वो खास सूटकेस
वो खास सूटकेस
वो खास सूटकेस
(हास्य-व्यंग्य की खिचड़ी)
✍️ श्री हरि
9.8.2025
मेरी शादी को तीन साल हो चुके थे, मगर एक बात आज तक मेरे गले से नीचे नहीं उतरी — आखिर उस सूटकेस में ऐसा क्या था, जिसे मेरी पत्नी रोज अपने सीने से चिपकाए पलंग पर खर्राटे भरती है, और मैं अपने सीने से तकिया लगाकर सुबकता रहता हूँ।
पत्नी के जीवन में मेरे बजाय वो खास सूटकेस कहीं ज़्यादा महत्वपूर्ण था।
जब कभी श्रीमती जी से इस बारे में पूछा, तो वह तपाक से जवाब देती —
“वह हमारा खानदानी सूटकेस है।”
बस, इससे अधिक कुछ नहीं। जैसे आकाशवाणी अपनी बात कहकर शांत हो जाती है।
श्रीमती जी से बहस करना तो भैंस के आगे बीन बजाने जैसा था।
पत्नी का “सूटकेस-प्रेम” देखकर मैं कई बार सोचता —
काश, मैं सूटकेस होता… कम से कम रात को पलंग पर उसके पास तो सो पाता।
पर हाय रे किस्मत!
मेरा दिल टुकड़े-टुकड़े हो जाता, जब वह सूटकेस रोज़ रात को श्रीमती जी के सीने पर सुशोभित होता, और मेरे सीने पर सांप लोटते।
श्रीमती जी उसे संगमरमरी बाँहों में कसकर जब कहती — “बाबू! आई लव यू” — तो मैं सिर के बजाय अरमानों को धुनने लग जाता।
सूटकेस में क्या था, यह भी एक रहस्य था।
कभी पत्नी कहती — “इसमें मेरे बचपन की यादें हैं।”
कभी कहती — “इसमें मम्मी का प्यार और आशीर्वाद है।”
और कभी… बस मुस्कुरा देती, जैसे कोई लड़की किसी लड़के को देखकर ऐंवई मुस्कुरा दे और वह लड़का पोतों तक के ख्व़ाब देखने लग जाए।
मैंने कई बार चोरी-छिपे उसे खोलने की कोशिश की, मगर ताला श्रीमती जी के दिल जैसा मजबूत था — दोनों आज तक नहीं खुले।
लगता था जैसे दोनों में रक्षा मंत्रालय के दस्तावेज़ बंद हों।
एक दिन हुआ यूँ कि ससुराल जाने का कार्यक्रम बना।
सासू मां ने रक्षाबंधन पर बुलाया था।
मुझे ससुराल का नाम सुनते ही घबराहट हो जाती है, क्योंकि वहां “ससुराल सेना” मेरा कचूमर निकाल देती है।
मैं जाना नहीं चाहता था, लेकिन नक्कारखाने में तूती की आवाज़ कौन सुनता है?
जब जाना तय हो गया, तो मैंने चुपचाप एक “योजना” बना डाली —
“इस बार उस खास सूटकेस को यात्रा में ही विदा कर देना है।
ना रहेगा सूटकेस, ना रहेगी उसकी पूजा।”
मैंने सोचा और मन ही मन बैंड-बाजे वाले अंदाज़ में बोला —
“आज तो बेटा, तू गया।”
बस स्टैंड पर पहुँचे, बस में चढ़े, और सीट मिलते ही मैंने सूटकेस को ऐसे किनारे रखा, जैसे यह सामान नहीं, बम हो।
थोड़ी देर बाद बस रुकी, पानी पीने का बहाना बनाया, और सूटकेस को चुपचाप वहीं छोड़ आया।
दिल में जैसे फुलझड़ियाँ फूटने लगीं —
सिलसिला वाले अंदाज़ में बुदबुदाया —
“अब रात को पलंग पर सिर्फ मैं और मेरी पत्नी… अक्सर ये बातें करेंगे कि कभी एक सूटकेस हुआ करता था!”
ससुराल पहुँचे, तो पहले दिन सब सामान्य रहा।
लेकिन दूसरे दिन पत्नी का चेहरा उतर गया —
“सुनो, वो सूटकेस कहाँ है?”
मैंने मासूम बनकर कहा — “कौन सा सूटकेस?”
लेकिन श्रीमती जी के आगे नाटक ऐसे ही कट जाते हैं जैसे मंझे हुए पतंगबाज़ के हाथों अनाड़ी की पतंग।
पत्नी की आँखें लाल हो गईं —
“वही, जो मम्मी ने दिया था… मेरे दहेज में!”
भारत में बड़ा सख्त कानून है — घर की बाकी चीज़ें लुट-पिट जाएं, पर दहेज की चीज़ सही-सलामत रहनी चाहिए।
मैं अपराधी की तरह सिर नीचा किए खड़ा रहा।
इतना सुनते ही सासू मां भी मोर्चे पर आ गईं —
“बेटा, वो सूटकेस हमारी खानदानी विरासत है।
तुम्हारे घर का फर्नीचर बदल सकता है, पर वो सूटकेस नहीं!”
मैंने समझाने की कोशिश की — “पर क्यों? इतना पुराना था, टूटा-फूटा… क्या रखा था उसमें?”
सास ने झरने की तरह आँसू बहाते हुए कहा —
“वो कोई सामान्य सूटकेस नहीं था, बहुत खास था।
उसे मेरी मां ने मुझे दहेज में दिया था, और मैंने अपनी बेटी को… ये हमारे कुल की निशानी है!”
और वे दहाड़ मारकर रो पड़ीं।
मेरा माथा पसीने से तर था।
पत्नी और सास दोनों मुझे ऐसे घूर रही थीं, जैसे शेरनियाँ शिकार को घूरती हैं।
तभी कमरे में धड़धड़ाते हुए मेरा साला प्रवेश करता है —
“जीजाजी! ये देखिए… बस अड्डे पर यह सूटकेस लावारिस पड़ा था।
मैंने पहचान लिया और घर ले आया। बढ़िया किया ना मैंने?
आखिर यह हमारा खानदानी सूटकेस है!
इसे नानी ने दिया था मां को दहेज में!”
उसका चेहरा गर्व से ऐसे दमक रहा था, जैसे ओलंपिक फाइनल में गोलकीपर गोल बचाने के बाद दमकता है।
यह सुनकर मैंने उसे गले से लगा लिया —
“साले जी! आप महान हैं!
आपने सिर्फ खानदानी विरासत ही नहीं, मेरी जान भी बचा ली!”
पत्नी की आँखों में चमक लौट आई,
सास के चेहरे पर गर्व के भाव आ गए।
मुझे तो जैसे “जीवनदान” मिल गया।
मैंने उसी क्षण संकल्प कर लिया —
यह सूटकेस नहीं, मेरे प्राण हैं।
जब तक सूटकेस सही-सलामत है, तब तक मैं भी सही-सलामत हूँ।
मुझे पहली बार एहसास हुआ —
कुछ चीज़ें कभी आपका पीछा नहीं छोड़तीं… चाहे आप उन्हें बस में छोड़कर ही क्यों न भाग जाएँ!
और उसी क्षण मुझे ब्रह्म-ज्ञान हो गया —
“जीवन में बीवी और दहेज वाले सूटकेस से पंगा नहीं लेने का!
इससे बड़ा अटल सत्य कोई नहीं।” 😃
