"ऊँचा भाल"

"ऊँचा भाल"

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ठक ठक!... ठक ठक!... ठक ठक ठक ठक....

"दरवाजे पर कोई है ! जरा देखना । मुझसे कोई मिलने आया हो तो बैठक में बैठना । मैं बस तैयार हो कर बाहर आ ही रहा हूँ " कार्यालय जाने के लिए तैयार होते-होते रवि को लगा कि किसी ने बाहर दरवाजा को खटखटाया है तो वो अपनी पत्नी ज्योत्स्ना को आवाज लगा कर बोले । ज्योत्स्ना चौके में जो काम समेट रही थी उसे छोड़, बाहर जाकर देखी तो कोई आदमी खड़ा था, उसे देखते ही वो आदमी रवि से मिलने की इच्छा जाहिर की । ज्योत्स्ना उस आदमी को बैठक में बैठा कर रवि को बताते हुए फिर चौके में जाकर अपना काम करने लगी । थोड़ी ही देर में रवि की आवाज आई "एक कप अच्छी कॉफ़ी बना कर लाना"। ज्योत्स्ना कॉफी बना बैठक में पहुँचा लौटने लगी तो उसने देखा कि मिलने आये व्यक्ति ने रुपयों से भरी बड़ी अटैची रवि को रख लेने का अनुरोध कर रहा था । खुली अटैची को बंद कर रवि उस आदमी को वापस करते हुए बोल रहे थे कि "चुकि आप मेरे घर में खड़े हैं तो मेहमान समझ कर आपके साथ मैं कोई गलत व्यवहार नहीं कर पा रहा हूँ । साल का आज अंतिम दिन है आपके घर में आपका इंतजार हो रहा होगा । कॉफी पी लीजिये और तशरीफ़ ले जाएँ , नहीं तो घर आकर रिश्वत देने के जुर्म में आपको जेल भेजवा सकता हूँ अभी "।

रवि चार स्टोर के पदाधिकारी थे । आने वाला व्यक्ति स्टोर में सामान देने वाली कम्पनी का मालिक था । गलत सामान स्टोर में सप्लाई कर चुका था ,जब रवि के निगाहों में गलत सामान आया तो सामान रखने से इंकार करते हुए टेंडर कैंसिल कर रहे थे , सामान वापस ले जाने में कम्पनी को बहुत मुश्किल होने वाली थी ।रवि के पहले जो पदाधिकारी थे या अभी भी दूसरे शहर के स्टोर के जो पदाधिकारी थे उन्हें गलत सामान रखने में कोई हर्ज नहीं था उनकी भी तिजोरी भरती थी । घाटा सरकार को हो , हानि जनता का हो ,इससे किसी को कोई सरोकार नहीं था ।

कम्पनी के मालिक को विदा कर रवि कार्यालय पहुंचे तो बड़े पदाधिकारी को उनके ही केबिन में प्रतीक्षा करते पाया जो थोड़े झल्लाए से भी लगे । रवि को समझते देर नहीं लगी कि उनकी शिकायत पहुंच चुकी है ।

बड़े पदाधिकारी रवि को समझाने की बहुत कोशिश किये कि रवि स्टोर में आया समान वापस ना करे

रवि बड़े पदाधिकारी से बोला "आप खुद के हस्ताक्षर से सामान रख लें ताकि आगे जब भी कोई बात हो तो सामान की जिम्मेदारी आप पर रहे"

"तुम मेरी बात नहीं मान कर अवज्ञा कर रहे हो ,तुम्हें निलंबित कर दूंगा"।

"शौक से कर दीजिये"।

"पद च्युत कर दूंगा"।

"अगर आप ऐसा कर सके तो मुझे बेहद ख़ुशी होगी"।

"तुमको मैं देख लूंगा"।

"जरूर! गौर से देखिएगा । रोज देर रात को लौटता हूँ घर"!

लेकिन सरकारी नौकरी में बहुत आसान कहाँ होता देखना । भ्रष्ट व्यक्ति के वश में और कुछ नहीं होता ,रवि ये बात जानता था । अपने पति की ईमानदारी की चमक से रौशन होता नव वर्ष का सूरज और चमकीला नजर आया ज्योत्स्ना को ।


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