वह भी क्या होली थी
वह भी क्या होली थी
कक्षा 8 की पढ़ाई के बाद हम हमारी छोटी बहन अपने भैया भाभी के पास हरिद्वार में रहकर पढ़ाई करते थे। हमारी दीदी ऋषिकेश में रहती थी पूरी फैमिली के साथ जीजाजी वहीं पर जॉब करते थे। एक बार होली के अवसर पर दीदी ने हमारे भाई की फैमिली और हम दोनों बहनों को अपने घर ऋषिकेश में बुलाया| दीदी एक पहाड़ी गाय रखते थी जो देखने में बहुत छोटी थी लेकिन दूध बहुत ज्यादा देती थी।हम सभी की आने की खुशी में दीदी ने गाय के दूध का घर पर ही मावा बनाया और खूब सारे पकवान बनाए जैसे गुजिया, कचरी, नमक पारे आदि।हम होली से एक दिन पहले दीदी के घर पहुंच गए। होली वाले दिन सभी
ने को गुजिया पकौड़ी कचोरी खाई अब बारी आती है होली मिलन की उस कालौनी की सभी महिलाएं एकत्रित होकर एक दूसरे के घर होली मिलन के लिए जाती हैं। हम
भी दीदी के संग गए। एक दूसरे के घर जाते और गुलाल और रंग एक दूसरे को लगाते एवं पकवान खिलाते हैं यह सब तो हुआ ही लेकिन अभी किसी का भी मन नहीं भरा
होली खेलने से इसलिए कालौनी की सभी महिलाएं और बच्चे ही निकल आए खुले मैदान में। फिर सभी ने बाहर ही होली खेलनी शुरू कर दी खुले मैदान में मिट्टी भी पडी हुई थी फिर क्या हुआ मिट्टी में पानी मिला मिला कर एक दूसरे को लगाने लगे मैदान में उपस्थित जनों में कुछ तो आराम से मिट्टी लगवा लेते थे लेकिन कुछ जनों को बिल्कुल भी अच्छा नहीं लग रहा था। वो दूर भाग रहे थे लेकिन ऐसा हो नहीं सकता था कि वहाँ मिट्टी लगने से कोई बच सके जो बचकर दूर भाग रहे थे उनके पीछे कई जनें एक जुट होकर उनके पीछे दौडकर उन्हें पूरा मिट्टी में रंग देते थे यह सीन देखने लायक होता था। उन दिन सभी ने खूब एंजॉय किया। तो उस दिन की होली कुछ अलग ही थी। अब जब भी होली का त्यौहार आता है तो उस समय का सीन हमें हमेशा याद आता है कि वह भी क्या होली थी।
