वह पागल लड़की
वह पागल लड़की
रात के दस बज रहे थे। जौलगांव के आस-पास के गाँवों से घ्याना-कुड़ि, घ्याना-कुड़ि करते ढोल-नगाड़ों की ध्वनि हवा में गूँज रही थी। बीच-बीच में लोगों के समूहगान की ध्वनि भी वातावरण की नीरवता को भंग कर रही थी। जौलगांव में भी ढोल-नगाड़े बजने शुरू हो चुके थे। ढोली मंदिर के पटांगन (आंगन) में बैठे ढोल-दमू बजाने में मशगूल थे। पटांगन में गाँव के लोग तेजी से जमा होने लगे थे। पटांगन के एक ओर त्रिभुुजाकर मंदिर था और इस मंदिर का मुँह आंगन की ओर था। मंदिर के दरवाज़े पर परवलयाकार में लिखा हुआ था: ‘‘ सैम देवता की जय!’’ इस मंदिर के चारों ओर घंटियां टंकी हुई थीं।
मंदिर के पीछे की तरफ एक लंबी बाखली (संयुक्त परिवार वाले मकान) थी। इस बाखली में आठ परिवार निवास करते थे। इस बाखली के आगे अंगूर की लंबी-लंबी लताएं थीं, जो अंधेरे के कारण धुंधले बल्ब की रौशनी में किसी हरे रंग की फटी साड़ी-सी जान पड़ती थी। ये लताएं आंगन से उछलती हुई छत के पाथरों को अपने आंचल में समेट लेने के लिए बेताब दिखाई दे रही थीं। बाखली के पीछे एक खेत था। जहां से कद्दू, ककड़ी और लौकी की बेलें सच्ची सखियों की तरह गलबहियां डाले झांकती हुई प्रतीत हो रही थीं। इसी खेत के बगल में एक और खेत था, जो बंजर था। इस खेत पर कुछ महिलाएं गोल घेरा बनाकर, एक दूसरे का बाँह थामकर समवेत स्वरों में गाने लगी थीं -
सैमज्यू तुम्हरी जै-जैकार....
सैम देवा तुम्हरी महिमा अपार....
खेत के एक कोने पर एक द्वीमुखी खंभा गड़ा हुआ था, जिसके ऊपरी सिरे पर लगा बल्ब चारों ओर अपनी रौशनी बिखेर रहा था। मंदिर के पटांगन में भी अब झोड़ा गायन शुरू हो चुका था। वहां केवल पुरुष और युवक थे। वे भी महिलाओं की तरह एक दूसरे की बाँह थामे कदम-से-कदम मिलाकर गा रहे थे -
गोरि गंगा भागीरथी के भलो रेवाड़
खोल दे माता खोल भवानी धरम केवाड़
गायन के लिय दो ग्रुप बने हुए थे। पहले एक ग्रुप गाता, फिर दूसरा। और यह क्रम चलता रहता। मंदिर के दोनों कोनों में बल्ब लगे हुए थे, जो अपने दोनों हाथों से रोशनी बांट रहे थे। पटांगन के चारों ओर चार खंभे लगे हुए थे। इन्हीं खंबों पर लकड़ी और घास-फूस की छत टिकी हुई थी। यह छत ज़मीन से काफी ऊँची थी। इसी छत के नीचे पुरुष आग की धूनी के चारों ओर गोल घेरे में झोड़ा लोकगीत गा रहे थे। घेरे के अंदर एक व्यक्ति हुड़का (वाद्य यंत्र) बजाता हुआ गीत गा रहा था।
गीत के खत्म होते ही दो जगरियों ने दो-दो के ग्रुप में आमने-सामने बैठकर कथा कहानी शुरू की। बाकी सब लोग धुनी के चारों ओर गोले घेरे में बैठ गए। कथा सुनने के लिए गीत गाने वाली महिलाएँ और युवतियाँ भी खेत से आकर पटांगन के एक कोने में बैठ गईं और चाव से सैम देवता की कथा सुनने लगी।। इन्हीं युवतियों में एक युवती थी जिसका ध्यान जगरियों पर कम बल्कि एक जींस-शर्ट पहने युवक पर अधिक था। युवक को भी अंदाजा हो गया था कि लड़की उसे काफी देर से लाइन दे रही है। युवक ने भी प्रतिक्रिया स्वरूप उसे घूरना शुरू कर दिया। उसे घूरता देखकर युवती शर्मा जाती और अपनी नजर झुका लेती और कुछ देर तक उसकी ओर देखती ही नहीं। युवक उसके मन की बात ताड़ जाता और उसे चुपके से घूरता और फिर मुँह फेर लेता जैसे उसे देख ही नहीं रहा हो। युवती समझती कि उसका ध्यान जगरियों पर है तब वह उसे पुनः घूरने लगती, किंतु अचानक युवक नजरें घुमाता और दोनों की नज़रें मिलकर चार हो जातीं। नजर मिलाने-चुराने की इसी क्रिया-प्रतिक्रिया के होते-होते दोनों को पता ही नहीं चला कि कब सैम देवता की कथा समाप्त हो गई।
अब समय था पांच देवताओं के औतरने का। धुनी के सामने एक ओर धोती पहनकर बैठे ये देवता अचानक हरकत में आ जाते हैं और ढोल-नगाड़े की धुन पर थिकरते हुए अजीब हरकतें करने लगते हैं। एक मोटा और भारी भरकम शरीर वाला देवता घौल (आग में) डाली हुई गरम छड़ी को अपनी जीभ में फेरता हैं और अन्य देवताओं के मुँह खुलवाकर उनकी जीभ में भी फेरता है। तत्पश्चात् वह रस्सी पकड़कर उससे अपने शरीर पर ज़ोर-ज़ोर से मारता है और कुछ देर बाद वह उसी रस्सी से अन्य देवताओं को भी मारने लगता है। अब बारी आती है एक मात्र चौदह साल के देवता की। वह भारी भरकम शरीर वाला बलशाली देवता उस चौदह साल के देवता पर जब पूरी ताकत से रस्सी मारता है, तो वह गिर पड़ता है। पूरी जनता इस दृश्य को संपूर्ण आस्था के साथ देख रही होती है, किंतु एक युवती अनायास चिल्ला उठती है: ‘‘नहीं यह गलत है। बच्चे को मत मारो।’’
सब स्तब्ध रह जाते हैं किंतु उस युवती की भावना को समझकर वही जींस-शर्ट वाला युवक खड़ा हो जाता है और व्यंग्य मारता है: ‘‘अरे! कुछ नहीं होगा। बच्चा नहीं, ये तो देवता है।“ युवती युवक की बात को अनसुना कर उस चौदह बरस के देवता को उठाकर किनारे ले आती है और युवक भी इस काम में पूरा सहयेाग करता है फिर अचानक वह युवती पलटकर पटांगन में आती है और दहाड़ उठती है जनता पर: ‘‘आपको चौदह साल के बच्चे को देवता बनाते शर्म नहीं आती? पिटने का इतना ही शौक है तो खुद देवता बनो।’’
युवती का साहस देख युवक चकित हो उठता है: ‘‘‘हाँ सही कहा तूने !’’
एक बूढ़ा व्यक्ति सफाई देता है: ‘‘देवता बनाया नहीं जाता छोकड़ी, उसके अंग(शरीर) में खुद देवता आता है।’’
युवती पुनः गरज उठती है: ‘‘देवता-सेवता कुछ नहीं आता। यह सब ढोंग है आप लोगों का। देवतारी के नाम पर आप लोग मासूम बच्चों को प्रताड़ित कर रहे हैं।“
युवक अब पूर्ण रूप से युवती का समर्थन करने लगता है: ‘‘हाँ एकदम सही कहा तूने। मैंने इन लोगों से कित्ती बार कह दिया कि झोड़ा गाओ, कथा सुनाओ लेकिन देवतारी कर एक-दूसरे के शरीर को प्रताड़ित मत करो। मेरी तो कोई सुनता ही नहीं साल माचेत।’’
एक बूढ़ा व्यक्ति खड़ा होकर उस युवक को समझाने लगता है: ‘‘अरे जग्गू। तू भी रंग गया इस लड़की के रंग में? और ये तो पागल लड़की है। बौराय गई है। शहर से आई है नई-नई। भग्गू ( लड़की का पिता ) ने पता नी क्या खिला दिया इसे। तू तो अच्छा लड़का है भाई गाँव में ही रहता है। क्यों गों वालों से बिगाड़ कर रहा है?’’
युवक आक्रोशित हो उठता है: ‘‘चुप रहो रग्घू काका! हमें परंपरा के नाम पर आडम्बर नहीं करने चाहिए। लोक-संस्कृति को अपनाना अच्छी बात है, लेकिन लोक-संस्कृति की आड़ में धार्मिक आडंबर कतई नहीं होने चाहिए। झोड़े गावो, कथा सुनाओ, लेकिन देवता बनकर औतरने की जरूरत नहीं है। आज से कथा में देवता बनकर कोई एक-दूसरे को प्रताड़ित नहीं करेगा। नहीं तो युवक मंगल दल उसके घर के आगे भूख हड़ताल करेगा! क्यों दगड़ुवो (दोस्तो)?‘‘ उसने अपने दगडुवों की ओर देखते हुए कहा।
सभी दगड़ुवों ने उसकी बात का समर्थन किया: ‘‘हाँ, जग्गू दा ठीक कह रहा है। हम सब उसकी बात का समर्थन करते हैं।’
युवती की आँखों से खुशी की दो बूंदें झर पड़ीं। उसने जग्गू की ओर देखा और जग्गू ने उसकी ओर। आँखों -ही-आँखों में बात हुई और दोनों ने एक-दूसरे का शुक्रिया अदा किया।