बारिश की बूँद
बारिश की बूँद
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कजरारे मेघों की ओट से
जन्मी बूँद आँखों में आँसू
भरकर बोली...
ये हमारी आखिरी मुलाकात है।
मैं धरा को सिंचित करने जा रही हूँ।
आज अपना अस्तित्व मिटाने जा रही हूँ।
ये हमारी आखिरी मुलाकात है।
मैं बलिदान पथ पर जा रही हूँ।
मेघों ने कहा-तुम्हारा यह बलिदान
व्यर्थ नहीं जायेगा।
तुम्हारी शीतल बूँदें धरित्री को
सिंचित करेंगी।
सूखे ताल तलैया नदी नालों
को प्रेम की बौछारें लबालब भर देंगी।
सावन में धरा अप्रतिम हरितिमा से
लहलहाने लगेगी।
दुल्हन सा श्रृंगार कर धरा फिर से
निज रूप पर इठलाने लगेगी।
वह हमेशा तुम्हारे प्रेम के अभिसिंचन
का गुणगान करेगी।
