मुस्कान
मुस्कान
"वैभव, तुम्हें इस मीटिंग के लिए नैनीताल जाना होगा, ये प्रोजेक्ट हमारे लिए बहुत मायने रखता है, कंपनी को बहुत बड़ा फायदा होगा और मैं चाहता हूं इस मीटिंग को तुम लीड करो।" बॉस ने कहा।
"पर सर, मैं....नैनीताल।" वैभव कुछ बोलता उससे पहले ही उसके बॉस ने कहा।
"देखो वैभव मैं कुछ नहीं सुनना चाहता, तुम्हें जाना ही है। ये प्रोजेक्ट बस तुम्ही लीड कर सकते हो। मुझे कुछ भी नहीं सुनना।" बॉस ने कहा।
वैभव चाह कर भी बॉस को मना नहीं कर पाया। वो जानता था कि इस प्रोजेक्ट पर काम करना उसका सपना था पर नैनीताल ही क्यों, कहीं और क्यूं नहीं, अगर वो टकरा गई उससे तो, नहीं...वो खुश होगी अपनी गृहस्थी में, एक बार ना चाहकर भी वैभव को "मुस्कान" की याद आ ही गई, वो मुस्कान जो उसके चेहरे पर हमेशा एक मुस्कान ले आती थी उसकी पहली पक्कम पक्की दोस्त और शायद आखिरी भी। वो कैसे भूल सकता है उस दिन को जब वो उसे पहली बार मिला।
पापा का ट्रांसफर नैनीताल में हो गया और एक बार वो फिर नए शहर में आ गया, पापा के बेहद सख्त स्वभाव की वजह से वो हमेशा सहमा रहता था, पापा बेहद अनुशासन प्रिय थे और किसी भी गलती के लिए उसे माफी नहीं सिर्फ सजा मिलती थी। उसकी कभी हिम्मत ही न हुई कि उनके सामने एक शब्द भी बोल सके, उनका डर उस पर इस कदर था कि वो किसी से बात करने में भी हिचकता। बोलते बोलते हकलाने लगता। शायद यही वजह थी कि वो चाहे स्कूल हो या मोहल्ले के दादा किस्म के बच्चे सबका शिकार बन जाता, पर तब तक जब तक वो नहीं आई थी....मुस्कान।
"ए चश्मीश, ये साइकिल हमें देता है या नहीं।" उस मोटे बच्चे ने अपने साथियों के साथ उसे धमकाया।
"पर ये में में मेरी है।" उसने हकलाते हुए कहा।
"देता है कि दूं दो।" उसने मुक्का दिखाते हुए कहा और वैभव को धक्का दिया तो वो जमीन पर गिर पड़ा। उसका चश्मा भी टूट गया, उसके आंसू निकल पड़े।
"ओए अंशुल, बड़ी दादागिरी छाई है तुझे, कल जो आंटी ने धुनाई की भूल गया लगता है, खबरदार जो फिर से ऐसे वैसी हरकत की तो।" अचानक से एक लड़की ने उस मोटे लड़के से उसकी साइकिल छिन कर चिल्लाते हुए कहा।
"उठो, ये लो तुम्हारा चश्मा और तुम्हारी साइकिल।" उस लड़की ने उसे कहा, धुंधलाती आंखों से उसने उसे देखा, शायद वो लड़का भी उसे देखकर चला गया।
"तुम नए आए हो न इस मोहल्ले में, कल देखा था मैंने तुम्हें, मेरी मम्मी घर भी गई थी तुम्हारे चाय लेकर, तुम ठीक तो हो न, मैं मुस्कान।" उसने मुझे उठाते हुए कहा।
"ये अंशुल का बच्चा बड़ा ही बदतमीज है, पर तुम चिंता मत करो, इसकी तो खबर में लूंगी, अपनी मां से पिटाई खायेगा वो अलग, मेरे पापा से ट्यूशन पढ़ता है वो।" उसने कहा
ऐसा पहली बार हुआ कि किसी ने वैभव के लिए किसी से झगड़ा किया हो। हमेशा तो सबने मजाक ही उड़ाया उसका।
मुस्कान उसकी पहली दोस्त, उसका पहला प्यार या शायद आखिरी प्यार। वैभव वर्मा, एक बहुत बड़ी कंपनी में आज इंजीनियर है, पैसा शोहरत नाम सब है, अगर कुछ नहीं है तो बस वो। कोई दोस्त नहीं था उसका बचपन में, सब उसका मजाक उड़ाते थे, पर मुस्कान ने कभी ऐसा नहीं किया। वो हमेशा उसका साथ देती। उसके लिए झगड़े भी करती। हर खुशी हो या गम मुस्कान ने उसका साथ हमेशा निभाया। उसकी आंखों में जब आंसू आते थे, वो कहती कौन कहता है लड़के नहीं रोते, क्या लड़कों के पास दिल नहीं होता और मेरे बुद्धूराम मेरा कंधा है ना तेरे पास और मेरे हर गम को वो मुस्कुराहट में बदल देती।
ये उसके साथ का नतीजा था कि वैभव ने खुद पर भरोसा करना सीखा। उसने उसे हमेशा ये भरोसा दिलाया कि जो वो चाहे वो सब कर सकता हूं। समय पर लगा कर उड़ता गया। वो कॉलेज में आ गए थे।
"वैभव, वो जो टीना है ना तुझे पसंद करती है, बोल मैं बात करूं क्या तेरे लिए।" मुस्कान ने आंख मारते हुए कहा।
"मुस्कान, चुप, तुझे पता है ना, मुझे ये सब पसंद नहीं, मेरा एक ही सपना है कि मुझे दुनिया का बेस्ट इंजीनियर बनना है।" उसने कहा।
"हां मेरे बुद्धू राम बचपन से पता है, मैं बस तुम्हारी टांग खिंचाई कर रही थी। वो खिलखिला कर हंस पड़ी और वो उसे खिलखिलाते हुए देखता रहा। वो कैसे उसे बताए कि उसकी जिंदगी में सिर्फ एक ही लड़की है और एक ही लड़की रहेगी और वो है मुस्कान। जब से उसने प्यार को समझा है उसने सिर्फ उसी से प्यार किया है।
समय अपनी गति से चलता रहा दोनों ने अपनी इंजीनियरिंग की डिग्री पूरी कर ली थी। वैभव अपने आगे की पढ़ाई के लिए बैंगलोर जाने वाला था और उसके जाने का समय नजदीक था। आज होली थी, मुस्कान का पसंदीदा त्यौहार, शायद आज से बेहतर कोई दिन नहीं हो सकता था, ये जरूरी था कि जाने से पहले वो एक बार मुस्कान को अपने दिल की बात बता दे, मुस्कान के पसंदीदा रंगो के साथ वो उसके घर गया तो वहां का माहौल देख कर वो चौंक गया। मुस्कान ने बताया कि कल शाम को ही उसकी सगाई की बात पक्की हुई है और उसके ससुराल वालों ने उसके लिए ढेरों तोहफे भेजे है।
"तूने बताया नहीं मुस्कान।" वैभव ने कहा
"अरे सब कुछ नहीं जल्दी हो गया कि मुझे पता ही नहीं चला, पापा मम्मी की बड़ी गहरी प्लानिंग थी, कल ही रवीश के मम्मी पापा मिलने आए और सब कुछ पसंद आने पर हमारी बात पक्की हो गई रवीश बहुत अच्छा है उसकी मेरी पसंद काफी मिलती-जुलती है तो बस बात पक्की हो गई। तुझे पता है ना ये डिग्री मैंने सिर्फ पापा का दिल रखने के लिए की है।" मुस्कान ने हंसते हुए कहा
वैभव का दिल झटके से टूट गया। उसने मुस्कान को बधाई दी और झूठी हंसी हंसते हुए वहां से निकल आया बस वह दिन और आज का दिन वो मुस्कान से कभी नहीं मिला उसी दिन शाम की ट्रेन से वह बैंगलोर के लिए रवाना हो गया और तबसे वही है। पापा मम्मी भी उसके साथ ही शिफ्ट हो गए। जब भी वो कभी नैनीताल फिर से जाने की बात करते वो टाल देता।
आज 7 साल हो गए हैं इस बात को, उसने अपना नंबर बदल दिया, अपने सारे सोशल मीडिया के अकाउंट भी डीएक्टिवेट कर दिए। अब वो वहां नहीं जाना चाहता था मगर एक बार फिर उसके सामने ऐसी मुसीबत आ गई जिसका सामना वह नहीं करना चाहता था। मुस्कान किसी और की हो चुकी थी और वह उसे किसी और के साथ बिल्कुल नहीं देखना चाहता था। वो नहीं चाहता था कि वो उसे गलती से भी टकराए।
अगले दिन वो नैनीताल पहुंचा। शाम को मीटिंग हुई और प्रोजेक्ट वैभव को मिल चुका था। वो उसी रात निकलना चाहता था मगर मौसम खराब होने की वजह से उसकी फ्लाइट कैंसिल हो गई थी और अगले देव 2 दिन भी कोई फ्लाइट की टिकट उसे नहीं मिल पा रही थी। पूरी रात वो सो नहीं पाया मुस्कान के ख्याल उसके दिमाग से जा ही नहीं रहे थे।
ना चाहते हुए भी वह सुबह अपने पुराने घर की तरफ निकल पड़ा वही गलियां वही सड़कें वही रास्ते कुछ भी तो नहीं बदला था वह अपने घर की तरफ पहुंचा। घर के सामने ही एक दुकान थी, मुस्कान और वो बचपन में उसी दुकान के सामने बैठकर खूब बातें किया करते थे और आपस में अपनी चॉकलेट बांट के खाया करते थे।
वह दुकान पर पहुंचा दुकानदार उसे देखते ही पहचान गया दुकानदार ने कहा, ”अरे वैभव बेटा तुम कितने सालों बाद आए हो, कहां चले गए थे? ना कोई पता ना कोई खबर हमने तो मुस्कान बिटिया से भी पूछा मगर उसे भी तुम्हारी कोई खबर नहीं थी।" दुकानदार ने कहा।
"वो चाचा, दूसरे शहर में जॉब लग गई थी मैं ही चला गया था। आना ही नहीं हुआ। मुस्कान आई थी क्या यहां, उसकी तो शादी हो गई है ना, यही आस पास रहती है क्या?" वैभव ने पूछा।
"हां बेटा शादी तो हो गई थी पर नियति ने बहुत गन्दा मजाक किया उसके साथ। शादी के 6 महीने नहीं हुए थे कि उसके पति की सड़क एक्सीडेंट में मौत हो गई ससुराल वालों ने भी उसे घर से निकाल दिया। उसके पिताजी को ऐसा सदमा लगा की लगभग साल भर के अंदर वह भी नहीं रहे अब बस मुस्कान बिटिया और उसकी मां है मुस्कान बिटिया स्कूल में पढ़ाती है। बड़ा दुख होता है बेटा उसे देखकर हमेशा हंसते मुस्कुराते रहने वाली लड़की के साथ कभी ऐसा होगा हमने सोचा भी नहीं था। सही नहीं किया कुदरत ने उसके साथ।" दुकानदार ने कहा
वो बोले जा रहे थे और उसे ऐसा महसूस हो रहा था कि मानो कोई उसे हथौड़े मार रहा हो। मुस्कान उसकी सबसे अच्छी दोस्त, जिससे उसने वादा किया था कि वह हमेशा उसके साथ दोस्ती निभाएगा, उसकी मुश्किल घड़ी में उसके साथ नहीं था उसने इतना सब कुछ सहा, सब कुछ झेला मगर वह नहीं था उसके साथ। एक बार भी उसने उससे मिलने की कोशिश नहीं की। शायद मुस्कान ने उसे याद तो किया होगा उसके कदम कब मुस्कान की घर की तरफ बढ़ गए उसे पता ही नहीं चला।
"अरे बेटा तुम ?" मुस्कान की मम्मी ने दरवाजा खोला।
"कौन है मां?", मुस्कान ने कहा
"तुम ही देखो कौन आया है।" मुस्कान की मम्मी ने कहा
मुस्कान ने दरवाजे की तरफ देखा और उसके चेहरे पर एक बड़ी सी मुस्कुराहट आ गई। वह भागकर उसके पास आ गई उससे गले लग ही रही थी कि मुस्कान ने अपने हाथ पीछे खींच लिए। अचानक वह पलट गई।
"क्या हुआ मुस्कान ?" वैभव ने कहा
"कुछ नहीं, कैसे हो तुम?" मुस्कान ने पूछा
"तुम दोनों यहीं खड़े होकर बातें करते रहोगे। इतने दिनों बाद आज वैभव घर आया है। यह तो यहां का पता भूल ही गया था। चलो तुम दोनों अंदर चलो मैं तुम दोनों का पसंदीदा शेक बना कर लाती हूं।" मुस्कान की मां ने कहा
"मुस्कान इतना सब हो गया तुमने मुझे बताया ही नहीं, कम से कम एक बार.... एक बार तो मुझे बता देती।" वैभव ने कहा
"तुम थे कहां? तुम तो चले गए थे सब कुछ छोड़ कर किसी को बताया भी नहीं। एक बार भी मिलने की कोशिश नहीं की, कितना फोन किया था तुम्हें पर तुमने एक बार भी जवाब नहीं दिया कम से कम बताते तो सही कि ऐसा क्या हो गया की अपने सबसे अच्छी दोस्त से मिले बिना ही चले गए थे?" मुस्कान ने पूछा
"वो मुस्कान मैं...... वैभव मुंह से बोल नहीं फूट रहे थे। उसकी आंखें नम थी, मुस्कान को सफेद रंग के कपड़ों में देखकर उसका दिल जार जार रो रहा था, क्या कहे वो? क्यों चला गया था वो?
"वैभव मेरी तरफ देखो", मुस्कान ने कहा तो वैभव की आंखों ने वो सब कह दिया जो शायद उस दिन वैभव नहीं कह पाया। वैभव वहां से उठा और नम आंखों के साथ वहां से निकल गया। आंटी आवाज देती रही मगर वो रुका नहीं। वो सीधा होटल में अपने रूम में पहुंचा।
मुस्कान का वो उदास चेहरा, उसकी वो स्याह आंखें, खोल रंगो सी झिलमिलाती लड़की के बदन पर वो सफेद रंग का सूट, क्या कल्पना की थी उसने और क्या हो गया। क्यों एक बार भी जानने की कोशिश नहीं की, उफ्फ, इतनी शर्मिंदगी महसूस हो रही थी, उसने आईने में देखा वो खुद से नजरें नहीं मिला पा रहा था। एक मुस्कान ही थी जो उसे समझती थी, जिसने हमेशा उसका साथ निभाया और उसने क्या किया, बीच मजधार में अकेला छोड़ दिया उसे, जब उसे उसकी सबसे ज्यादा जरूरत थी वो नहीं था उसके साथ। उसे लगा उसे सांस ही नहीं आ रही थी। एक घुटन महसूस हुई। वो होटल की बालकनी में गया। पास ही बने पार्क में बच्चे एक दूसरे पर पानी की पिचकारी चला रहे थे। उसने कैलेंडर में देखा। कल तो होली है
अगले दिन मुस्कान के दरवाजे पर दस्तक हुई। मुस्कान ने दरवाजा खोला।
सामने वैभव था उसके हाथ में फूलों का गुलदस्ता था और दूसरे हाथों में रंगो की टोकरी। वैभव घुटनों पर बैठ गया।
"मुस्कान, हां मैं नहीं देख सकता था अपनी जिंदगी को बेरंग होते हुए, तुम्ही तो थी जिसने मेरी जिंदगी में रंग भरे, मुझ पर भरोसा किया। बताओ कैसे देखता तुम्हें किसी और का होते हुए। प्यार करता था और करता हूं तुमसे, जबसे प्यार को समझा है प्यार को जाना है, बस बोल नहीं पाया तुम्हें, क्या मुझे एक मौका नहीं दोगी, मेरी जिंदगी में क्या तुम फिर से रंग नहीं भरोगी। बताओ मुस्कान?" वैभव ने लगभग रोते हुए कहा।
मुस्कान की आंखें नम थी, उसने वैभव को उठाया और टोकरी से रंग निकाला और उसके चेहरे पर रंग लगा कर कहा, "हैप्पी होली बुद्धुराम" और दोनों ने एक दूसरे को गले लगा लिया। आसमान भी आज रंगीन था हरे नीले पीले रंग अपनी छटा बिखेर रहे थे और हां.... वो मुस्कान का सफेद रंग का सूट उसने भी आज रंगो का जामा पहन लिया था।
समाप्त
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