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Shilpa Jain

Inspirational

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Shilpa Jain

Inspirational

कूँची वाला योद्धा

कूँची वाला योद्धा

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"किसी लायक नही है तू, हमारे ही भाग फूटे थे कि हमें ऐसी औलाद मिली।" माँ की आंखों में आंसू थे।

"कितने अरमानो से पढ़ाया था इसे,दिन रात मेहनत की, ये सोचा कि पढ़ कर नाम रोशन करेगा।" पापा का चेहरा गुस्से में तमतमाया हुआ था।

"भैया, मेरे सारे सपने इसीलिए तोड़ दिए गए ताकि आप पढ़ सको, क्या आपको हमारा जरा भी ख्याल नही आया।" नन्ही रुचि मानो सवाल पूछ रही हो।

बस बस बस........माँ पापा छोटी बहन रुचि सबकी आवाज़े उसके कानों में गूंज रही थी। किसी काम का नही है वो, क्या वो जानता नही कि मां पापा के कितने सपने जुड़े है उसके साथ, क्या फायदा ऐसी जिंदगी का?

आज उसका इंजीनियरिंग का रिजल्ट आया था, वो फेल हो गया था। हाँ, वो पास नही कर सका था इंजीनियरिंग की परीक्षा। तोड़ दिया था उसने अपने माता पिता का सपना। कोई लक्ष्य भी तो नही था उसकी जिंदगी का। सोचता था कि जब इंजीनियर बन जायेगा तो सब ठीक हो जाएगा।

पर उसे कभी समझ ही नही आयी ये इंजीनियरिंग, कैसे समझाता अपने पापा को कि गणित के सवाल उसके दिमाग में नही घुसते, नही समझ आता उसे कुछ। उसे अच्छे लगते है रंग, कितने खुशी देते है ये रंग, उसने पीछे छोड़ दिया था अपने इस ख्वाब को, पूरी कोशिश की थी,पर नही उसकी जिंदगी में अब सब रंग गायब हो गए है, है तो बस अंधेरा, घनघोर अंधेरा।

पिताजी ने उन रंगों को परे रख उसे इंजीनियरिंग की किताबें पकड़ा दी, वो जानता था कि सबकी किस्मत तभी बदल सकती है जब वो कुछ बन कर दिखाए, पर हार गया वो, नही पूरे कर पाया उनके सपने।

अब कुछ नही बचा था, इन रेल की पटरियों पर चलते हुए उसकी जिंदगी के एक एक पल उसके सामने घूम रहे थे, शायद आज का दिन उसकी जिंदगी का आखिरी दिन था, वो इंतज़ार कर रहा था कि कोई ट्रैन आये और वो उसके नीचे आकर अपनी जिंदगी की इहलीला समाप्त कर लें।

"बेटा।" तभी उसके कंधे पर एक थपथपाहट हुई।

"ये बी4 का डिब्बा यही आएगा।" वो नही जानता था फिर भी उसने हाँ में सर हिला दिया वो अधेड़ महिला उसके पास आकर बैठ गयी।

तभी ट्रैन आयी। उसका मन हुआ छलांग लगा दे, मगर न जाने क्यों उसका शरीर जड़ हो गया उसने खुद को धकेलना चाहा पर वो एक इंच भी हिल नही पाया।

"बी4 डिब्बा तो काफी आगे चला गया।" उस औरत के चेहरे पर मायूसी दिख रही थी। वो भारी अटैची जिसे लेकर वो साथ चल रही थी, उसे उतना दूर ले जाना उसके लिए मुश्किल था।

"चलिए, मैं आपको छोड़ देता हूँ।" उसने कहा।

"बेटा, तुम भी उस ट्रैन में जा रहे हो। उसने हाँ में सर हिला दिया जबकि वो खुद नही जानता था कि उसकी मंजिल कहाँ है। वो ट्रेन में बैठ गया, वो न ये जानता था कि ये ट्रैन कहाँ जा रही है। उसे तो अब ये भी नही पता था कि जिंदगी कहाँ जा रही है।

ट्रैन चल पड़ी, वो भी सामने खाली सीट पर बैठ गया।

"लो बेटा, पानी पी लो, गर्मी बहुत है।" उस औरत ने कहा।

"नही।" उसने मना किया तब भी उस औरत ने उसे पानी की बोतल पकड़ा दी।

ट्रैन चल रही थी। दोपहर हो गयी थी और वो औरत शायद अपने थैले से कुछ सामान निकाल रही थी। तभी उसके थैले में से एक फोटो निकल कर गिर गयी और उड़ कर उसकी सीट पर आ गयी। वो औरत न जाने क्यों सिहर सी गयी। उसने फट से फ़ोटो अपने हाथ में ले ली ताकि वो फ़ोटो उड़ कर कही नही चली जाए।

उसने वो फोटो उस महिला को पकड़ाई तो मानो उन्होंने चैन की सांस ली उन्होंने उस फोटो को गले से लगा लिया और उनकी आंखों से एक आंसू बह निकला। रुंधे गले से उन्होंने उसे धन्यवाद कहा।

"जानते हो बेटा यह तस्वीर मेरे बेटे की है, लेफ्टिनेंट अजय सिंह की। ये उसकी आखिरी तस्वीर है पिछले साल जो बाढ़ आई थी उसमें मेरा पूरा घर डूब गया था सब कुछ तबाह हो गया था बस उसकी आखिरी निशानी ये तस्वीर बची है मेरे पास। यह तस्वीर मुझे मेरी जान से भी ज्यादा प्यारी है आज अगर यह खो जाती तो मेरे जीने की आखिरी वजह भी खो जाती तुम नहीं जानते तुमने मुझे क्या लौटा दिया है। मैं फौजी की मां हूं और एक फौजी की बीवी हूं। मैं जानती हूं की फौजी के घर की औरतें रोती नहीं है, हमने हमारे बच्चे देश को दिए हैं वह देश की रक्षा करते हुए कुर्बान हो गए पर कहीं ना कहीं बेटा….. एक मां का दिल है भर आता है। यह कहते हुए उनकी आंखों से दो आंसू बह निकले।

वह सोचने लगा क्या कर रहा है क्या करने जा रहा था वो? क्या उसकी जान की कीमत इतनी कम है। इतनी छोटी सी उम्र में उस फौजी ने देश के लिए अपनी जान कुर्बान कर दी और वह एक फेलियर से घबरा गया।

क्या होगा जब उसकी लाश टुकड़ों में कटकर उसके घर जाते क्या उसके मां-पापा यह देख पाते क्या उसकी छोटी बहन ये स्वीकार कर पाती इस सदमे को जिसने उसके हाथों में राखी बांधी थी क्या वह उसके उसके शरीर के टुकड़ों को देख पाती?

पता नहीं उसको क्या सुझा उसे अपना बैग उठाया बैग में वही रंग वही ड्राइंग के पेपर आज भी थे जिन्हें अपनाकर वह अपनी जिंदगी रंगीन बनाना चाहता था मगर पापा के सपने मां के अरमान शायद इन रंगों से बढ़कर हो गए थे

"आंटी जी क्या आप मुझे यह तस्वीर देंगे, बस कुछ समय के लिए मुझे यह तस्वीर दे दीजिए" उसने अनुरोध किया उन्होंने वह तस्वीर उसे पकड़ा दी। वह उस तस्वीर के हर पल को कैद करने लगा। ये तस्वीर सिर्फ एक तस्वीर नही जज्बात थे, जहाँ एक माँ अपने बेटे को मिले पदक पर गर्व कर रही थी ये तस्वीर शायद सेना के दीक्षांत समारोह में ली गयी थी जहाँ वो महिला अपने बेटे के साथ गर्व से खड़ी थी।

उसकी कूँची उस सफेद पेपर पर चलने लगी, वो मगन होकर अपने काम मे लग गया। वो महिला बस अपलक उसे निहार रही थी, लगभग 3 घंटे में वो स्कैच बन कर तैयार था।

"ये आपके लिए है, मैं शायद इतना लायक तो नही कि अपने देश के लिए कुछ कर पाऊँ, पर जो मैंने आज किया है, उसकी खुशी मैं दिल से महसूस कर पा रहा हूँ।" उसकी आंखें भी ये बोलते हुए नम थी।

जब उन्होंने वो तस्वीर उठाई तो उनके आंखों से गंगा जमुना बह निकली। ये तो ऐसा लग रहा था मानो वो लम्हा फिर से जीवित हो गया हो। तिरंगे की आड़ में खड़ा उनका बेटा मानो उन्हें ही निहार रहा हो। वो अपने आंसू रोक ही नही पाई, उनके कण कण से बस उसके लिए आशीष ही उमड़ रहा था

"बेटा, आज तुमने एक माँ को फिर से उसके बेटे से मिला दिया, तुम्हारा ये स्कैच देखकर ऐसा लग रहा है, मानो मेरा बेटा फिर से मेरा बेटा मेरे पास आ गया हो, सचमुज आज मुझे एक फरिश्ता मिल गया है। उन्होंने उसे आशीर्वाद देते हुए कहा।

"नही आंटीजी, फरिश्ता तो आप है मेरे लिए क्योंकि आज आपने मुझे इस जिंदगी को जीने का एक नया मकसद दिया है। मैं आपको कभी नही भूलूंगा।" उसने कहा।

ट्रैन रुक गयी। वो उतर गया, उसकी आंखें भी नम थी, आज सच में उसे एक नई जिंदगी मिल गयी थी। घर पहुंचा तो माँ पापा छुटकी सबकी जान में जान आयी। इन चंद घंटों में उन्होंने ख़ौफ़ के सभी पलो को जिया था।

"पापा, मैं फेल हो गया हूँ।" उसने बताया।

"अरे पगले कोई बात नही, तू फेल हो गया तो क्या हुआ, मैं अपनी गलती मानता हूँ, मेरी ही जिद थी कि तू वो करे जो हम सबका जीवन संवार दे, मैं स्वार्थी हो गया था मेरे बच्चे, तू वो कर जो तू चाहता है।" पापा कहते कहते रो पड़े।

"पापा, मैं पेंटर बनना चाहता हूं वही मेरा सपना है पर इस सपने के साथ मेरा एक और लक्ष्य है। पापा आपने अपने बेटे को वापिस पा लिया पर इस भारत के बहुत से लाल है जिन्होंने देश के लिए अपनी जान की कुर्बानी दी है, अब मेरी जिंदगी का एक ही लक्ष्य है, उन परिवारों से मिलकर उन्हें उनकी कुछ बिछड़ी यादों को लौटना।

पापा शायद ये न समझे कि बात क्या है पर वो ये समझ गए कि कुछ तो है जो उनके बेटे को एक नई जिंदगी दे गया है। उस दिन के बाद उसने ये अपनी जिंदगी का ही लक्ष्य बना लिया। वो सोशल मीडिया, इंटरनेट के सहारे उन सैनिकों को ढूंढता जिन्होंने देश के लिए अपनी जान न्यौछावर कर दी, उन लोगो से मिलकर उस सैनिक के पोट्रेट उन्हें गिफ्ट करता है। जब लक्ष्य अच्छा हो और आपके इरादे नेक हो तो क़ायनात अपने आप आपका साथ देती है, उसके इस अभियान से लोग जुड़ते गए और कारवाँ आगे बढ़ता गया।

आज भारतीय सेना की तरफ से एक समारोह का आयोजन किया गया था औऱ उस समारोह में सैनिको के अलावा एक और व्यक्ति को सम्मानित करना था।

सुमंत आज स्टेज पर था, उसने माइक हाथ में लिया

" हर किसी की जिंदगी का कोई न कोई मकसद जरूर होता है, पर शायद जब आप मौत से सामना करते है तो वो आपको जिंदगी की कीमत बता देती है, आपको जिंदा रहने का मकसद बना देती है। मैं भी कुछ ऐसा ही करने जा रहा था, जिंदगी में मिली एक छोटी सी हार ने मेरे जिंदा रहने पर सवाल खड़ा कर दिया पर शायद कुदरत को यही बताना था कि अगर मैं जिंदा हूँ तो उसका एक मकसद है कि हर वो परिवार जिसने अपने लाल की कुर्बानी दी है, उनके चेहरे पर एक पल के लिए ही सही, मुस्कान ला पाऊँ। मैं जब भी किसी शहीद के परिवार से मिलता हूँ, मुझे ये लगता है कि हमारी ये जिंदगी उन लोगो की वजह से ही है। मैं सेना में नही हूँ न ही मैं सैनिक हूँ पर आज मैं भी खुद को एक योद्धा मानता हूँ जिसका जीवन का लक्ष्य बस उन चेहरों पर मुस्कान लाना है जिनकी दी हुई कुर्बानी की वजह से आज हम जी पा रहे है। जय हिंद"

पूरा सभागार तालियों से गूंज पड़ा एक ऐसे योद्धा के लिए जो बंदूक से नही बल्कि एक कूँची से कमाल दिखा रहा है।



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