ऊँचाई
ऊँचाई
अपने पुश्तेनी व्यापार को अपने हाथ में लेकर बहुत ही कम समय मे बड़ी सफलता पा ली थी उसने।पर फिर वो कम समय मे मिली इस सफलता के मद में ऐसा डूब गया।कि व्यपार आदि के किसी भी निर्णय में उसे अपने खिलाफ एक भी शब्द सुनना पसंद न था।
अब कम्पनी की मीटिंग में उसके लिए अपने पुराने व वफादार सदस्यों की राय के भी कोई मायने नही रख रही थी।
और फिर उसकी एकल निर्णय वाली नीति ने अब उसे व्यापार में घाटा कराना शुरू कर दिया।
कम्पनी के सदस्यों ने उसे बहुत समझाने की कोशिश की पर बात बन नही पाई।
फिर अपने बेटे को उदास घर की छत पर टहलता देख उसके पिता आज उसके समीप जा बोले, 'बेटा इसमें कोई शक नही की तुम एक सफल व्यपारी हो।पर एक नजर आसमान की ऊँचाई पर उड़ती हुई उस पतंग को देखो।'
वो भी तभी तक इस ऊँचाई पर टिकी रह सकती है, जब तक की कुशल हाथ जमीन पर उसकी डोर सावधानी से थामें रहे।