वृद्धाश्रम एक कलंक
वृद्धाश्रम एक कलंक
देव के मामा जी बहन बहनोई के स्वर्ग सिधारने के बाद पहली बार देव से मिलने आए है, संजीव वर्मा ने घर में कदम रखते ही एक खालीपन और बिना औरत वाले घर का हाल देख लिया, आलिशान महल जैसा घर खंडहर की तरह चुप और शांत पड़ा था, देव के आगे बस दास लगाना बाकी था अपने हँसते खेलते ज़िंदादिल भाँजे देव को यूँ उदास और ज़िंदगी से हारा कभी नहीं देखा था।
देव अकेला ही है दो साल पहले ही प्लेन क्रेश में उसके पापा मिस्टर डाॅक्टर आनंद और मम्मी शालीनी चल बसे।
देव के पापा डाक्टर थे तो देव को भी मेडिकल में एडमिशन दिलवा कर हार्ट स्पेश्यालिस्ट बनाया ताकि हॉस्पिटल संभाल सके।
देव के मम्मी पापा के गुज़र जाने के बाद देव बिलकुल अकेला हो गया सारे सुख थे, न धन दौलत की कमी, न और कोई परेशानी, पर अकेलेपन ने देव को डिप्रेस कर दिया था।
संजीव वर्मा जी ने देखा देव को एक साथी की जरूरत थी और इस घर को एक स्त्री की जो देव और घर को संभाल सके, तो संजीव वर्मा जी ने बिना देव से कुछ पूछे अपने साले की बेटी विधा से देव की शादी की बात चलाई, विधा सुंदर सुशील और शालीन लड़की है देव ने विधा को देखा दोनों एक-दूसरे को पसंद आ गए, और चट मंगनी और पट ब्याह भी हो गया।
अब देव थोड़ा खुश रहने लगा और घर भी जीवंत लगने लगा देव और विधा के कुछ दिन हँसी खुशी बीत गए।
देव वापस हॉस्पिटल में बीज़ी हो गया, पर विधा घर पर अकेली बोर हो जाती थी, पूरा दिन करती भी क्या काम के लिए नौकर चाकर थे टीवी भी कितना देखती सबकुछ होते हुए अकेलापन महसूस करती थी विधा बड़ी बातूनी है तो बस कोई बातचीत करने वाला जो नहीं था.! देव के घर आते ही फरियाद का पिटारा खोल देती थी, मैं क्या करूँ अकेली बोर हो जाती हूँ तुम जल्दी घर आया करो वगैरह। पर देव के सर पर इतनी बड़ी हॉस्पिटल संभालने की जिम्मेदारी थी तो चाहकर भी विधा को समय नहीं दे पाता था।
कुछ समय बाद देव के मम्मी-पापा की बरसी थी तो देव ने सोचा उस दिन वृद्धाश्रम में जाकर कुछ चीजों का दान कर दूँ, कुछ कपड़े, या रोज़ उपयोग में आने वाली कुछ चीज़ें साबुन, टूथपेस्ट बेडसीट और जो वहाँ की जरुरत हो। और आज देव और विधा सारी चीज़े लेकर आ गए वृद्धाश्रम, पर यहाँ वृद्धों की हालत देखकर दोनों की आँखें भर आई। देव और विधा को एक साथ एक ही खयाल आया, देव ने विधा से कहा तुम रोज फरियाद करती हो ना की तुम अकेले बोर हो जाती हो तो क्यूँ ना हम यहाँ से माँ बाप को एडाप्ट करें ? उनको घर मिल जाएगा और हमारी माँ बाप की कमी पूरी हो जाएगी, और तुम्हें कंपनी भी मिल जाएगी।
विधा खुश होते बोली देव तुमने मेरे मन की बात कह दी, बस अब जल्दी से माँ बाप को घर ले आते है, देव ने वृद्धाश्रम के ट्रस्टी भरत भाई से बात की और जो दो पति पत्नी थे उनको एडाप्ट करने की इच्छा जताई। ट्रस्टी भरत भाई की आँखें भर आई और बोले बेटा आज तक यहाँ बेटे-बहू माँ बाप को छोड़ने आया करते थे, आज पहली बार कोई बेटा-बहू माँ-बाप ले जाने के लिए आए है, इससे बड़ी खुशी की बात और क्या हो सकती है, मैं बहुत जल्दी जरूरी करवाई पूरी करके आपको सूचित करता हूँ भगवान तुम जैसा बेटा-बहू सबको दे।
देव ने कहा अंकल मेरी नज़रों में वृद्धाश्रम एक कलंक है मुझ जैसे बिना माँ-बाप वाले बेटे से माँ-बाप की अहमियत पूछिए, कोई अपने जन्म दाता को यूँ बेघर कैसे कर सकता है, बस कुछ ही दिनों में भरत भाई ने देव और विधा को बुलाकर हेमंत भाई और सरला बहन को बतौर माँ बाप के रुप में देव और विधा के साथ भेज दिया, आज एक वृद्ध दंपत्ति को घर परिवार मिला है और एक बेटे-बहू को माँ -बाप का प्यार।
सब हँसी खुशी रहते है, विधा को खुश देखकर देव भी खुश है दिल में एक संतोष लिए।
भरत भाई मन ही मन बोलते है ऐसी सुबुद्धि भगवान सबको दे ताकि समाज से वृद्धाश्रम जैसा कलंक नेस्तनाबूद हो जाए।।