गया ।उन्होंने क्रोधित होकर उसे एक डंडा जमा दिया ।मोती तुमने उन चोरों को क्यों नहीं पकड़ा!! कायर कहीं का। मोती की आँख आँसुओं से डबडबा गयी। मानो वह कह रहा था, मैं कायर नहीं हूँ।
उसने इंस्पेक्टर विक्रम सिंह के पैरों में अपना पंजा रख दिया जैसे कुछ कह रहा हो ।उन्होंने कहा-शायद आपका डाग कुछ कह रहा है।
तभी मोती बाहर भागने लगा ।पुलिस वाले भी उसके पीछे दौड़े ।लगभग तीन चार किलोमीटर की दूरी पर एक तालाब के पास जाकर वह रुक गया। एक पेड़ के नीचे की जमीन थोड़ी सी नरम दिख रही थी। मोती वहीं पर रुक गया। मिट्टी खोदने का प्रयास करने लगा। इंस्पेक्टर ने सिपाहियों को मिट्टी हटाने का संकेत किया ।सबकी आँखें फटी की फटी रह गयी। बहुमूल्य सोने के आभूषण एक पोटली में रखे हुये थे। उसमें एक टूटी घड़ी भी थी जिसे देख कर सेठ जी को याद आया कि दो महीने पहले एक नौकर ऐसी घड़ी पहनकर उनकी दुकान में में आता था। उन्होंने इंस्पेक्टर को उस नौकर के बारे में बताया । सारी कड़ियाँ अब जुड़ने लगी और पुलिस वालों को भी बहुत से सुराग मिल गये। उन्होंने उस नौकर रतन को उसके घर से धर दबोचा।
उसने अपना अपराध कबूल कर लिया। बाकि चार साथी भी गिरफ्तार हो गये। केस चला और पाँचों को जेल की सजा हो गयी।
सुबह का समय था सेठजी लान में बैठकर चाय पी रहे थे। नन्हा मनु उनकी गोद में था। मोती उनके पाँव के पास बैठा था। सेठ जी ने उसकी पीठ थपथपायी- बेटा ,तेरी वजह से इतनी बड़ी चोरी का राज खुल गया और चोर जल्दी पकड़े गये।
रश्मि ने भी कहा-मुझे भी मोती पर विश्वास था इसने बड़ी सूझ बूझ के साथ खामोश रह कर उन चोरों का पीछा किया ।
मोती ने भी जीभ निकाल कर मानो अपनी सहमति जाहिर की मानो वह कह रहा था कि मैं आपका वफादार हूँ।
