पराया सा अपना घर
पराया सा अपना घर
दीप्ति सुबह से कुछ ज्यादा ही फुर्ती से काम कर रही थी। करे भी क्यों नहीं उसका मनपसंद सीरियल जो आने वाला था। काम खत्म कर के वो हॉल में टीवी के सामने जा बैठी। अभी 10 मिनट ही हुए थे, पीछे से ससुरजी के खांसने की आवाज आई। उसने फटाक से सिर पर पल्लू डाला और रिमोट साइड में रख दिया। ससुरजी ने रिमोट उठाया और न्यूज़ चैनल लगा लिया। वो मन मसोस कर रह गयी। बुझे मन से वो वापस अपने काम में लग गयी। दीप्ति एक संयुक्त और परम्परागत परिवार में ब्याही हुई लड़की थी। जब वो ससुराल में आई तो उसने देखा हॉल में ही एक बड़ा टीवी लगा है। सासू माँ ने बड़े प्यार से कहा कितना अच्छा लगता है जब सब परिवार वाले साथ मिल कर टीवी देखते हैं, इसीलिये हमारे घर में हॉल में ही टीवी लगा है। दीप्ति ने सोचा चलो अच्छा है सब मिलजुल कर देखेंगे।
पर वो दिन कभी आया ही नहीं, वो और उसकी जेठानी के आते ही सासू माँ ने रिटायरमेंट की घोषणा कर दी। रसोई की जिम्मेदारी उनके माथे पर डाल दी। अब तो टीवी ही उनका साथी था। दीप्ति का बहुत मन होता पर सासू जी का दिल तो सास बहू के सीरियल पर ही अटका रहता।
दीप्ति को अपने कॉलेज के दिन याद आते, जब वो लोग रोडीज़ के ऑडिशन की चर्चा करते या नए रियलिटी शो के बारे में गॉसिप कर रहे होते। विराट का नया लुक रणवीर की नई पिक्चर उनकी बातों में शुमार होते।
आखिर एक दिन उसकी जेठानी ने अपने पतिदेव को कहकर एक टीवी मंगवा ही लिया, टीवी आते ही महाभारत का लाइव टेलीकास्ट दीप्ति को देखने को मिला।
'सब अपने-अपने कमरे में घुसे रहेंगे, परिवार में जब टीवी आता है, परिवार बंट जाता है, फिर बहुओं का क्या है, काम धाम छोड़ कर टीवी में ही उनका दिल लगेगा।' सासु माँ ने तुर्रा छोड़ा।
'अरे भाई इतना बड़ा टीवी लगा तो है जिसका मन करे हॉल में ही देख लो, फालतू की भीड़ की जरूरत ही क्या है' ससुरजी ने दूसरा तीर छोड़ा।
अगले ही दिन वो टीवी सासू माँ ने ये कहते हुए दीप्ति की ननद के यहां भिजवा दिया।
बिचारी ऋचा पूरे दिन अकेली रहती है, उसकी सास को किट्टी से ही फुरसत नहीं मिलती, कमरे में आराम से बैठकर टीवी तो देखेगी।
और नया टीवी ऋचा दीदी के घर चला गया।
आज इंडिया और पाकिस्तान का फाइनल मैच था। दीप्ति सुबह से ही इंतज़ार कर रही थी। आज तो हर हालत में वो मैच देख कर ही रहेगी। सासू माँ को वो 1 हफ्ते पहले ही नोटिस दे चुकी थी, कि फाइनल मैच तो उसे हर हालत में देखना है।
जल्दी-जल्दी काम सलटा कर वो हॉल में गयी, टीवी ऑन किया ही था कि दादी सास जोर से चिल्लाई-
'अरी ओ बहू, तुझे दिखाई नहीं दिया कि मैं यहां बैठी हूँ, मेरी आँखों का ऑपरेशन हुआ है और तुझे टीवी की पड़ी है। हे भगवान ये आजकल की बहुओं में संस्कार ही नहीं है।'
दीप्ति की आँखों में आंसू ही आ गए, वो अपने कमरे में गयी और बीते दिनों को याद करने लगी। कैसे जब मैच होता था उसके मायके में सारा परिवार यहाँ तक की पड़ोसी भी उसके घर इकट्ठे होते, हर चोक्के छक्के पर जो धमाल मचता वो देखने लायक होता। दीप्ति सोचती ये आज़ादी है, कैसी है आजादी, कौनसी आजादी, कहाँ की आज़ादी, जहाँ एक बहू को घर में इसलिए लाया जाता है जैसे उस पर एक बहुत बड़ा अहसान कर रहे हो।
'अब ये घर तुम्हारा है बहू, तुम देखो' जिम्मेदारी के नाम पर पूरे घर का बोझ उस पर डाल दिया जाता है।'
वो सबसे आखिर में सोती है, आखिर में खाना खाती है, सबसे पहले उठती है, पूरे दिन चकरघिन्नी बनी इधर से इधर घूमती रहती है, बदले में उसे क्या मिलता है, क्या होता है उसके पास अपना कहने को, सब कुछ दे कर भी वो बाहर वाली होने का तमगा लिए घूमती है।कभी कर सकी है वो अपने मन का..।
ये कहानी लिखने का उद्देश्य सिर्फ इतना है कि आज भी लोग अपनी मानसिकता बदलने को तैयार नही है, एक लड़की की छोटी छोटी इच्छाओं की बलि दे दी जाती है वो बहु बीवी भाभी माँ सब बन जाती है, बस नही बन पाती है तो वो लड़की, जो कभी अपने लिए भी जीती थी। हम बड़ी बड़ी बातें कर रहे है पर छोटी छोटी बातों पर हमारा ध्यान ही नहीं जाता। महिला सशक्तिकरण की बातें हो रही है, उनके अधिकारों की बात हो रही है, पर आज भी हमारे भारतीय समाज में बहू बनते ही उसके हक़ को छीन लिया जाता है।
समय निकाल के देखिये कहीं हमारे आस-पास तो कोई दीप्ति नहीं, जो इसी तरह अपनी छोटी-छोटी इच्छाओं का बलिदान दे रही है, अगर है तो उसे इज़्ज़त दे, प्यार दे, उसकी छोटी छोटी खुशियां उसे लौटने की कोशिश करे। वो सिर्फ बहू, ननद, भाभी या माँ ही नहीं है, उसकी अपनी भी एक पहचान है, उसे अपने लिए भी समय निकालने दें।
