वाट्सअप ग्रुप
वाट्सअप ग्रुप
स्कूल के कुछ वर्ग्मित्र अपने – अपने सरकारी सेवाओं से सेवानिवृत्त हो जाते है। सेवानिवृत्ति के बाद उनके पास फुर्सत ही फुर्सत रहती है। ऐसे कुछ स्कूल के वर्ग मित्र जो एक साधारण गांव से आ के एक बड़े शहर में अपनी बुद्धिमत्ता और कार्यक्षमता के आधार पर बड़े शहर के शहरवासी हो जाते है। उन्हें अकसर कभी- कभी बाते- शाते होती रहती थी। कई अवसरों पर इकट्ठा होके पुराने दिनों को याद करते थे। वे तीनों मित्र कुछ ही सप्ताह पहले अरुन के रीटायरमेंट पार्टी में परिवार के साथ मिले थे। अब सेवानिवृत्ति के कारण उन्हें अपने मित्रों से मिलने के समय ने उन्हें समय दिया था। तीनों मित्रों में कुछ अनोखा करने की खिचड़ी उनके दिमाग में पक रही थी। खिचड़ी पुरी पक जाने के कारण सभी उसे खाने के लिए उतावले हो चले थे। एक दिन अचानक श्रीकांत का फोन उसके मित्र अरुण को आया था। उसके बाद उनमें जो तिकड़म और जुगल बंदी हुई है उसकी यह कहानी है। अरुण ने श्रीकांत का मोबाइल होने से उसे तुरंत उठाया था। और कहा, हेलो, कैसे मेरे प्रिय मित्र।
श्रीकांत : मैं ठीक हूं। तू कैसा है। फिर उसने अपने दिमाग में जो खिचड़ी पक रही थी उसे उगलना शुरु किया था। अरे तेरी रेटायर्मेंट की पार्टी बहुत बढ़िया रही है। हम सब मिलने से हमें कितनी खुशी उस दिन से हो रही है। इस खुशी को मैं और भी बढ़ाना चाहता हूं। काश हम सब स्कूली मित्र किसी बहाने मिल सके तो कितना मजा आयेगा !। नेकी और पूछ-पूछ, मैंने उसकी विचारों से सहमती जताई। कुछ करते है। ऐसा कुछ हो जाए।
वर्षा : अरे सुनते हो। कुणाल ने आप के रीटायरमेंट के फोटो व्हाट्सअप पर डाले है। आप ने देखे है क्या ?
अरुण : अरे मेरे कई दिनों से रीटायरमेंट के कुछ अधूरे कार्य बचे है। उस में व्यस्त हूँ। व्हाट्सअप वगैरह थोड़ा कम ही देख रहा हूँ। चलो लाव आपके ही मोबाइल में देख लेता हूँ।लाव इधर।
वर्षा : देखना है तो आव इधर। साथ में देखते है। हम लोग फोटो देखने लगे।
बीच –बीच में कुछ कॉमेंट भी करते रहे। उतने में ही मेरे दोनों दोस्तों के फोटो आये। उन्हें भी हम देख रहे थे। उसने कहां, आप लोग उस दिन कितने खुश दिख रहे थे।
अरुण : हां यार, बचपन के दोस्तों से, इस उम्र में मिलना और इतनी लंबी दोस्ती
निभाना। इसके लिए भी तकदीर चाहिए। जिंदगी की राह में कई सौ दोस्त बन जाते है। कई टूट जाते है। कोई बिछड़ जाते है। कई अपने मतलब दूर निकल जाता है। तो कई मतलब न होने से दूरी बना लेते है। पचास दोस्त बनाना बहुत आसान है। लेकिन पचास साल लंबी दोस्ती निभाना, बहुत कठिन है। मेरे दोस्त इस मामले में धन्यवाद के पात्र है। हमारी चर्चा चल रही थी की मोबाइल की घंटी बजी। देखा तो श्रीकांत का फोन था। मैंने कहां, हैलो श्रीकांत
श्रीकांत : अरे तुझे पता है। क्या ? अरे, गुनवंता का कल आँखों का आपरेशन हुआ है। अभी ठीक है। आज ही मुझे पता चला। उसे के घर बैठा हूँ। गप-शप कर रहे है। बस तेरी कमी है।
अरुण : अच्छा ,दे, उसको फोन दे। अरे कैसा है, ठीक हूँ। अभी सब कुछ सही दिख रहा की नहीं ?
गुनवंता : सब कुछ सही दिख रह है।
अरुण : मजाक करते हुये, पुछा, अरे, भाभी ठीक से दिख रही है की नहीं, या इस दौरान बदल तो नहीं गई ?।
गुनवंता : बदल तो गई है। पहिले काली- कलुटी दिखती थी। अभी पहिले की तरह गौरी-चिट्टी दिख रही है।
अरुण : तेरे तो भाग खुल गये यार। नई बीबी जो मिल गई। काली- गोरी का मजा एक ही कंपनी के उत्पाद से ले लिया। बहुत बनीया लगता हैं तू ? और हम लोग हंसने लगे। ले श्रीकांत बात करना चाहता है। हां बोलो श्रीकांत।
श्रीकांत : अरे हम सोच रहे है कि सभी पुराने मित्रों को इकट्ठा किया जाय।
अरुण : अबे सिर्फ मित्रों को या गर्ल फ्रेंड्स को भी इकट्ठा करना है।
श्रीकांत : अरे तूने मेरे दिल की बात की। तेरा सुझाव सर आँखों पर।
अरुण : अरे हम सब के दिल की बात तेरे दिल से कहना चाहते है। ठीक है ना ?
श्रीकांत : ठीक है। तो एक वाट्स ग्रुप बना लेते है। सबके नाम और मोबाइल नंबर पता करके , सब को जोड़ने का काम शुरु करते है। तो मैं काम शुरु कर देता हूँ। गुनवंता भी इस बात के लिए तैयार है। और तू भी।
अरुण : अरे श्रीकांत, मेरे पास सिर्फ ,चैन्नई वाला दोस्त, पदमनाभन का मोबाइल नंबर हो सकता है। उसे मैं, तुझे भेज देता हूँ। बाकी का आप लोग संभालो। कुछ दिन बाद में एक व्हाट्स ग्रुप ‘सेकंड इंनिंग रेसर ग्रुप “ व्हाट्स में दिखने लगा। गौर से देखा तो , धीरे धीरे कुछ जाने- पहचाने लोगों के कॉमेंट आने लगे। और ये ग्रुप धीरे –धीरे बढने लगा।
श्रीकांत : अरे यार अरुण तू कुछ कॉमेंट, वीडिओ, मेसेज वैगरे ग्रुप में डाल नहीं रहा है। अरे अपने मित्रों को ग्रुप द्वारा फिर से पुनर्जीवित करना है।
अरुण : अरे यार, मैं इन लोगों को स्मरण करने का प्रयत्न कर रहा हूँ
श्रीकांत :ठीक है, सक्रिय रहना। कुछ अच्छे कॉमेंट, वीडिओ वगैरह ग्रुप में अपलोड किया कर।
अरुण : ठीक है, दिनों दिन, ग्रुप बढ़ने लगा। सभी लोग इक –दूसरे से संवाद करने लगे। और ‘सेंकड इंनिंग रेसर ग्रुप, काफी व्यापक और सक्रिय हो गया। श्रीकांत के इस प्रयास के लिए सभी उसका अभिनंदन करने लगे। वो एक ग्रुप लिडर की तरह प्रोजेक्ट होने लगा। ग्रुप को रोज मैं व्हाट्स पर देखने लगा। कुछ सहेलियां भी जुड़ गई थी। वे सभी ,एक दूसरे के साथ चैटिंग करने लगी। एक बहु प्रतीक्षित गर्लफेंड भी ग्रुप में शामिल हो चुकी थी। वो मुझे छोड़ के सभी से संवाद करने लगी। मैं इंतजार करने लगा। सुबह जल्दी उठकर, व्हाट्स देखने लगा की वह कभी मुझ से भी चाटींग करेगी या मेरे अपलोड वीडिओ और मेसेजेस पर कोमेंट करेगी। उसको छोड़कर अन्य महिलाएं मुझे से चैटिंग करने लगी। कोई- कोई, कभी –कभी फोन पर बात भी करती। इन सब गर्लफेंड से मैं ये सब अपेक्षित नहीं कर रहा था। दिल ने कहा ,शायद , वो भूल गई होगी, लेकिन ये कैसे संभव हो सकता है । जो मुझे बचपन से जानती है। प्राथमिक स्कूल में साथ में थी। कई अवसरों पर मिल के पाठशाला जाया करते थे। फिर हम लोग ग्यारहवीं में साथ में थे । समाज की होने के कारण अपने मां के साथ अकसर घर आया करती थी। हम बाते भी करते थे । और तो और , स्नातकोत्तर, में भी हम विज्ञान संस्थान में साथ थे। भले ही शाखाएं अलग थी। लेकिन अकसर मिला करते थे। बात होती थी। ये बात सच है, की स्नातकोत्तर बाद फिर हम मिल नहीं पाये। हमारा संपर्क टूट गया था। दिल मान नहीं रहा था। दिल ने कहां, छोड़ , शायद भूल गई हो। जब स्मरण होगा। करेंगी चैटिंग। इंतजार करो। सब्र का फल हमेशा मीठा होता है।
वर्षा : अरे सुनो, अभी आप सेवानिवृत्त हो चुके है। अभी आगे क्या करेंगे ?
अरुण : क्या करना है, बस तुम्हारी चाकरी, खत्म हो गई सरकारी नौकरी, बस अभी बची है परिवार की चौकिदारी। अब में तुम्हारा नेताजी की तरह प्रधान चौकीदार हूं। बस फर्क इतना है कि नेता शक्तिशाली होता है। और मैं लाचार। अरे मैंने तो सेवानिवृत्ति के कार्यालियन कार्यक्रम के दिन ही ऐलान कर दिया।
आज हो गई है सरकारी सेवा से कार्य मुक्ति,
कल से पत्नी सेवा के लिए हुई है नियुक्ति।
ऐसे ही हमारे बीच में कुछ नोंक -झोंक चल रही थी कि मेरे मोबाइल की घंटी बजी। देखा। अरे ये तो गुनवंता का कॉल है। मैंने कहां, हैलो, कैसे हो।
गुनवंता : बढ़िया ।
अरुण : चलो अच्छे है, फिर इस गरीब दोस्त, सुदामा को कैसे याद किया।
गुनवंता : अरे कुछ नहीं। क्या कर रहा है ?। अरे कुछ नहीं कर रहा होगा तो आज मेरे घर आ सकता क्या ? श्रीकांत भी आनेवला है। अपना ही राज है। तुम्हारी भाभी स्कूल गई है। श्याम को आयेगी।
अरुण : आता हूँ। जरा पत्नी जी को खबर कर देता हूँ।
अरे सुनो, जरा मैं गुनवंता के घर जा के आता हूँ। जैसे ही मैं गुनवंता के घर पहुंचा, वहां श्रीकांत पहिले से आकर तैयार बैठा था। दोनों को देखकर, मैंने कहा, महफिल जमाना है क्या ?
गुनवंता : अरे नहीं। ऐसे ही बुलाया। गप-शप करेंगे। बाते करते रहे। उसने कहा । अरे यार श्रीकांत ने बहुत -बहुत मेहनत की है । अपना व्हाट्स ग्रुप बहुत बड़ा हो चुका है।
अरुण : हां यार, ग्रुप काफी बड़ा हो चुका है। उस्ताद ने काफी मेहनत करके पुरानी गर्लफ्रेंड्स को भी ग्रुप में शामिल कर लिया है। इसलिए भाऊ के चेहरे पर चमक आ गई है। देखो, कैसे चिते जैसी चपलता झलक रही है। वही जवानी का जोश और होश नजर आ रहा है। सभी हँसने लगे।
श्रीकांत : अरुण ने सही पहचाना।
अरुण : अरे कौन है, वो भाग्यशाली, हम भी तो जाने,
श्रीकांत : कौन हो सकती है। पता कर लो मेरे यारों। ये आप का काम है।
अरुण : अरे इस में से मुझे किसी की शकल और नाम स्मरण नहीं हो रहा है। क्योंकि मैं ग्यारहवीं के बाद ही अन्य स्थान पर चला गया था। मेरा बाद में आप छोड़ के अन्य किसी से संपर्क नहीं आया। कुछ मित्रों को जरूर पहचान सकता हूँ ।
गुनवंता : अरे इसलिए तो तुझे बुलाया है। मैंने और श्रीकांत ने जन्म गांव के कुछ मित्रों से संपर्क किया है । वे बहुत खुश है। उन्होंने हमको बुलाया है। अपन जाएंगे क्या ?।
अरुण : नेकी और पुछ- पुछ। बिलकुल जाएंगे। बताव कब जाना है।
श्रीकांत : अगले हफ्ते, हमने सोचा है कि हम सब पुराने मित्र मिलकर अपनी इकसठवीं का कार्यक्रम अपने स्कूल में करेंगे। सभी ने सहमती जताई थी। इस तरह पुराने वर्गमित्रों का अपने जन्मभूमि के स्कूली दोस्तों से मिलने कार्यक्रम बना था।
