वक़्त की मार
वक़्त की मार
विजयनगर मे एक रईस थे उनका नाम था - माधवेंद्र । कहा जाता है , उन्होंने शून्य से अपना व्यापार खड़ा किया था। उनका कारोबार विदेश तक फैला हुआ था। उनके घर मे नौकर चाकर की फौज थी। माधवेंद्र की मेहनत व अमीरी के चर्चे पूरे शहर मे थे।
वह गरीबों को दान धर्म भी करते थे। सभी कहते थे, लक्ष्मी जी घुटने टेक कर बैठी है। सब कुछ बहुत अच्छा चल रहा था। पर कहते है, ईश्वर इम्तिहान सब कुछ लेकर भी लेता है और सब कुछ देकर भी लेता है।
माधवेंद्र को डर्बी, घोड़ों की रेस में पैसा बर्बाद करने की लत लग गई। कारोबार से ध्यान हटता चला गया। शुरु शुरू मे कुछ भी असर नहीं होता था। पर पैसा तो पैसा होता है। आता है तो आता ही जाता है, पर जब जाता है तो उसे कोई रोक भी नही पाता है। अब माधवेंद्र शराब के भी आदी हो चुके थे। बेटे बहु ने सारे रिश्ते तोड़ लिए। पत्नी भी यह वक़्त की मार झेल न सकी अतः पक्षाघात का शिकार हो गई।
माधवेंद्र का सारा साम्राज्य समाप्त हो गया। लक्ष्मी जी ऐसी रूठी कि फिर पूरी तरह से माधवेंद्र कंगाल हो गए। अब न कोठी रही न गाड़ी, ना कारोबार ना ही वो रईसी जीवन......
कहते है समय बड़ा बलवान होता है,
एक समय ऐसा आया कि पत्नी की अंतिम यात्रा से माधवेंद्र को भागना पड़ा क्योंकि समाज के रक्षक अर्थात पुलिस की फौज पीछा कर रही थी। अंत मे उनको एक बड़े कुड़ेदान मे छिपना पड़ा।
जीवन मे सब कष्टों से कमाकर, अमीरी जिंदगी बिताकर फिर दोबारा सिर्फ उसकी कद्र ना करके सब कुछ गवांकर आखिर क्या मिला?
इसलिए सच ही कहा गया है,
जो इंसान वक़्त और धन की कद्र नहीं करता उसे दोनों की मार से कोई नही बचा सकता......
