सबसे बड़ा सम्मान
सबसे बड़ा सम्मान
सन २००८ की बात है हम प्राथमिक विद्यालय भरौटा विकास क्षेत्र सरधना ,जिला मेरठ, उत्तर प्रदेश में प्रधानाध्यापक पद पर पदोन्नति होकर आए थे। वहां पर एक सूरज नाम का बच्चा जो बहुत ही रंग का गौरा था और लंबाई भी अच्छी खासी थी। बहुत प्यारा बच्चा मानसिक व मूक दिव्यांगता से ग्रसित था। लेकिन सुनने में दिक्कत नहीं थी। वह बच्चा स्कूल में रोज आता और मिड डे मील खाकर इधर-उधर घूमघाम
कर चला जाता था। पढने मे उसका मन नहीं लगता था। वह किसी भी कक्षा में ठहर कर नहीं बैठता था। हमें उस विद्यालय में अभी थोडे़ ही दिन हुए थे कि हमारा शासन के द्वारा सीसीआरटी नई दिल्ली प्रशिक्षण केंद्र के तहत *शिक्षा में पुतलीकला का महत्व * विषय पर पन्द्रह दिन के लिए उदयपुर राजस्थान का आदेश जारी हो गया । हम उस प्रशिक्षण में प्रतिभाग करने के लिए चले गए और हमने प्रशिक्षण में दी गई सभी जानकारियों को बहुत मन लगा कर ध्यान पूर्वक सीखा। वापस लौटने पर प्रशिक्षण में मिली जानकारियों को अपने विद्यालय के बच्चों के बीच साझा करने के लिए हम विद्यालय में ही पुतलियों को बनाने का सामान ले गए और पुतलियां बनाने लगे जब हमने दस्ताना पुतली का मुखौटा ही तैयार किया था तभी सूरज नाम का बच्चा हमारे हाथ में उस मुखौटे को देख
कर हमारे पास आ गया। उसे देख कर उस बच्चे के चेहरे पर बहुत ही खुशी झलक रही थी। हमने उसके मनोभावों को समझ लिया था । हम लगातार उस पुतली को पूरी करने
में लगे हुए थे उसके कपड़े सिल कर कपड़े पहनाने की तैयारी चल रही थी। वह बच्चाहमारे पास लगातार बैठा ही रहा और एक टकटकी लगाकर वह बच्चा उस पुतली को बहुत ही ध्यान पूर्वक देख रहा था। हम मन ही मन उसके मनोभावों को पढ़ रही थे और उसकी खुशी की अनुभूति को महसूस कर रहे थे। जब पुतली बनकर पूरी तैयार हो गई तब हमने उसको हाथ में पहन कर बच्चे की आवाज निकालते हुए कुछ छोटे-छोटे डायलॉग बोले। वह बच्चा खुशी के मारे गदगद हो उठा और उसने अपना हाथ हमारे हाथ में मारा और उस पुतली को लेने की चाहत उसके मन में उमड़ी। हम ये सब
समझ गए थे कि इस पुतली ने उसको बहुत ही आकर्षित कर लिया है एवं उसे बहुत ही खुशी प्रदान की है। हम सूरज को बनाई हुई पुतली देना चाहती थे लेकिन हमने सोचा कि हां इस पुतली के द्वारा इस बच्चे कुछ लिखना सिखाया जा सकता है। तभी हमने बोला सूरज बेटा - यह पुतली आपको चाहिए उसने गर्दन हिलाई हां। हमने कहा हम आपको इसको जरूर देंगे लेकिन आप अपना बैग लाइए और उसमें से
अपनी पेंसिल और कॉपी निकालिए।
अब सूरज बच्चा खुशी-खुशी अपना बैग जो एक कक्षा मे रखा था वहां से लेकर आया और कॉपी पेंसिल निकाली तब हमने उसकी कॉपी में अक्षर *अ *लिखने को दिया और कहा कि बेटा - जैसा हमने यह अक्षर लिखा है वैसा लिखो। पेंसिल बच्चे ने उठाई लेकिन उसका हाथ हिल रहा था फिर हमने उसके हाथ की पेंसिल को पकड़ते हुए उसे घुमाने का तरीका बताया। बच्चा लिखने में रुचि ले रहा था । फिर हमने वही अक्षर उसकी कॉपी में मोटा मोटा लिखा और उसे घर से लिखकर लाने को कहा । उसने गर्दन हिलाई हां। हमने कहा कि हम आपको यह पुतली भी देंगे और भी बना कर देंगे लेकिन आप रोज स्कूल में आइए और जो भी हम आपको कॉपी में काम देंगे आपको विद्यालय में भी करना है और घर पर भी जाकर करना है।
बच्चे ने हां के लिए गर्दन हिलाई। यह देखकर हमें बहुत अच्छा लग रहा था। उसी समय हमने सोच लिया था कि इन पुतलियों के माध्यम से इस बच्चों को थोड़ा अक्षरों का ज्ञान कराते हुए उसे नाम लिखने तक सिखाया जा सकता है और ऐसा करने में हमने सफलता प्राप्त की। आखिरकार उस बच्चे को हमने धीरे धीरे अक्षरों का ज्ञान कराते हुए उसका नाम लिखना सिखा ही दिया।
उन्हीं दिनों दिव्यांगों के लिए जिला स्तरीय खेल प्रतियोगिता का आदेश हमें मिला। हमारे विद्यालय में अलग-अलग विकलांगता से ग्रसित कई बच्चे थे लेकिन सब सूरज से बेहतर स्थिति में थे। हमने सभी बच्चों को प्रतियोगिता में प्रतिभाग करने के लिए तैयार कियासभी बच्चों के लिए अपने आप ही ड्रेस भी तैयार की और सभी बच्चों को लेकर मेरठ शहर प्रतियोगिता केन्द्र पर पहुँच गए । कई बच्चों के पिताजी भी साथ में गए थे। सभी बच्चों ने अलग अलग गतिविधियों में
प्रतिभाग किया। सूरज बेटे ने अपना डांस प्रस्तुत किया। सूरज स्टेज पर डांस करत हुए बहुत ही आनन्दित हो रहा था। उसकी खुशी को हम लगातार महसूस कर रहे थे।सभी बच्चों को गिफ्टस मिले। बच्चेगिफ्टस पाकर बहुत खुश हुए एवं उनके पिताजी भी । बच्चों के पिता जी ने हमें धन्यवाद !
किया। हमारे इस प्रयास के लिए। सब की खुशी को देखकर तो मानो हमारी खुशी में चार चांद लग गए थे। अब सभी को सही सलामत गांव भरौटा में पहुंचाया गया।हम विज्ञान की शिक्षिका होने के कारण हमारी पदोन्नति उसी स्कूल के उच्च प्राथमिक विद्यालय के लिए हो गई थी अब हम उच्च प्राथमिक विद्यालय के बच्चों को पढ़ाते और सूरज बच्चा प्राथमिक स्कूल में ही था। उसका मन वहां नहीं लगता था।वह उसी बिल्डिंग में आ जाता था जहां हम बच्चों को पढ़ाते थे और जो भी एक्टिविटी हम करते थे वह उसमें सक्रिय सहभागिता करता था। यह देखकर हमें बहुत खुशी होती थी।
हम जिस भी विद्यालय में बच्चों को पढाते हैं सबसे पहले उन्हें अपनापन देकर रूचि पूर्ण गतिविधियों से पढाते हैं। मास्टर ट्रेनर के रुप में हमने अपने नवाचारों व तमाम रुचि पूर्ण शिक्षण विधियों को प्रशिक्षणों के दौरान राज्य स्तर से लेकर, जिला स्तर एवं ब्लॉक स्तर तक शिक्षक साथियों को भी साझा किया है। जब ये गतिविधियां अलग-अलग विद्यालयों में बच्चों के बीच जाती हैं तो हमें बहुत खुशी होती है। वर्तमान समय में हम मेरठ के दौराला ब्लॉक में , ( ए०आर०पी०) एकेडमिक रिसोर्स पर्सन के रूप में कार्य कर रहे हैं जिसमें ब्लॉक के सभी स्कूलों में शैक्षिक सपोर्ट देने की जिम्मेदारी है। हम जिस भी स्कूल में जाते हैं वहाँ अपने द्वारा बनाया हुआ टीचिंग लर्निंग मैटेरियल एवं पुतलियों को लेकर जाते हैं। प्रत्येक स्कूल में बच्चो कोरुचि पूर्ण गतिविधियों से सिखाते।
सभी विद्यालयों के शिक्षक साथियों का हमारे लिए सकारात्मक फीडबैक होता है और प्यारे बच्चे तो लास्ट में यही फीडबैक देते हैं कि मैडमजी रोज हमारे विद्यालय में आ जाया करो।प्यारे प्यारे बच्चों का यह प्यार से भरा फीडबैक हमारे लिए बहुत *बड़ा सम्मान* और रात को सूकून भरी नींद देने वाला होता है।