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Ashish Kumar Trivedi

Fantasy Thriller

4  

Ashish Kumar Trivedi

Fantasy Thriller

विरासत

विरासत

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उमेश ने चारों तरफ नज़र दौड़ाई। दूर तक सिर्फ बंजर भूमि दिख रही थी। एक तिनका भी दिखाई नहीं पड़ रहा था। उसे सांस लेने में दिक्कत हो रही थी। प्यास से गला सूख रहा था।

वह बड़ी मुश्किल से उठा और पानी की तलाश में आगे बढ़ने लगा, लेकिन कहीं भी उसे पानी नहीं मिला।


मिले तो उसकी तरह भटकते लोग जो प्यास से परेशान थे। जिनकी सांसें उखड़ रही थीं। यह सब देख कर उमेश घबरा गया। वह ज़मीन पर बैठ गया। अपने हाथ ऊपर उठा कर भगवान से शिकायत करने लगा।

"ऐ, आप मुझे कहाँ ले आए ? सब तरफ तबाही का मंजर है। लोग सांस नहीं ले पा रहे। पानी के लिए तरस रहे हैं। कभी भी जीवन से हाथ धो बैठेंगे।"


तभी उसे आवाज़ सुनाई दी,

"इस सबके लिए तुम और ये सब दोषी हैं। मैं तुम्हें किसी नई जगह नहीं लाया हूँ। ये वहीं पृथ्वी है जो मैंने तुम लोगों को दी थी। तब यहाँ सांस लेने के लिए ताज़ी स्वच्छ हवा थी। पीने के लिए स्वच्छ निर्मल पानी। तुम लोगों के लालच ने इस धरती से सब कुछ छीन लिया। अब शिकायत कर रहे हो।"


उमेश सब सुनकर कुछ देर चुप रहा। फिर हाथ जोड़कर विनती की,

"आप सच कह रहे हैं प्रभु, सब हमारी गलती है। पर आप तो परम पिता हैं। हम पर दया कीजिए।"


"मैं तो दया करूँगा। पर आज मैं सब ठीक कर दूँ तो कल तुम फिर सब बिगाड़ दोगे। तुम मुझे बताओ कि क्या अपनी भावी संतति के लिए तुम्हारा कोई दायित्व नहीं है। उन्हें विरासत में क्या दे जाओगे ?"

उमेश इस सवाल पर बिल्कुल ही चुप हो गया।


अचानक किसी ने उसे झझकोरा,

"उठो जाकर बिस्तर पर सो जाओ।"

उमेश की आँख खुली तो उसने खुद को अपने ड्राइंग रूम के सोफे पर पाया। उसकी गोद में एक पत्रिका खुली पड़ी थी। उसमें पर्यावरण पर बढ़ते खतरे के बारे में लिखा था। 

उमेश समझ गया कि उसने एक बुरा ख्वाब देखा है। पर वह ख्वाब जो यदि हम ना चेते तो सच हो जाएगा।


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