Anita Sharma

Drama Tragedy Inspirational

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Anita Sharma

Drama Tragedy Inspirational

विचारों का बदलाव

विचारों का बदलाव

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"पम्मी पानी लाओ"

ऑफिस से आते ही दीप्ति के जेठ जी ने आवाज दी। जिसे सुनकर पम्मी यानी दीप्ति की जेठानी भागते हुये पानी लेकर आई और गिलास उनके हाथ में पकड़ा कर खुद जमीन पर बैठकर उनके जूते, मोजे उतारने लगी।

दीप्ति ये सब बहुत ही ध्यान से देख रही थी। सच में जेठानी जी जेठ जी की कितनी सेवा करती है। तभी उसके पति उसे अक्सर ताना सुनाते है कि " मेरी भाभी के जैसी अच्छी पत्नी तुम कभी नहीं बन सकती" और आज अपनी जेठानी के काम देखकर उसे भी यही लग रहा था। क्योंकि दीप्ति ऐसे अपने पति के जूते मोजे तो कभी न उतारे चाहे इसके लिये उसे कितनी भी लड़ाई क्यों न लड़नी पड़े।


तभी पीछे से दीप्ति के पति दिलीप ने कान में फुस फुसाया..... " सीखो मेरी भाभी से कुछ सीखो"

उसकी ये बात सुनकर दीप्ति अंदर तक सुलग गई जी तो किया कि चिल्ला के बोल दे " क्या सीखूँ इसमें सीखने की जरूरत मुझे नहीं तुम्हारी भाभी को है" पर उस समय कुछ भी बोलना अपने लिये कांटे बोने के समान था। सो चुपचाप वो वहाँ से उठकर चली गई।

दीप्ति की शादी को अभी महज आठ महीने ही हुये है। मायके में तो हमेशा पापा को माँ की हेल्प करते और उनका सम्मान करते देखा था। और ससुराल में सासु माँ तो थी नहीं तो शादी के तुरन्त बाद ही वो दिलीप के साथ उसकी पोस्टिंग वाली जगह पर चली गई थी। अभी वो कुछ दिनों के लिये अपनी ससुराल आई थी। जहाँ उसके पति उसे बार - बार अपनी जेठानी पम्मी से कुछ सीखने को कह रहें है।


ससुराल के तौर तरीके तो वो भी सीखना चाहती थी। पर ये सब करने का सोचना भी उसके आत्मसम्मान को ठेस पहुंचा रहा था। अगर पति की तबीयत खराब हो या कोई परेशानी हो तो उसे ये सब करने में कोई दिक्कत नहीं है। पर बिना किसी वजह के यूँ पति के जूते मोजे उतारना पति की हर जायज, नाजायज बात को बिना किसी सवाल के मानना वो क्या शायद कोई भी औरत नहीं करना चाहेगी।

पर ऐसी क्या वजह होगी की जेठानी जी ये सब बिना उफ किये इतने सालों से करे जा रहीं है ? इसी उधेड़ बुन में लगी दीप्ति अपने कमरे के बाहर बने बरामदे में इधर से उधर टहल रही थी कि उसे कुछ आवाजें सुनाई दी। वो सधे कदमों से आवाजों की दिशा में आगे बढ़ी।


ये आवाजें जेठानी जी के कमरे से आ रहीं थी। दीप्ति जैसे ही उनके कमरे के पास पहुंची जेठानी जी की आवाज एकदम साफ सुनाई देने लगी! वो रोते हुये जेठ जी से बोल रहीं थी.....

" मुझे माफ कर दो, मैं कल याद से सारे काम कर दूँगी"

और जेठ जी गुस्से में बोल रहे थे.....

" सारा दिन घर में पता नहीं क्या करती रहती हो? एक काम ढंग से नहीं होता। अगर तुम्हें काम नहीं करना तो कल ही मायके के लिये निकल जाना समझी।"


दीप्ति दरवाजे के बाहर खड़ी ये सब सुनकर सन्न रह गई अब उसे समझ आ रहा था कि शायद जेठ जी के इसी गुस्से की वजह से वो उनके वो भी काम करती है जो वो नहीं करना चाहतीं। दीप्ति ने सुबह होते ही उनसे इस बारे में बात की। पहले तो जेठानी जी थोड़ा घबराई, पर उसके बार - बार पूछने पर आखिर वो टूट गई, और आँखों में आँसू भरकर बोली......


"दीप्ति मेरे मायके में माँ, पापा तो अब रहे नहीं, और मेरा कोई सगा भाई भी नहीं है। जो चाचा ताऊ के बेटे है वो हमें ज्यादा पूछते नहीं है। इसलिये तुम्हारे जेठ जी मुझे बात - बात में मायके जाने की धमकी देते रहते है।

वो कहीं सच में मुझे घर से न निकाल दें इसलिये चुपचाप उनकी हर बात हर काम करती रहती हूँ। "


दीप्ति ने पम्मी के कंधे पर हाथ रखते हुये कहा....

"दीदी गलतफहमी है ये आपकी कि आपका सगा भाई होता तो वो आपका साथ देता। दीदी ऐसी बातों में कोई साथ नहीं देता। इन सब में तो एक औरत को खुद ही साहस दिखाना होता है। और आप ये घर से निकालने की धमकी से इतना डरती क्यों है?


एक औरत को घर से निकालना इतना आसान है क्या? हम महिलाओं के लिये कितने कानून बने है, पर वो कानून भी तभी काम करेंगें जब हम शिकायत करने की हिम्मत दिखायेंगे।


दीदी अबसे आप वही काम करना जो आपको पसन्द हो। जिस काम को करने में आपको अच्छा नहीं लगता वो आप बिल्कुल मत करना। "

"पर दीप्ति अगर मैने उनके कहे अनुसार काम नहीं किया, और उन्होंने मेरे ऊपर हाथ उठा दिया तो मेरा तुम सब के सामने रहा सहा सम्मान भी जाता रहेगा। नहीं मैं ऐसा नहीं कर सकती। "


पम्मी ने डरते हुये आँखों में आँसू भरकर कहा।

दीप्ति पम्मी के आंसू पोंछते हुये बोली....

" ऐसा कुछ नहीं होगा दीदी। मैं हूँ न!! ज्यादातर आदमी उसे ही डराते है जो डरते है। जिसके मन से डर निकल जाये उसे कोई क्या डरायेगा। "

दीप्ति के समझाने पर आखिर पम्मी ने आज अपने दिल की सुनने का निर्णय कर ही लिया।


आज जैसे ही दीप्ति के जेठ जी आये और उन्होंने पम्मी के सामने अपने पैर जूते उतारने के लिये आगे किये। पम्मी ने मना करते हुये बड़े प्यार से कहा.......

" सुनिये जी!! ये जूते आप खुद ही उतार लीजिये। मैं आपके लिये चाय लेकर आती हूँ। "


पम्मी के मुँह से ये सुनते ही उनके पति का पारा चढ़ गया। गुस्से में वहीं रखी टेबल को पैर मारते हुये पम्मी को एक अभद्र सी गाली देते हुये बोले ..... तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई मना करने की। लगता है अब तुम इस घर में रहना नहीं चाहती ?"


अपने पति की बात सुनकर आज वर्षों का दर्द, घुटन, गुस्से का रूप लेकर बाहर निकल पड़ा। और गुस्से में लगभग दहाड़ते हुये बोली....

" शादी होकर आई हूँ इस घर में, इसलिये जितना ये घर तुम्हारा है उतना ही मेरा भी। आज के बाद मुझे इस घर से निकालने की धमकी देना बंद करो। और ये कहाँ लिखा है कि पत्नी को ही पति के सारे काम करने चाहिये। अब से में वही काम करूँगी जो मेरा मन करेगा, वो नहीं जो आप कहेंगे। "


हमेशा डरी सहमी अपनी पत्नी का ये निडर रूप देखकर उसके पति ने फिर से उसे डराने के लिये जैसे ही हाथ उठाया उस हाथ को बीच में ही उनके छोटे भाई दिलीप ने पकड़ते हुये कहा....

" भैया ये क्या कर रहे है आप। एक औरत पर हाथ उठाते हुये शर्म नहीं आती आपको। मैं तो अभी तक दीप्ति को भाभी की तरह काम करने के लिये बोलता था। क्योंकि मुझे लगता था कि भाभी जो भी करती है प्यार से करती है। पर आज पता चला कि आप तो भाभी से ये सब डरा धमका कर करवाते हो।


बेचारी भाभी ये सब कितने सालों से बिना उफ करे चुपचाप सहती आ रहीं है। जिसकी वजह से मेरी नजरों में आपकी इतनी इज्जत थी। पर आज तो आपने मुझे भी दीप्ति के सामने सर उठाने लायक नहीं छोड़ा। "


अपने भाई के मुँह से इतनी बातें सुनकर और उसकी बीवी की नजरों में खुद की इज्जत कम होती देख वो अंदर तक हिल गये। और तुरंत अपनी बीवी पम्मी के सामने माफी मांगते हुये बोले....


" मुझे माफ कर दो पम्मी! मैं आज तक यही समझता रहा कि औरतों को हमेशा डराकर रखना चाहिये। पर आज समझ आया कि महिलाएं डरकर नहीं बल्कि हमें अपना समझकर हमारे सारे जुल्म सह जाती है। पर जब वो अपने पर आती है तो उन्हे कोई नहीं डरा सकता।

अब से मैं तुमपर कभी कोई भी काम करने के लिये दबाव नहीं बनाऊंगा। न ही कभी तुम पर हाथ उठाऊंगा। "

अपने पति के मुँह से माफी का नाम सुनकर पम्मी ने उन्हें माफ करने का मन तो बना लिया। पर अगली बार से ऐसा न हो इसलिये कभी भी डरकर न रहने का द्रण संकल्प भी कर लिया था ।


वहीं दिलीप ने भी दीप्ति से वादा कर लिया कि अबसे वो कभी भी उसे किसी और की तरह काम करने को नहीं बोलेगा।


आज दीप्ति ने अपने खुले और सुलझे विचारों की वजह से अपनी जेठानी के विचारों को भी बदलाव की ओर अग्रसर कर दिया था।



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