वो बारिश

वो बारिश

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घर का सारा काम सलट गया है। अनायास ही मेरी नजर उज्ज्वल के बचपन की फ़ोटो की तरफ चली गयी। कितना बड़ा हो न मेरा बेटा और इस फोटो में देखो उसको। कितना प्यारा लग रहा है। 2 साल का था उज्ज्वल। साड़ी का पल्लू ले कर मम्मी मम्मी कहता मेरे पीछे घूमता रहता था और आज देखो मम्मी के आंचल की छांव में रहने वाला 2 साल का उज्ज्वल आज IIT में पढ़ रहा है। पास में ही शादी की तस्वीर भी थी थोड़ी सी धूल आ गयी थी शायद खिड़की के खुली रहने की वजह से। मैं और उज्ज्वल के पापा... तस्वीर को मैंने साड़ी के पल्लू से साफ किया और साइड रख दिया।

चाय पीने की इच्छा सी हुई। मौसम हल्का सा ठंडा था। फरवरी का महीना था। ये महीना कितना खुशनुमा होता है ना। न धूप न ज्यादा ठंड। अचानक कुछ याद आ गया, मनु को भी ये महीना कितना पसन्द था। फरवरी ही तो थी जब उसने पहली बार अपने प्यार का इजहार किया था कितना घबरा गई थी वो, इसी घबराहट की वजह से बुखार ही चढ़ गया था।

अचानक से याद आया उसने गैस पर चाय चढ़ा रखी है। उसने चाय प्याली में डाली और कुछ बिस्किट अपनी प्याली में रख लिए।

"बिस्कुट...यही तो कहता था मनु। उसने कितनी बार टोका बिस्कुट नहीं बिस्किट कहों, पर वो मानता ही कहा था जानबूझ उसे हँसाने के लिए ऐसे ऐसे शब्द बोलता था।" चाय की चुस्की लेते हुए ही मुझे हँसी आ गयी।

सातवीं में पढ़ते थे हम जब मनु पड़ोस में रहने आया। जल्दी ही मंजू चाची यानी की मनु की मम्मी और मेरी मम्मी की अच्छी दोस्ती हो गयी। हम दोनों भी एक दूसरे के घर आने जाने लगे। मनु भी मेरी स्कूल में साथ ही था। मैं गणित में कच्ची थी तो मनु अंग्रेजी में। स्कूल में भी हम दोनों साथ ही बैठते। मनु के साथ रहते रहते मेरी गणित में भी बहुत सुधार हुआ। समय कब पंख लगा कर उड़ जाता है पता ही नहीं चलता। मैं और मनु भी जीवन के उस दौर में थे जहाँ मन एक नए सपने देखना शुरू कर देता है। हम दोनों एक ही कॉलेज में थे पर मैंने आर्ट्स लिया था मनु ने साइंस। फिर भी कॉलेज की कैंटीन में चाय तो हम साथ ही पीते थे। एक बार किसी लड़के से बातों ही बातों में मुझ छींटाकशी क्या कर दी। मनु ने उसे जो सबक सिखाया की वो मुझसे क्या किसी और से भी बात करने से पहले दस बार सोचता।

पता नहीं क्यों मनु उस दिन के बाद थोड़ा थोड़ा बदला सा लगने लगा। उसके साथ रहते हुए मैं खुद को बहुत ही सुरक्षित महसूस करती थी। वो मेरा इतना अच्छा दोस्त था कि किसी और दोस्त की कमी महसूस नहीं हुई।

ट्रिंग ट्रिंग....अचानक फ़ोन पर बजी घंटी से मेरी तंद्रा टूटी। फ़ोन उठाया तो इनका फ़ोन था।

"क्या कर रही हो अमृता।" इन्होंने पूछा

"कुछ नहीं, बस चाय पी रही थी।" मैंने कहा।

"आज कुछ खास काम नहीं है। मौसम देख कर लग रहा है शायद बारिश भी होगी। मैं चार बजे तक आ जाऊंगा।" इन्होंने यह कह कर फ़ोन रख दिया।

पता नहीं क्यों, न जाने आज ऐसा क्या हो गया था कि मनु की सारी बातें रह रह कर याद आ रही थी। बारिश बहुत पसंद थी मनु को और बारिश होते ही वो मुझे कहता "चल न अमु अपने अड्डे पर चलते हैं, भुट्टा खा कर आएंगे।"

हमारा अड्डा यानी कि कॉलेज के पास छपरेनुमा बनी वो चाय की टपरी। पास ही एक बूढ़ी भुट्टे बेचा करती थी। हम वहाँ जाते और चाय के साथ भुट्टे खाना और दुनिया भर की बातें कर के बेतहाशा हँसना। हम इतने सालों से दोस्त थे पर कभी लगा ही नहीं कि हमारी बातें खत्म हुई हो।

मुझे आज भी वो दिन याद है। मनु का दाखिला दिल्ली के एक बड़े कॉलेज में हो गया। कुछ ही दिनों में वो जाने वाला था। मेरा मन बड़ा उदास हो रहा था न जाने क्यों ? शायद मेरा सबसे अच्छा दोस्त मुझसे दूर जा रहा था इसीलिए।

फरवरी का वो दिन बहुत ही सुहावना था कि अचानक से बारिश होने लगी। मैं छत पर खड़ी थी कि मनु की आवाज़ आयी। "अमु क्या कर रही है नीचे आ।"

मैं उसके साथ हमारे अड्डे यानी कि उस चाय की छपरी पर चले गए। आज पता नहीं क्यों मन थोड़ा उदास था। उसके चुटकलों पर चाह कर भी हँसी नहीं आ रही थी। बातों ही बातों मैं उसने मेरा हाथ पकड़ लिया फिर उसने जो कहा उसे सुन कर मैं जड़वत हो गयी।

"अमु, मैंने तुझे कभी नहीं कहा। मैं जा रहा हूँ यहाँ से दूर, पर तुझसे दूर में कभी नहीं जा सकता, कभी भी नहीं। न जाने कब से तुझसे प्यार हो गया मैं खुद नहीं जान पाया, पर हाँ ये जानता हूँ कि तेरे बिना अब नहीं रह सकता।" मनु ने बिना झिझके मेरा हाथ पकड़ कर कहा।

मैं सुन्न थी बस कुछ समझ नहीं आया, दिल जोर जोर से धड़क रहा था हम तो सिर्फ दोस्त थे ना, ये अचानक से क्या हो गया। मैं कुछ नहीं समझ पाई और वहाँ से चल दी। मनु भी मेरे पीछे पीछे हो लिया पर अब उसने कुछ नहीं कहा। बारिश में निकलती आंखों की बूंदों को कोई देख नहीं पाया।

माँ चिल्ला रही थी " इस लड़की को समझ में नहीं आता, इस मौसम में बारिश में भीग रही है, बीमार पड़ी तो मेरी जान को आफत।" माँ बोलती रही पर मेरे कान अभी भी मनु के वो शब्द सुन रहे थे। उस दिन रात को मेरा शरीर बुखार से तप रहा था और माँ का गुस्सा बदस्तूर था। उस दिन के बाद मनु जब भी मेरे आस पास होता। मैं उस जगह से चली जाती शायद मनु ने भी इसे भांप लिया। उस दिन के बाद उसने एक शब्द भी नहीं कहा।

और एक दिन मनु चला गया। कुछ दिन मंजू चाची आई और मुझसे बोली- "अमु, ये तेरी किताब मनु के पास रह गयी थी, तुझे देने को कहा था।"

मैं कमरे में गयी। किताब के अंदर एक छोटी सी चिठ्ठी थी। उसमें लिखा था

"प्यारी अमु

मैं नहीं जानता, तू क्या सोचती है ? पर मैं नहीं चाहता था कि मेरी जिंदगी में एक दिन ऐसा आये कि मुझे अफसोस हो कि मैंने तुझे वो नहीं कहा जो मैं कहना चाहता था। मैं नहीं जानता तू मेरे बारे में क्या सोचती है। तू मुझसे प्यार करती है या नहीं। मैंने तुझे ये कहने से पहले हज़ार बार सोचा कि कही हमारी दोस्ती न हमसे दूर हो जाए। तू मुझसे बात नहीं कर रही है तो ऐसा लग रहा है मैं अधूरा हो गया हूँ। अमु तू एक बात याद रखना जब भी तुझे जरूरत होगी तेरा ये दोस्त हमेशा तुम्हारे साथ होगा।

तुम्हारा मनु"

तुम्हारा को उसने कलम से काट दिया था पर फिर भी मैं उसे पढ़ पा रही थी। मेरी आँखें भर आईं। मनु के जाने के कुछ महीनों बाद उसका परिवार भी दिल्ली चला गया। ये समय भी बीत गया। 2 साल के बाद मेरी भी शादी हो गयी और शादी के कुछ ही सालों में उज्ज्वल मेरी गोद में आ गया।तभी डोर बैल की आवाज से मेरा ध्यान फिर से टूटा। देखा तो चार कब के बज गए थे। सामने ये खड़े थे। बारिश में भीगे हुए। मैं फ़टाफ़ट तौलिया ले आयी। इनका माथा पोंछने लगी। ये कुछ कह रहे थे कि मैंने इनके मुँह पर अंगुली रख दी और कहा-

"मनु, बारिश हो रही है। चलो भुट्टा खाने चलते है।"

ये यानी मेरे पतिदेव मनीष सिंह मुस्कुराए और मैं और ये चल पड़े फरवरी की इस बारिश वाली शाम में भुट्टा खाने।


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