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Shilpa Jain

Others

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फुर्सत वाली दिवाली

फुर्सत वाली दिवाली

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मेघा अभी कमरे की खिड़कियों को पोंछ रही थी कि उसकी नजर बाहर पटाखे जला रहे बच्चों पर पड़ी, वो चकरी के चारों औऱ घूम घूम कर नाच रहे थे, वो अनजाने ही अपने अतीत में चली गयी जब वो औऱ उसका छोटा भाई अनीश छोटी बहन श्रेया इसी तरीके से चकरी के चारों तरफ नाचा करते थे।

दीवाली के महीने भर पहले ही पापा मम्मी से फरमाइशें शुरू हो जाती, पापा पिछली बार आप कितने कम पटाखे लाये थे, इस बार आप ज्यादा पटाखे लाना, उस सामने वाले बिल्लू को सबक सिखाना है पिछली बार याद नहीं कितनी इतर दिखा रहा था। अनीश ने मुँह बनाते हुए कहा। मम्मी इस बार मुझे वो पिंक वाली फ्रॉक चाहिए, श्रेया ने भी फरमाइश रख दी।

रखे भी क्यों न ये उनका पसंदीदा त्योहार जो था। हर साल वो दीवाली का बेसब्री से इंतज़ार करते, नए कपड़े, पटाखे ढेर सारी मिठाई और रिश्तेदारों से मिलने वाले लिफाफे। पापा की भी कपडों की दुकान थी, त्यौहार में ग्राहकी अच्छी होती थी, तो बच्चो की फरमाइश भी पूरी हो जाती। 

जैसे ही दीवाली के दिन पास आते मम्मी सबको काम में लगा देती, दीवाली की सफाई एक अभियान होता जिसमें सभी जुटते, पापा भी। हम बच्चा पार्टी की नजर तो निकलने वाले सामान पर होती कि पता नहीं कहाँ से कोई खजाना निकल आये। सच कहूँ तो दीवाली की सफाई में भी बड़ा मजा आता। जब घर में रंग होता तो वो हमारे लिए सबसे बड़ी सौगात होती, घर की दीवार मानो ड्राइंग की कोई किताब बन जाती। माँ आस-पास की आंटियों से मिल कर नई-नई मिठाइयों की रेसिपी सीखती औऱ बना कर हमें खिलाती। दीवाली की छुट्टियों का बेसब्री से इंतज़ार रहता। स्कूल में मिला होमवर्क 2 दिन में सलटा लेते ताकि दीवाली का खुल कर मज़ा ले सके।

दीवाली का शाम को पूरे मोहल्ले में एक कॉम्पीटिशन से होता कि कौन अपने घर सबसे ज्यादा दिए जलाता है, औऱ सबसे सुंदर रंगोली किसने बनाई है। मोहल्ले की महिलायें दो दिन पहले ही अपने हाथ सुर्ख मेहंदी से सजा लेती। मुझे और श्रेया को भी कितना शौक़ था मेहंदी का। माँ के हाथ में मेहंदी हम दोनों ही लगाती। दीवाली के दिन पूजा का बेसब्री से इंतज़ार रहता क्योंकि उसके बाद ही तो पटाखे चलाने को मिलते। पूरे मोहल्ले क्या पूरा शहर पटाखों की गूंज से गुंजायमान हो जाता। आसमान में जाते राकेट जब चलते यूँ लगता किसी ने खूबसूरत रंगोली उकेर दी हो। ऐसा लगता था काश ये दिन खत्म ही न हो।

"मेघा, कौन से ख्यालों में खोई हो, जरा जल्दी हाथ चलाओ,कितना काम बाकी है।" दीवाली का इतना काम पड़ा है और ये महारानी सपने देख रही है,मेघा की सास झल्लाते हुए बोली।

मेघा जैसे नींद से जागी हो। सच में कितना काम है, अभी तो उसे ड्राइंग रूम भी आज ही साफ करना है। कल उसने पूरा किचन साफ किया था, उसके हाथ अभी तक दर्द कर रहे है, मगर दीवाली है घर की पूरी साफ सफाई जरूरी है, साफ घर मे ही लक्ष्मी जी का वास होता है, ये उसने बचपन से ही सुना था, पर घर के सारे काम की जिम्मेदारी सिर्फ और सिर्फ उसी गृहलक्ष्मी की होती है, ये उसने ससुराल में आ कर जाना।

अभी कल की बात है वो कमरे का पंखा झाड़ रही थी, उसमे उसे थोड़ी दिक्कत आ रही थी,उसके पति अमित ने कहा तुम हटो मैं करता हूँ। वो पंखा झाड़ ही रहा था कि मम्मी जी ने देख लिए फिर क्या था पूरा आसमान जैसे सिर पे उठा लिया हो।

'मेघा,ये सारे काम क्या आदमी को शोभा देते है, घर की साफ सफाई का काम घर की औरतों का है, ये भी बताना पड़ेगा तुम्हे,अमित कभी देखा है तूने पिताजी को ये सब करते हुए? ये आज कल की लडकियाँ पतियों को अपना गुलाम समझती है।' सासु माँ ने तुनकते हुए कहा।

'माँ इतना क्या चिल्ला रही हो, इसके हाथ में दर्द था तो मैंने मदद कर दी।' अमित ने कहा

'तेरी मां इतने सालों जब सब अकेले करती थी तो तुझे उसका दर्द समझ नहीं आया, मैं सब जानती हूँ ये लड़की तुझे क्या पट्टी पढ़ा रही है, तू ये छोड़ अपने ऑफिस जा, देर नहीं हो रही तुझे' सासु माँ जान बूझ कर मेघा को सुनाते हुए बोली।

अमित चले गए और मेघा की आँखों में आँसू आ गए। जब से वो ससुराल आयी है, सब जैसे फ्री है , सिर्फ उसको छोड़ कर। सुबह उठने से लेकर रात को सोने तक वो काम करती रहती है और उसे हमेशा ये सुनने को मिलता है कि वो करती क्या है। 

पिछले 5 दिनों से वो दिन भर के काम सलटा कर साफ सफाई में जुटी रहती है औऱ मम्मी जी उसके काम बढ़ाने में कोई कान कसर नहीं छोड़ती। वो कपड़े धो रही थी कि मम्मी जी सारे घर के पर्दे उठा लायी, बहु ये भी धोने है।

पर मम्मी जी, ये पिछले महीने ही तो धुले है। मेघा ने कहा।

पर दीवाली तो इसी महीने है, पूरा घर तो साफ करना पड़ेगा न, वैसे भी मशीन में धोने है, कौन सा तुम्हे हाथ से धोने को धोना है। मेघा की सास ने थोड़े व्यंग्य के साथ कहा।

सारी दीवारें अच्छे से झाड़ कर साफ करना और हाँ तस्वीरें अच्छे से रगड़ कर पोछना। कुछ भी सामान गिरना पड़ना नहीं चाहिये। याद है अभी कुछ दिन पहले गिलास तोड़ दी थी तुमने, ढंग से काम किया करो। सास के non stop instruction चलते रहते थे। 

मेघा का बुरा हाल था,मगर इससे किसी को क्या फर्क पड़ता है।काम वाली भी अपने गांव गयी हुई थी। दीवाली है भाई, काम तो करना पड़ता है। एक हफ्ते पहले सास ने दीवाली पर बनाये जाने वाले पकवानों की लिस्ट पकड़ा दी। मेघा मशीन बन कर सारे काम निपटा रही थी। 

दीवाली वाले दिन मेहमान आने वाले थे। मेघा सुबह जल्दी उठ कर तैयारी में लग गयी। दोपहर के खाने के बाद वो इतनी थक गई कि सोचा कि पाँच मिनट थोड़ा सुस्ता ले, पर थकान की वजह से कब नींद आ गयी पता भी नहीं चला।

इस महारानी को तो तीज त्योहार पर भी सोने की पड़ी रहती है, अरे बहु, मेघा....शाम की तैयारी नहीं करनी क्या? कैसे नींद आ सकती है तुम्हे घर में इतना काम पड़ा है और तुम हो कि घोड़े बेच कर सो रही हो, नए दिन के दिन तो कम से कम काम कर लो। मेघा की सास उस पर चिल्लाते हुए बोली।

मेघा को बहुत बुरा लगा, पर उसने सिर्फ इतना बोला मम्मी जी वो सिर दर्द कर रहा था तो पांच मिनट लेट गई। 

'हो गए न 5 मिनट, अब चलो पूजा के सारे समान को अच्छे से लगा दो, बाद में दीयों के लिए बाती तैयार कर लेना, शाम होते ही पूरे घर मे दिए जलाने है।' मेघा की सास बोली

शाम तक मेघा कामो में ही उलझी रही। अमित ने उसे एक नई साड़ी ला कर दी थी।मेघा ने सोचा था कि वो आज अच्छे से तैयार होगी, जैसे वो हर साल होती थी। 

'अरी बहु, जल्दी करो पूजा का समय हो रहा है,सुबह से यहां से वहाँ घूमे जा रही हो। ' मेघा की सास बोली

'मम्मी जी, मैं पांच मिनट में आई!' मेघा अपने कमरे की तरफ जाते हुए बोली औऱ अमित की दी हुई साड़ी पहन रही थी कि मम्मी जी ने जोर से दरवाजा खटखटाया। मेघा ने फटाफट से साड़ी लपेटी औऱ दरवाजा खोला।

'इस महारानी को सजने की पड़ी है, है भगवान! वो पूजा की थाल में माचिस क्यों नहीं है, तुम्हारे पापाजी मुझ पर चिल्ला रहे है।' मम्मी जी झल्लाते हुए बोली।

'मम्मी जी मंदिर की अलमारी में माचिस पड़ी है, उसमे से ले लीजिए।' मेघा अपने बालों का जुड़ा बांधते हुए बोली

'मुझे नहीं पता, जा कर दो उन्हें!' मेघा की सास ये बोल कर चलती बनी। मेघा सीधे मंदिर की तरफ चल दी, उसके तैयार होने का अरमान सिर्फ अरमान ही रह गया। पूजा के बाद वो खाने की तैयारी में जुट गई। तभी अमित के दोस्त अमित को बुलाने आ गए। 

'भाभी आप भी चलिए न सब मिल कर आतिशबाजी कर रहे है, रमा भी बोल रही थी, भाभी को ले कर आना।' अमित का दोस्त शेखर बोला।

'नही बेटा, तुम जाओ अमित के साथ, अभी तो अमित के पापा ने खाना भी नहीं खाया, अभी बहुत से काम भी बाकी है, कल सुबह चार बजे उठकर भगवान को भोग लगाना है उसकी भी तैयारी करनी है।" मेघा के कुछ बोलने से पहले ही उसकी सास ने जवाब दे दिया। अमित अपने दोस्तों के साथ चला गया। 

'मेघा, पुड़िया तल लो, मैं औऱ तुम्हारे पापाजी खाना खा रहे है, फिर कल सुबह पूजन की तैयारी कर लेना। अभी भी कितना काम पड़ा है, हे भगवान।' मेघा की सास सिर पर हाथ रखते हुए बोली।

मेघा किचन में गयी, पुड़ियाँ तलते-तलते उसके आँखों से आँसू आ रहे थे, साथ में याद आ रहा था वो बचपन, वो दीवाली जिसका इंतज़ार उसे हमेशा रहता था। आज भी दीवाली थी, मगर ये दीवाली शायद अब से उसकी दीवाली नहीं है, ऐसी दीवाली का इंतज़ार तो शायद उसे आज के बाद कभी नहीं रहेगा। मेघा की नजर फिर से बाहर पटाखे चलाते बच्चो पर गयी, मगर अब इन आँखों मे वो उल्लास नहीं था, बस थी तो हल्की सी नमी।

दोस्तो दीवाली खुशियों का त्योहार है, हर तरफ रोशनी, जगमगाहट,झिलमिलाते हुए दिए, रंग बिरंगी लड़ियों से सजे घर, खुशियाँ बिखेरती रंगोली, नए कपडों में सजे लोग, प्लेट में सजी मिठाइयाँ....पर जिसने ये सब किया शायद उसे कोई नहीं देखता, वो शायद कही अपनी कमर में पल्लू को ठुसे किचन में होगी या शायद देख रही होगी कि दीयों का तेल कम न हो या मंदिर में पूजा का सामान तैयार कर रही होगी या फिर बच्चो को नए कपड़े पहना कर तैयार कर रही होगी।

दीवाली की रोशनी में भी वो किसी को दिखाई नहीं दी, इतनी जगमगाहट में भी उसका मुरझाया चेहरा किसी को दिखाई नहीं दिया होगा, दिखे भी कैसे वो हर मुस्कुरा कर तो अपना हर दर्द छिपा लेती है, अरे तुम तैयार नहीं हुई ये कहने वाले बहुत मिल जायेंगे, मगर किसी को ये नहीं पता कि सुबह से शायद उसे फुरसत ही नहीं मिली, कहते है भगवान ने औरतों को बड़ी फुरसत से बनाया,मगर न जाने क्यों उन्हें ही फुरसत देना भूल गया। क्यों सब ये भूल जाते है कि दीवाली उसके लिए भी उसी दिन आती है, जब सभी लोगों के लिए आती है।

तो इस बार उसे एक तोहफा दीजिये, वो तोहफा है 'फुर्सत' का, जहाँ उसकी ड्रेसिंग पर रखी साड़ी वो सुकून से पहन पाए, वो धूल खाता मेकअप का पिटारा फिर से खुले, क्यों न ये दीवाली उसके लिए ख़ास बनाई जाए, जहाँ वो एक बार फिर अपनी बचपन की दीवाली की यादों को तरोताजा कर सके। क्यों न हो ये दीवाली' ,फुर्सत की दीवाली'।



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