Saroj Verma

Classics

4.5  

Saroj Verma

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वचन--भाग(५)

वचन--भाग(५)

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प्रभाकर ने कौशल्या से पूछा__

मां! मैं हीरालाल काका से कैसे कहूं कि वें बिन्दवासिनी का अभी ब्याह ना करें क्योंकि उसे मैं अपने घर की बहु बनाना चाहता हूं, मेरे देवा को बिन्दू पसंद करती हैं।

तू एक बार हीरा भइया से बात तो करके देख, वे जरूर मान जाएंगे और फिर हमारा देवा आगे चलकर सरकारी नौकरी करेगा तो भला उसे कौन अपनी बेटी देने से मना करेगा, कौशल्या बोली।

मां तुम बिल्कुल सही कह रही हो, मैं आज ही इस विषय पर काका से बात करता हूं, लेकिन मां काका तो बाबूजी को पसंद नहीं करते थे, तो वे इस रिश्ते के लिए कैसे तैयार होंगें, प्रभाकर ने पूछा।

 बेटा!वो तब की बात थी, तब तेरे बाबूजी जीवित थे लेकिन अब वो इस दुनिया में नहीं रहें तो हीरा भइया के भी मन का मैल दूर हो गया है, वो हमें अपना परिवार ही मानते हैं, कौशल्या बोली।

 ये तो सच है मां! तो फिर हिम्मत करके आज सबकुछ कह ही देता हूं काका से, प्रभाकर बोला।

 प्रभाकर ने हीरालाल जी के पास जाकर सारी बात बताई, हीरालाल जी बोले उस आवारा लफंगे से मैं कभी बिन्दू का ब्याह ना करूं, ना पढ़ाई ना लिखाई दिनभर आवारागर्दी करता है।

 ठीक है काका ! माना कि देवा आवारा है लफंगा है लेकिन अगर पढ़ लिख कर बड़ा आदमी बन जाएगा तब तो करोगे ना उससे बिन्दू का ब्याह और फिर अपनी बिन्दू भी तो उसे पसंद करती हैं और आपकी तो एक ही बेटी है तो क्या आप उसकी खुशियों का ख्याल नहीं रखा सकते, प्रभाकर ने हीरालाल जी से कहा।

अगर ऐसी बात है तो ठीक है, देवा अगर तुम्हारी तरह होनहार निकला तो जरूर मैं उसका ब्याह बिन्दू से कर दूँगा, हीरालाल जी बोले।

लेकिन एक बात है ये बात देवा को ना पता चले कि आप इस रिश्ते के लिए तैयार हैं क्योंकि ऐसा ना हो कि उसका मन पढा़ई से उचट जाएं, अभी बिल्कुल सही समय चल रहा है उसकी पढा़ई के लिए, अभी तो वो बड़ा आदमी बनने के सपने देख रहा है फिर ब्याह के सपने देखने लगेगा, प्रभाकर बोला।

हाँ, उससे मैं कुछ नहीं पूछूँगा, तुमने कह दिया तो बस सब सही हैं, मैं केवल बिन्दू और बिन्दू की माँ से ही कहूँगा और मुझे भी अब बिन्दू के लिए लड़का ढू़ढ़ने से मुक्ति मिल गई, हीरालाल बोले।

 अब सब निश्चिन्त थे कि जैसे ही दिवाकर की नौकरी लग जाएगी, फौरऩ उसकी शादी बिन्दवासिनी से कर देंगें और प्रभाकर भी मन ही मन खुश था कि बाबू जी को दिया हुआ वचन वो ठीक से निभा रहा है।

 उधर कौशल्या ने भी प्रभाकर से पूछा ___

क्यों रे, प्रभाकर! छोटे भाई की शादी भी तय कर दी , उसकी पढा़ई का भी सारा इंतजाम कर दिया, ये बता तू कब ब्याह रचाएंगा, छोटे का ब्याह होने से पहले अपना ब्याह रचा ले, जरा मैं भी तो बहु के सुख भोग लूँ।

माँ!कैसीं बातें करती हो ? मैं ब्याह कर लूँगा तो घर की जिम्मेदारियाँ कौन निभाएंगा और फिर जरूरी तो नहीं जो आएंगी वो तुम लोगों का मेरी तरह ध्यान रखेंगी, मुझे किसी पर भी भरोसा नहीं, सारी लड़कियाँ बिन्दू की तरह प्रेम निभाने वाली नहीं होतीं, कुछ तो सिर्फ़ पैसे की और शौहरत की संगी होतीं हैं, बहुत देखीं हैं ऐसी लड़कियाँ मैने शहर में, इसलिए आज के बाद कभी भी इस विषय पर चर्चा मत करना, प्रभाकर इतना कहकर बाहर चला गया।

 उस दिन के बाद फिर कौशल्या ने प्रभाकर से कभी शादी के लिए नहीं कहा, लेकिन उसे अच्छा भी नहीं लगा कि प्रभाकर हमारे लिए इतना त्याग करें।

 एक रोज दोपहर के समय प्रभाकर की दुकान में एक व्यक्ति आया और बोला जमींदार रामस्वरूप जी मंदिर में भण्डारा करवाना चाहते हैं इसलिए सामान चाहिए, उन्होंने आपको घर बुलवाया हैं, ये पूछने के लिए कौन सा सामान कितना लगेगा क्योंकि आप तो दुकानदार हैं आपको सब अन्दाजा होगा।

प्रभाकर बोला, ठीक है चलिए और मुनीम काका से दुकान देखने के लिए कहा।

प्रभाकर, रामस्वरूप जी की हवेली पहुँचा___

रामस्वरूप जी बोले___

अरे, आ गए तुम!पहले मैं तुम्हारे पिताजी को बुलवाया करता था, लेकिन अब वो रहें नहीं, फिर मैने सुना कि उनका बड़ा बेटा पढ़ाई लिखाई छोड़कर दुकान सम्भालने लगा है, ऐसा त्यागी पुत्र किसी किसी को नसीब होता है।

जी, ये तो मेरा फर्ज था और मैं ने बड़ा बेटा होने का फ़र्ज निभाया और मेरी जगह और भी कोई होता तो यही करता, प्रभाकर बोला।

 बहुत ही समझदार लगते हो बरखुरदार, जो ऐसा सोचते हो, रामस्वरूप जी बोले।

 आप तो बेवजह मेरी इतनी तारीफ कर रहे हैं, अपने परिवार के लिए भला कौन नहीं करता, प्रभाकर बोला।

 चलो अच्छी बात हैं, जो तुम इतने अच्छे विचार रखते , अच्छा बैठो , मै तुम्हारे लिए नाश्ता पानी का इन्तजाम करता हूँ और इतना कहकर रामस्वरूप जी ने भीतर आवाज लगाई___

 अरी ओ , सारंगी बिटिया ! तनिक मेहमान के लिए नाश्ता पानी तो भिजवा दे।

अभी लाई फूफाजी! अंदर से सारंगी ने आवाज दी।

 और सारंगी कुछ देर मे एक तस्तरी में कुछ पेड़े , नमकपारे और शरबत लेकर हाजिर हुई और प्रभाकर को बिना देखे ही बोल पड़ी कि फूफा जी वो धनिया बगीचे में कुछ काम कर रही हैं इसलिए मै ही ले आई मेहमान के लिए नाश्ता और जैसे ही प्रभाकर को एकाएक देखा तो बोल पड़ी__

 अरे आप! यहाँ कैसे ?

बिटिया मैने बुलाया इन्हें, तुम क्या इन्हें पहचानती हो ? रामस्वरूप जी ने सारंगी से पूछा।

 जी फूफाजी ये वहीं तो हैं, जिस दिन मैं यहाँ आई थी तो मेरे साथ स्टेशन से यहाँ तक आए थे।

अच्छा! हाँ अब याद आया , तभी तो मैं कहूँ, ये घर मुझे जाना पहचाना सा क्यों लग रहा हैं और उस दिन मैं बहुत परेशान था, मेरा मन कहीं और लगा था इसलिए ज्यादा ध्यान नहीं दे पाया, प्रभाकर बोला।

 अच्छा! तो उस दिन तुम थे, ये मेरे साले की बेटी है सारंगी, हमारे कोई सन्तान नहीं है तो जब मन ऊब जाता है तो इसे यहाँ बुला लेते हैं, वैसे तो काँलेज में पढ़ती है, रामस्वरूप जी बोले।

तब तो बहुत अच्छी बात है कि इन्हें पढ़ाई का शौक है, प्रभाकर बोला।

 अच्छा! तुम नाश्ता कर लो फिर जल्दी से सामग्री के बारे में बात करते हैं, कौन सा सामान कितना लगेगा, रामस्वरूप जी बोले।

 और कुछ देर बाद सारी सामग्री के विषय मे बात हो गई और रामस्वरूप जी ने भव्य भण्डारे का आयोजन किया, सारे गाँव से कहा गया कि कोई भी चूल्हा ना जलाएँ, सबका भण्डारे में न्यौता हैं, प्रभाकर का परिवार और बिन्दू का परिवार भी गया।

भण्डारे के बाद प्रभाकर और सारंगी की मुलाकातें भी बढ़ गई और एक रोज सारंगी के घर से चिट्ठी आई कि माँ बीमार है जल्दी से आओ और सारंगी चली गई, प्रभाकर फिर अकेला रह गया।

दिन बीत रहे थे अब दिवाकर ने बाहरवीं पास कर ली थी और छुट्टियाँ भी खतम होने को थीँ अब प्रभाकर सारा इंतज़ाम करने में लगा था कि दिवाकर को वहाँ शहर मे किन किन चीजों की जरुरत पड़ सकती हैं, प्रभाकर वहाँ सारा सामान तैयार करने मे लगा था और उधर दिवाकर का मन उदास था, उसे लग रहा था कि अभी तक तो रोज रोज नहीं मिल पाता था बिन्दवासिनी से लेकिन कभी कभार शकल तो देखने को मिल जाती थी और अब तो मैं उसकी शकल देखने को भी तरस जाया करूँगा, मैं शहर नहीं जाना चाहता लेकिन भइया मुझे जबर्दस्ती शहर भेज रहें हैं।

उसने कौशल्या से भी कहा लेकिन कौशल्या भी क्या कर सकती थी वो प्रभाकर के वचन के आड़े नहीं आना चाहती थीं और उस दिन वो शहर जाने से पहले शाम के समय बिन्दवासिनी से मिलने उसके घर गया लेकिन बिन्दवासिनी उसे घर पर नहीं मिली और उसने काकी से पूछा भी नहीं कि बिन्दू कहाँ हैं और काका काकी से मिलकर चला आया लेकिन वो रातभर सो ना सका।

 सुबह सुबह ताँगें पर प्रभाकर ने सारा सामान लाद दिया और दिवाकर से बोला चल बाबू जी की तस्वीर को प्रणाम कर फिर माँ के चरण स्पर्श कर आशीर्वाद ले, दिवाकर ने यही किया फिर बोला जा काका काकी का भी आशीर्वाद ले आ और दिवाकर जब आशीर्वाद लेने पहुँचा तो बिन्दू तब भी बाहर ना निकली, अब तो दिवाकर रोआँसा सा हो आया और प्रभाकर ने दिवाकर के मन की बात भाँप ली, प्रभाकर ने मन ही मन सोचा कि बिन्दू कितनी भलाई सोचती है दिवाकर की , उसका मन विचलित ना हो इसलिए तो उससे मिलने बाहर नहीं आई और दिवाकर गैर मन से ताँगे में बैठकर चल पड़ा स्टेशन की ओर।

 शहर पहुँचकर प्रभाकर ने दिवाकर की काँलेज एवं हाँस्टल दोनों जगह सबसे जान पहचान करवा दी, दो दिन वहाँ उसके साथ रहकर सारा शहर घुमा दिया कि कौन सी चीज कहाँ मिलती हैं, ये भी बता दिया और सख्त हिदायत दी इस गली में कभी भी भूल से कदम ना रखें क्योंकि ये शहर की सबसे बदनाम गली हैं, दिवाकर सब समझ गया।

दिवाकर को सबकुछ समझाकर सारी हिदायतें देकर, प्रभाकर गाँव लौट आया लेकिन प्रभाकर को अच्छा नहीं लग रहा था भाई से अलग होकर।

 और दिवाकर को भी हाँस्टल में अच्छा नहीं लग रहा था, वो था गाँव का सीधा सादा लड़का और सब उसका हाँस्टल में मजाक उड़ा रहे थे क्योंकि उसे शहरवालों की तरह रहना नहीं आता था, ना तो उसके पास ढंग के कपड़े थे और ना स्टाइल, इससें उसमें अब हीन भावना ने घर कर लिया, उसका मन ना पढ़ाई में लगता, ना ही किसी और काम में , वो दिनभर अपने कमरें में बंद रहने लगा...

क्रमशः__


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