सच्चा मित्र
सच्चा मित्र
देवव्रत जब बारहवीं कक्षा में था तब उसके पिताजी का देहांत हो गया था।
माँ ने कहा -"बेटा अब पिता की खेती किसानी तुझे ही सम्हालना है।"
करीब पचास एकड़ जमीन की देखरेख का भार देवव्रत के कंधे पर आ गया। देवव्रत के आलसी स्वभाव के कारण खेत हर साल बिकते जा रहे थे।
नौकर चाकर भी उसके सुस्त होने का फायदा उठा रहे थे।
उसके गाँव में एक छोटा किसान विद्याधर था। वह प्रति
वर्ष खेती से बचे मुनाफे से एक आध एकड़ जमीन खरीद लेता था। एक दिन देवव्रत अपने खेतों की ओर जा रहा था। पूरे गाँव में लोग विद्याधर की बहुत प्रशंसा करते थे।
विद्याधर -"कहो मित्र कैसे हो ?"
देवव्रत"-मैं अच्छा हूँ। तुम सुनाओ।"
विद्याधर ने कहा-"चलो तुम मेरे नये खेत को देखने चलो।"
दोनों खेत की ओर आगे बढ़ जाते हैं। वह खेत नहर के किनारे था। धान की फसल लहरा रही थी।
देवव्रत-"यार एक बात बताओ। तुम हर साल खेत खरीद लेते हो। घर अच्छे से चलाते हो किंतु मेरे पास कुछ भी नहीं बचता। क्या तुमने कोई खजाना प्राप्त किया है?"
विद्याधर-"नहीं दोस्त ऐसी बात नहीं है।"
देवव्रत-"फिर मैं क्या करूँ ? बताओ ना। मुझे लाभ नहीं हो रहा है।"
विद्याधर - "तुम्हें पता है सुबह चार बजे नागों का एक जोड़ा खेत में आता है। उनकी मणि से चारों तरफ उजाला हो जाता है।"
देवव्रत-"अच्छा! तुमने देखा है नाग का जोड़ा ? उस से क्या होगा ?"
विद्याधर - "हाँ मित्र मैंने एक दिन नाग के जोड़े को नृत्य करते देखा है। वे बेसुध होकर नृत्य करेंगे और तुम उनके ऊपर लाल कपड़ा डाल देना। उसके बाद उस कपड़े को तिजोरी में रख देना।"
देवव्रत अब नाग का जोड़ा देखने की लालसा में रोज चार बजे उठने लगा। उसके बाद वह खेतों की ओर जाता। दिन बीतते जा रहे थे ।उसके बाद महीने हो गये किंतु नाग का जोड़ा नहीं दिखा। सुबह उठने का फायदा ये हुआ कि अब वह खेती किसानी पर ध्यान देना लगा। पहले नौकर चाकर उसके साथ बेईमानी करते थे। फसल कटने पर नाप तौल में भी गड़बड़ी करते थे। उनका बेईमानी का खेल अब खतम हो चुका था।
देवव्रत अपने खेतों से आकर गायों की सेवा में भी लग जाता। भरपूर चारा मिलने से गाय अच्छा दूध देने लगीं। उसका दुग्ध व्यवसाय भी चमक गया। वह बड़े बड़े कंटेनर में दूध शहर की ओर बेचने के लिये भिजवा देता।
देवव्रत को दिन दूना रात चौगुना मुनाफा होने लगा।
एक दिन उसकी मुलाकात विद्याधर से हुई।
देवव्रत ने कहा -"मित्र मैं नाग के जोड़े का नृत्य देखने के लिये रोज सुबह जल्दी उठने लगा किंतु मुझे आज तक वह जोड़ा कभी दिखायी नहीं दिया।"
विद्याधर-"नहीं मित्र वह नाग के जोड़े की बात ही झूठी है। असल में तुम मेरे प्रिय मित्र हो और मैं तुम्हें रास्ते पर लाना चाहता था। तुम दिन पर दिन आलसी बनते जा रहे थे इसलिये तुम्हारे खेत बिकने की नौबत आ गयी थी।
मुझे इस बात की खुशी है कि तुमने अपनी कड़ी मेहनत से खेती किसानी और दुग्ध व्यवसाय को चमका दिया।"
देवव्रत ने विद्याधर को गले से लगा लिया और कहा -इस जीवन तुम्हारे जैसे सच्चे मित्र बहुत कम लोगों को मिलते हैं।
