विकास की बयार
विकास की बयार
"अरे, तुम अष्ट देवियां कहां चलीं?" रसोईघर से निकल कर पल्लू से हाथ पोंछती रुक्मणी ने ज्योति की सहेलियों से पूछा।
" चाची, हम सब जा रहे हैं, कंप्यूटर सीखने।" अपनी लंबी चोटी घुमाते हुए प्रियंका ने बताया।
"कंप्यूटर सीखने, उसमें तो बहुत फीस लगेगी, ज्योति के बाबूजी चंदन की पढ़ाई का खर्चा तो बमुश्किल जुटा पा रहे हैं, कैसे होगा ?"
" चाची, आपको फ़िक्र करने की कोई जरूरत नहीं है। इस ट्रेनिंग की कोई फ़ीस नहीं है, निशुल्क है।" चाची के कंधों पर झूलते हुए मोनी बोली।
"क्या कहती हो बिटिया, फ़ीस नहीं लगेगी ?"
" हां चाची, इस ट्रेनिंग के पूरी होने पर हमारा इंटरव्यू, वो क्या कहते हैं, साक्षात्कार होगा।"अलका ने बड़े गर्व से कहा।
" सामने बैठा कर सवाल जवाब पूछते हैं, वही न ?"
"वाह चाची, आप तो खूब जानती हैं !"खिलखिलाते हुए नंदिनी ने कहा।
"अरे नहीं बिटिया, वह क्या है कि टीवी में कहते हैं ना कि इंटरव्यू है तो, हम समझ गए।"
"चाची, तो इसमें सफल होने पर बीपीओ में नौकरी मिलेगी।"चांदनी ने चाची का मुंह अपनी ओर घूमाते हुए कहा।
" नहीं बिटिया, इनके बाबूजी नौकरी तो ना करने देंगे, लोग क्या कहेंगे ?"चाची के माथे पर चिंता की लकीरें गीनी जा सकती थीं।
"चाची, आप देखना, जब घर में पैसा आने लगेगा तो जिन चीज़ो के लिए आप मन मारे रहती थीं, उनको ख़रीद सकेंगी।"अलका ने समझाते हुए कहा।
" अपनी तो कट ही रही है, बिटिया, हां, ज्योति की शादी के काम आ सकता है।"असमंजस से बोलीं।
" चाची, अब आधार कार्ड, पैन कार्ड से लेकर आयुष्मान कार्ड और अन्य नित्य नवीन जानकारियां भी सहज ही उपलब्ध हो पाएंगी।" ऋतु अपने उत्साह से चाची को सहज करने की कोशिश में बोली।
" तो चाची अब हम चलें, क्या नाम दिया है आपने हमें ? अष्ट देवियां ! चाची, आपका आशीर्वाद रहा तो यह संख्या बढ़ती ही जाएगी। बेटियां घरों और खेतों में ही नहीं, हर जगह अपनी मौजूदगी सुनहरे अक्षरों में दर्ज़ करवाएंगी।"
(यह कहानी नहीं है, हकीकत है फतुहा के अलावलपुर और बख्तियारपुर के लखनपुरा डिजिटल गाँव की, जो बदलते बिहार की तस्वीर पेश कर रहे हैं।लखनपुर गाँव की 10 लड़कियां रूरल बी पी ओ में काम कर रही हैं।)