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विनोद आज जैसे ही ऑफिस से लौटा, उसने देखा..हॉल में बेटी श्रेया के साथ अम्मा बैठी हैं.. उन्हें देखकर खुशी से चहकते हुए उसने कहा-"अरे....! अम्मा तुम कब आई...चलो, अच्छा हुआ, इस बार की होली में अम्मा के हाथो की गुझिया खाने को मिलेगी..!" ये कहते हुए उसने अम्मा के पैर छू लिए फ़िर बाथरूम जाते हुए उसने पत्नी को आवाज़ देते हुए कहा - "नीता, बढ़िया कड़क चाय बनाओ भई... आज मैं अम्मा के साथ चाय पिऊँगा.. !"
थोड़ी देर बाद फ्रेश होकर आते ही विनोद ने अम्मा के साथ चाय पीते पीते गाँव का सारा हाल चाल पूछा और पुनः खुश होकर उसने कहा - "अम्मा तुम्हें देखकर तो होली में उबटन लगाना, धागा नापना और घर की होली जलने के बाद चौक में बाबुजी के साथ होली जलाने जाना और ढोलक मजीरे के साथ गाँव की फाग का सारा दृश्य तो मेरी आँखों के सामने घूमने लगा ...!"
इस सुखद स्मृति के साथ विनोद ने श्रेया को गोद में बिठाते हुए उससे कहा - "जानती हो बेटा, जब मैं छोटा था ना...रोज़ रात में दादी से कहानी सुनने के बाद ही मैं सोता था l है ना अम्मा...!"
तभी नीता ने विनोद को आवाज़ दी- "एक मिनट, इधर आएँगे क्या...?"
"हाँ.. हाँ.. अभी आया" कहते हुए जब वो नीता के पास पहुँचा तो उसने देखा... नीता गुस्से में लाल हुई जा रही थी...!
ये देख विनोद ने आश्चर्य से पूछा--" क्या हुआ..?"
"कुछ नहीं...!! कुछ ज़्यादा ही प्रेम उमड़ रहा है अम्मा के साथ..!मैं अभी से बता दे रही हूँ... अम्मा सिर्फ़ होली तक ही रहेंगी.. मैं ज़्यादा दिन तक जी हुजूरी नहीं कर सकती..!" ये कहते हुए नीता ने पास में रखे पानी से भरे जग को धक्का मारकर उंडेल दिया..!
और पुनः कहने लगी - "साहब को... गाँव की होली की याद आ रही है, क्या यहाँ होली नहीं होती...! और रही कहानी की बात... तो मोबाईल में जैसी भी कहानी देखनी हो पलक झपकते ही मिल जाएगी...! "
ये सुनते ही विनोद का दिल असहजता से धड़कने लगा ..मानों साँसे चलते चलते अपना रास्ता भटक गई हों.. एक गहरी स्वांस लेते हुए ... जब उसने हॉल में बैठी अपनी अम्मा की तरफ़ देखा तो सोचने लगा... "क्या, 'माँ और अपने गाँव' की तुलना में....नीता के बताए 'विकल्पों' का वजन कभी ज़्यादा हो सकता है...??"