विकास भागा जा रहा है

विकास भागा जा रहा है

2 mins
506


विकास उँची गर्दन किए गाँव से शहर की ओर भागा जा रहा था।

विकास रुको ! गाँव की सुन तो लो पहले तुमने आत्म निर्भरता छीनी शुद्ध तेल, घी, कपड़ा बुनने रंगने से लेकर सभी काम करने में गाँव सक्षम था। बिना पैसे अनाज से ट्राँजेक्शन करता था गाँव को किसी कार्ड की जरूरत नहीं थी आज तुम ने आकर सब कुछ छीन लिया हर कोई पैसे के पीछे भाग रहा है।

गाँव, मैंने तुम्हें कितनी सुख सुविधा दी फिर भी तुम नाशुक्र हो अभी जिस सड़क पर तुम दौड़ रहे हो वहां कच्ची पगडंडी हुआ करती थी‌। बिजली दूर संचार की सुविधा मिली।

विकास ! सुविधा मिली मैं मानता हूँ लेकिन बदले में मैंने खोया भी बहुत। तुमने हमारे खेतों को लील लिया उस की जगह बिल्डिंग बनी पर वातावरण की शुद्धता चली गई। सस्ती दालें अनाज सब विकास के नाम पर बने इन मोलों में चौगुनी कीमत पर गाँव को खरीदनी पड़ रही है।

वहीं गाँव जो अन्नदाता था।

लेकिन विकास के आने से पलायन कर शहर आ गया विकास को भोगने।

पुल पर चलने का टेक्स, सड़क टेक्स, घर का टेक्स, कुछ भी खरीदे तो टेक्स, खाएं तो टेक्स, पानी पीये तो...... बिजली पर टेक्स लगता है।

गाँव को तो लगता है सिर्फ टेक्स देने के लिए और फोन को रिचार्ज करने मोलों से खरीददारी के लिए ही कमाते कमाते दोहरा हो रहा है।

विकास आगे आगे बेतहाशा दौड़ रहा है और गाँव हाँफता हुआ उसे पकड़ने के लिए भाग रहा है।


Rate this content
Log in

Similar hindi story from Drama