वो काटा
वो काटा
आज सारा जयपुर शहर छत पर आ गया है। मकर संक्रांति पर्व पर ही यह अद्भुत नजारा देखने को मिलता है। चारों ओर "वो काटा", "वो मारा" का शोर वातावरण में गूंजता रहता है। सबके चेहरे खिले खिले रहते हैं। जो काटता है वो खुशी से चिल्लाता है लेकिन जिसकी कट गई वो भी ग़म से बेजार नहीं होता अपितु उसके चेहरे पर भी एक मुस्कान उभर आती है। यही एकमात्र त्यौहार है जब अपनी पतंग कटने पर भी आदमी मुस्कुराता रहता है वरना तो असली जिंदगी में पतंग कटने पर वह दर्द से कराहने लगता है।
जयपुर शहर का यह एक अनोखा त्यौहार होता है। सब लोग काम धंधा छोड़ छाड़कर पतंग उड़ाने में मस्त हो जाते हैं। पतंगबाजी के अपने "हुनर" का शानदार प्रदर्शन करते हैं। दिन भर हल्ला गुल्ला मचा रहता है। पुए पकौड़े, चूरमा बाटी दाल या फिर अपनी पसंद के पकवान के साथ गजक, तिल पट्टी, मूंगफली, रेवड़ी सब चलतीं रहती हैं। गजब की शक्ति है जयपुर वालों की, खाने और पचाने के मामले में। भाव भी खूब खाते हैं और पराया माल भी खूब पचाते हैं।
जयपुर में आजकल इस उत्सव को पूरे तामझाम के साथ मनाया जाता है। दोपहर 11-12 बजे से पतंगबाजी शुरू होती है जो रात होने तक चलती रहती है। रात में भी दीपक वाली पतंग उड़ाई जाती हैं। एक बड़ा सा डेक चलता है जिस पर दिन भर गाने बजते रहते हैं। यार दोस्तों, नाते रिश्ते वालों को भी बुला लिया जाता है और सब मिलकर पतंग में ठुमके लगाने के साथ फर्श पर भी ठुमके लगाते हैं। सामूहिक "कोरस " भी खूब चलता है। चारों तरफ मस्ती का आलम होता है।
एक से बढ़कर एक "पतंगबाज" भरे पड़े हैं यहां पर। सब के सब माहिर, शातिर। सब अपनी अपनी कला का प्रदर्शन करते हैं। सबसे बड़ा पतंगबाज वो कहलाता है जो बहुत सारी पतंगें काट दे और उसकी एक भी नहीं कटे या काफी कम कटे। "तंग" बांधने में जो माहिर है वह शोखी बघारता रहता है। कोई "चरखी" पकड़ने में माहिर होता है। किसी को तो केवल "छुट्टी" देने के लिए ही रखा जाता है और कोई "पेंच" लड़ाने में उस्ताद होता है। और यदि कोई इन सब कलाओं में पारंगत हो तो समझो कि वह सबसे बड़ा कलाकार होता है। पतंगबाजी भी एक कला ही तो है। हर कोई पेंच लड़ाने में उस्ताद नहीं होता। वो चाहे पतंग के हों या आंखों के।
हमने बचपन में पतंगें उड़ाई कम और लूटी ज्यादा हैं। जो मजा.लूटने में है वह "उड़ाने" में कहाँ ? कोई दोनों हाथों से लूटता है तो कोई दो नैनों से लूटता है। कोई चोरी चोरी चुपके चुपके लूटता है तो कोई खुलेआम। एक से बढ़कर.एक लुटेरे बैठे हैं यहां पर। मुफ्त का माल लूटने की होड़ लगी हुई है। सत्ता की मलाई लूटने के लिए तो लोग अपनों को भी धोखा दे जाते हैं। मै महाराष्ट्र वालों के दिल का हाल समझ सकता हूँ।
जिस तरह पतंगबाजी में आनंद आता है जिंदगी जीने में भी उतना ही आनंद आता है। कुछ लोग "पेंच" लड़ाने में उस्ताद होते हैं वे जिंदगी भर "पेंच" ही लड़ाते रहते हैं। ऐसे लोगों की नजर पड़ोस में, ऑफिस में और न जाने कहां कहाँ पर लगी रहती है, भगवान ही जाने। कभी कभी ऐसे लोग किसी की काट देते हैं या फिर अपनी कटवा देते हैं।
कोई कोई पतंगबाज तो इतने होशियार होते हैं कि लड़ती हुई दो पतंगों के बीच खुद की पतंग को "फंसा" देते हैं और दूसरों की पतंग काट कर अपनी बादशाहत स्थापित कर लेते हैं। ऐसे पतंगबाज राजनीति में बहुत पाये जाते हैं। नौकरशाह भी कम पतंगबाज नहीं होते हैं। वे भी धुरंधर खिलाड़ी हैं इस खेल के। कब कौन किसकी पतंग काट दे, पता ही नहीं चलता है। कोई "काटने" में माहिर है तो कोई "खेंचने" और "ढील" देने में भी माहिर होता हैं। कोई लूटने में तो कोई समेटने में। आजकल रायता फैलाने में भी लोग उस्ताद हो गए हैं। इन्हें सब पता है कि कब ढील देनी है और कब "डोर" खींचनी है जिससे सामने वाले की पतंग कट जाए।
जितना मज़ा सामने वाले की पतंग काटने में आता है उतना मजा किसी और काम में नहीं आता है। अपनी पतंग के बजाय दूसरे की पतंग पर ज्यादा ध्यान रहता है। दूसरे की काटने के चक्कर में अपनी भी कटवा देते हैं मगर फिर भी आनंदित होते हैं लोग। जिंदगी का यही तो मजा है। सबसे अधिक आनंददायक काम है यह। बचपन में "पतंग लूटने" में सबसे ज्यादा मजा आता था लेकिन अब तो दूसरों की "काटने" में आता है। भारतीय इस काम में सबसे अधिक दक्ष हैं। कभी कभी तो सामने वाले की ऐसे काटते हैं कि उसे पता ही नहीं चलता है कि उसकी कौन काट गया। कुछ लोग इस काम में बड़े शातिर हैं। टंगड़ी मारना, पतंग काटना, रास्ता रोकना, रोड़े बिछाना, फटे में टांग घुसाना हमारे "राष्ट्रीय शगल" हैं। बड़े बड़े धुरंधर बैठे हैं इस देश में इस खेल के । पूरे विश्व ने भारत के खिलाफ एक षड्यंत्र चला रखा है जो ओलंपिक में ऐसे खेलों को शामिल होने ही नहीं देते हैं। यदि ऐसा होता तो भारत में "पदकों ' के भंडार भरे रहते।
एक और काम में भी माहिर हैं हम लोग। "पतंग लड़ाना, मुर्गा लड़ाना, कुत्ते लड़ाना और 'आंख लड़ाने' में हमारा कोई जवाब नहीं है। इस खेल में तो हमने अच्छों अच्छों को पानी पिला दिया है। हर क्षेत्र में "पानी पिलाने" की गतिविधियां चल रही हैं। अपनी अपनी "पतंग" संभाल कर रखना भाइयों। जिस तरह लोग आंखों में से काजल चुरा लेते हैं उसी तरह लोग आपकी पतंग भी काट देंगे, पता भी नहीं चलेगा।
सबको मकर संक्रांति पर्व पर हार्दिक शुभकामनाएं और बधाइयां।