विचारों का सागर
विचारों का सागर
सुबह के सात बजकर पचास मिनट हो रहे हैं ।आज भाई दौज का पर्व उल्लास के साथ मनाया जा रहा है। वैसे भाई और बहन के प्रेम का त्यौहार रक्षाबंधन माना जाता है। पर आज के दिन भी बहनें अपने भाई के प्रति प्रेम को प्रदर्शित करती हैं। भाई दौज का महत्व किसी भी तरह रक्षाबंधन के पर्व से कम नहीं है।
भाई दौज का दूसरा नाम यमद्वितिया है। यमद्वितिया पर्व की कहानी उस समय की है जबकि मानव सभ्यता ही आरंभ नहीं हुई थी। पशुओं और पक्षियों की तरह मनुष्यों में भी मर्यादा का अभाव था। मर्यादा हीन मानव जाति भी पशुओं की ही भांति थी।
सृष्टि के आरंभ का समय था। जब सृष्टि का ही पूरी तरह विकास नहीं हुआ था, उस समय पारिवारिक मर्यादा का भी जन्म नहीं हुआ था। प्रकृति के मानवीकरण की गाथाओं में अनेकों मर्यादा हीनता की कहानियाॅ बन चुकी थीं। वास्तव में सही क्या है और गलत क्या, इस विषय में भी सही सही निर्धारण नहीं था। हालांकि उस काल में भी कुछ ईश्वर प्रदत्त चेतना के कारण कुछ व्याप्त व्यवहार से अलग विचार पाने में सक्षम हुए। इन्हीं कुछ को मानव सभ्यता के लिये संस्कारों और मर्यादा की नींव रखने का जिम्मेदार कहा जा सकता है। मनुष्यों को पशुओं से अलग करने की परिपाथी वास्तव में कुछ के प्रयत्नों का परिणाम थी। अन्यथा मर्यादा के अभाव में देवगुरु बृहस्पति की पत्नी के चंद्रमा से संबंध की गाथा तथा बृह्मा जी द्वारा अपनी ही मानस पुत्री संध्या पर मोहित हो जाने की गाथाओं को गलत नहीं माना जा रहा था।
मानव सभ्यता पर जिन्होंने सबसे बड़ा उपकार मर्यादा की स्थापना कर किया वह कोई और नहीं बल्कि भगवान सूर्य के पुत्र यम देव थे। यमदेव के इन्हीं प्रयासों से प्रसन्न होकर भगवान विष्णु ने उन्हें न्याय के देवता के पद पर प्रतिष्ठित किया।
मनुष्य जो देखता है, वह उसी के हिसाब से सही और गलत समझता है। यमदेव की जुड़वां बहन यमी उस समय के संस्कारों के हिसाब से यमदेव पर मोहित हो गयीं। पर यमदेव अपनी बहन के प्रस्ताव पर भी विचलित नहीं हुए। उन्होंने यमी को संबंधों की मर्यादा बतायी।आखिर देवी यमी लज्जा के कारण धरती लोक पर आकर रहने लगीं। तथा यमुना नदी के रूप में धरती पर प्रवाहित होने लगीं।
यमदेव को अपनी बहन का स्मरण हुआ। वह आज के ही दिन अपनी बहन से मिलने धरती लोक आये। फिर भाई और बहनों के मध्य काफी देर वार्तालाप हुआ। यमदेव ने अपनी बहन को सलाह दी कि अब वह भगवान श्री कृष्ण को ही अपने पति के रूप में आराधना करें। बहन को आशीर्वाद भी दिया कि कृष्णावतार में भगवान श्री कृष्ण न केवल उसके तट पर बाल लीला करेंगें अपितु उसे पत्नी के रूप में भी स्वीकार करेंगें।देवी यमुना ने अपने भाई को टीका लगाकर विदा किया। उसी दिन से पति पत्नी अथवा प्रेमी प्रेमिका के अतिरिक्त भी भाई और बहन के पवित्र प्रेम की अवधारणा की स्थापना हुई। तथा भाई दौज के पर्व का आरंभ हुआ।
द्वापर युग के अंत में भगवान श्री कृष्ण ने न केवल यमुना नदी के तट पर अपना बाल्य काल बिताया अपितु देवी कालिंदी को अपनी पटरानी भी बनाया। देवी यमुना के स्त्री रूप में भगवान श्री कृष्ण से मिलन में भगवान श्री कृष्ण के सखा अर्जुन ने महती भूमिका निभाई थी।
