STORYMIRROR

Lokanath Rath

Tragedy

3  

Lokanath Rath

Tragedy

वक़्त के साथ (प्रथम भाग )...

वक़्त के साथ (प्रथम भाग )...

7 mins
237

वक़्त के साथ(प्रथम भाग ).....

-------------------------------------------

सरिता देवी आज पैतालिश शाल की उम्र मे बिलकुल तुट चुकी है. खुदको अपनी कमरे मे बन्द करके रखती है और अपनी दिबंगत पति असित के तस्वीर को देखती रहती है आंसुओं के साथ. असित का निधन को एक महीने होने जारहा है पर सरिता देबी इस सदमे से बाहर निकल नेहीँ पारही है. दोनों बच्चे अशोक और आरती भी अपने पिता को खोने का दुःख के साथ साथ माँ सरिता की इस हालात को देखकर दुःखी है और हैरान भी है. अशोक बीस साल का है और वो डाक्टरी पढ़ रहा है. आरती अभी अभी दशवी के बाद बारवी की पहेली साल मे है. सरिता को बिस्वास नहीं हों रहा है की असित इस दुनिया मे अब नेहीँ रहे. वो अपनी आँख बन्द करके सोचने लगी...


असित कुमार एक माध्यबित परिबार से है. उनकी पिता राजेश जी एक वक़ील थे और माँ शांति देवी एक गृहणी थी. असित उनके एकलौता संतान थे. बचपन से असित पढ़ने लिखने मे बहुत तेज थे. वो बहुत स्वाभिमानी भी थे. सरिता देबी के पिता रबी कुमार असित के पिता राजेश जी के बहुत अच्छे दोस्त थे. सरिता देबी के माँ निशा देबी एक गृहणी थी और उनकी पिता रबी कुमार सरकारी कर्मचारी थे. सरिता देबी के छोटा भाई का नाम अरुण है. बचपन से असित और सरिता एक दूसरे को जानते थे. सरिता दो भी असित से तीन शाल छोटी थी. दोनों परिबार मे आना जाना रहेता था. असित पढ़ाई ख़तम करके एक निजी दवा कम्पनी मे नौकरी करने लगे. अच्छा पैसे कमालेते थे.धीरे धीरे तीन शाल के बाद असित कम्पनी का संचालक बनगए. सरिता देबी भी अपनी पढ़ाई ख़तम करके नौकरी धुंड रही थी. एक दिन उनकी पिता रबी कुमार जब असित के घर राजेश जी से मिलने आये थे और उनकी बात चित चल रहा था, तब बातो बातो मे रबी जी ने सरिता के लिए एक दूल्हा देखने को कहे. तब राजेश जी और शांति देबी एक दुशरे को देखे और शान्ति देबी ने बोली, "भाई साहब, क्या हमारा बेटा असित सरिता के लिए ठीक रहेगा? अब वो अच्छा कमा भी लेता है. मुझे सरिता बचपन से पसन्द है. आप मेरे बात को गलत मत समझो. अगर पसन्द नेहीँ है तो कोई बात नेहीँ."तब रबी कुमार अगानाक चौक गये. वो ये बात कियूँ पहेले सोचे नेहीँ? फिर वो हस हस के बोले,"अगर आप दिनों को मेरी सरिता पसन्द है तो ये मेरे लिए बड़ा ख़ुश खबरी है. असित को दामाद के रूप मे पाना मेरा भाग्य होगा. पर क्या आप लोग असित से एक बार बात करलेंगे?"तब शान्ति देबी बोले,"हाँ, हम उसे पूछलेंगे. पर मुझे मालूम है की असित और सरिता बचपन से एक दुशरे को जानते है, तो इसमें दोनों जा रजामंदी जरूर होगा. आप भी सरिता को पूछ लीजिए."फिर रबी कुमार अपने घर आये और सरिता को निशा देबी ने पूछी असित के बारे मे. तब सरिता बहुत शर्माके हसकर हाँ भर दी. इधर असित अपनी माँ से बोले,"आपलोग जहाँ आपकी इच्छा मेरा शादी कर सकते हों. और सरिता को मे और आपलोग बचपनसे जानते है. मुझे कोई समस्या नेहीँ."फिर उसके बाद असित और सरिता के शादी बड़ी धूम धाम से हुआ. दोनों बहुत ख़ुश थे. शादी के दो साल बाद अशोक का जन्म हुआ. राजेश जी और शान्ति देबी बहुत ख़ुश हुए. रबी जी और निशा देबी भी नाना नानी बनने का आनन्द मनाए. अशोक का दुशरी शालगिरा पर राजेश जी, शान्ति देबी, रबी जी और निशा देबी राजेश जी के गाड़ी मे शहर से दूर पहाड़ के ऊपर शिबजी के मन्दिर पूजा करने गये. कियूँ की असित बोले थे थोड़ी डेर मे वो अशोक और सरिता को लेकर पहुंचेंगे. वही हुआ. उनके जाने के आधे घंटे के बाद असित, सरिता और अशोक को लेकर निकले. रास्ते मे देखे की राजेश के गाड़ी का दुर्घटना हों गया है. वो तुरन्त गाड़ी को किनारे लगाकर दौड़े उनके पिता के गाड़ी के पास. सरिता भी अशोक को लेकर दौड़ी. वहाँ पहुँचकर असित देखे की रबी जी कुछ बोल रहे है, बाकि सब का खून से लटपट शरीर गाड़ी के अन्दर दबा हुआ था. रबी जी भी पुरे घायल थे, उन्होंने सिर्फ," एक ट्रक ने ने..."बोलकर दम तोड़ दिए. ये सब देखकर सरिता बेहोस हों गयी. असित ने एम्बुलेंस बुलाया. सबको हॉस्पिटल लेकर गये. सरिता को अलग से इलाज किया गया.सरिता की छोटा भाई अरुण तब आचुका था. अरुण अभी अभी एक बैंक मे नौकरी मे लगा था. सारे कानूनी प्रक्रिया के बाद असित और अरुण सबकी मृत शरीर को ले गये और दहा संस्कार सम्पर्न किए. सरिता को डाक्टर ने आराम करने को बोले थे. तब सरिता गर्भबती थी. सारे क्रिया कर्म ख़तम होने के बाद असित सबको सँभालने की कोशिस किए. अरुण को अपने साथ रखे. तब असित बार बार सरिता और अरुण को बहुत समझते थे और बोलते थे, "जिन्देगी के रास्ते मे सुख, दुःख सब आएगा. कोई भी चीज हमारे हात मे नेहीँ सिवा अपनी कर्म. इसीलिए अपनी कर्म करते जाओ,अपने लक्ष की और देखो और वक़्त के साथ चलना सीखो."फिर आठ महीने बाद आरती की जन्म हुआ. असित और सरिता ख़ुश हुए पर सरिता वो भयानक दिन को अभीतक भुलानेही पारही थी. धीरे धीरे समय बीत गया. जब आरती एक शाल की हुई, उसदिन असित ने सरिता के नाम पे एक दवा का दुकान खोले. उसके कुछ महीने बाद अरुण का शादी रचना के साथ कर दिए. रचना और अरुण एक दुशरे से प्यार करते थे. रचना भी नौकरी करती थी. धीरे धीरे सरिता अपनी बच्चों को बड़ा करने लगी और पुराने हादसे को भूलने लगी. अरुण और रचना दुशरे शहर मे रहेने लगे. जब अशोक दशवी मे था, तब असित नौकरी छोड़ दिए. वो दुकान को सँभालने लगे और बच्चों का पढ़ाई देखने लगे. अशोक अच्छा अंक से पास किआ और डाक्टरी पढ़ने को बोला. असित उसके लिए सारे कोचिंग के ब्यबस्था करदिए. अशोक बारवी के बाद डाक्टरी पढ़ाई के लिए चुना गया और पढ़ने लगा. इस बिच असित आरती को तैयार कर रहे थे अच्छी पढ़ाई के लिए. कभी कभी असित सरिता को बोला करते थे,"सरिता तुम थोड़ा अपने आप को बदलो. वही हमारे ज़माने के सोच पे तुम चल रही हों. तुम कभी कभी दुकान आकर बैठो, ब्यापार को समझो. हम सबको वक़्त के साथ चलना चाहिए. ये वक़्त कभी कहाँ रुकता नेहीँ, ये चलता रहेता है. तो वक़्त के साथ चलने मे जिन्देगी के सफर थोड़ा आसान हों जाता है."सरिता हसके बोल देती थी,"मेरे लिए आप सब कुछ हों. आप वक़्त हों, आप जिन्दगी हों और आप के साथ चलने से जिन्देगी का सफर मेरे लिए आसान हों जायेगा." उनकी इस बातों को आरती और अशोक भी सुनते थे. उनकी हसीं खुशी की जिन्दगी चलता रहा. जब अशोक डाक्टरी का दूसरी शाल मे था तो अचानक असित को दिल का दौरा पड़ा. सरिता तुरन्त उन्हें हॉस्पिटल ले गयी. वहा उनकी इलाज तीन दिन तक चला और उनका निधन हों गया. तब सरिता पूरी टूट गयी. ये सब सोचते सोचते सरिता को लगा जैसे असित उसे बोल रहे है की वक़्त के साथ चलो , जिन्देगी का सफर थोड़ा आसान हों जायेगा. वो आँख खोली और देखा असित के तस्वीर को. उसको लगा जैसे असित मुस्कुराके उसको देख रहे है. वो सोचने लगी असित के कही हुई बाते, अपनी बच्चों के बारे मे और अपनी ब्यापार के बारे मे. उसको लगा जैसे उसमे कुछ शक्ति आगया. वो उठी और घड़ी को देखि. समय शाम का चार बज चूका था. वो अपनी कमरे का दरवाजा खोली और बाहर आई, देखि उसकी अशोक और आरती उसे बड़े उदास चेहरे के साथ उसको देख रहे है. वो उनके पास गयी और बोली, "अब सब ठीक हो जायेगा.तुम्हारे पापा बोलते थे ना वक़्त के साथ चलो!अब हम सब वही करेंगे. तुम लोग कुछ खाये हों? नही तो कुछ नास्ता कर लेना मैं अपनी दुकान जाकर आठ बजे आजाऊंगी. फिर रात का खाना बनाउंगी और हम साथ मे खाएंगे.अभी से मे रोज सुबह तीन घंटे और शाम को तीन घंटे दुकान जाउंगी. हमको अब जो हुआ उसको बार बार नहीँ सोच के वक़्त के साथ चलना होगा. तुम लोग भी पढ़ाई मे ध्यान देना."ये बोलकर सरिता दुकान के लिए निकल गई....



Rate this content
Log in

Similar hindi story from Tragedy