Arunima Thakur

Inspirational

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Arunima Thakur

Inspirational

उसने कहा था. ..

उसने कहा था. ..

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"क्या आप दक्षिण भारतीय हैं" ? इस सवाल के साथ ही बगल वाली दुकान से आती आवाजें भी उसके कानों में टकरा रही थी, "नहीं यह गहरे रंग तुम्हारे साँवले रंग पर, तुम पर अच्छे नहीं लगेंगे" । एक और मासूम दिल रंगहीन जीवन जीने के लिए बाध्य किया जा रहा था। समाज तो बहुत बाद में, हमारा उत्तर भारतीय परिवार ही पहले से ही वर्ण के आधार पर रंग पंसद करने की लक्ष्मण रेखा खींच देता है। पूछे गये सवाल का जवाब दिये बगैर उसके पैर खुद ब खुद उस आवाज की ओर बढ़ गये।

 यह सवाल और यह बातें उसके लिए नई नहीं है । वह मुस्कुरा उठी। वह कौन ? अरे भाई इस कहानी की नायिका सलोनी । जैसा कि आप नाम से जान गये होंगें हमारी सलोनी थोड़ी ज्यादा साँवली है। उसके कृष्ण वर्ण पर चटक रंगों की साड़ी और लंबे काले बालों की चोटी में गुँथी वेणी देखकर किसी को भी उसके दक्षिण भारतीय होने का संदेह होता है । खैर आश्चर्य होता है कि तीन दशक बीत चुके हैं । खत का जमाना वीडियो कालिंग में बदल गया पर आज भी चर्म वर्ण से पहनावे का रंग तय करने की प्रवृत्ति घटी नहीं है। 

वैसे दशको बाद भी इस सवाल के साथ ही सलोनी के चेहरे पर मुस्कान और दिल में उसकी याद आ जाती है । वह बहुत ही सुंदर था शायद या नजरों को उस उम्र में खूबसूरत दिखता था । वैसे भी उस उम्र में तो सभी सुंदर लगते हैं । बचकाने .मतलब किशोरवय चेहरा जहाँ यौवन दस्तक दे रहा था पर बचपन छोड़कर जाने को तैयार नही था, गरमियों के सूखे मैदान पर इधर उधर उगी घास की तरह उगी दाढ़ी वाले चेहरे पर गोल सा काँच का चश्मा । शायद आज के हैरी पॉटर जैसा, खैर तब सलोनी का हैरी पॉटर से कोई परिचय नहीं था। परिचय तो उससे भी नहीं था, वह स्नातक की कक्षाओं में सलोनी का सहपाठी था । शायद पूरी तरह से सहपाठी भी नहीं । क्योंकि सलोनी थी गणित की विद्यार्थिनी और वह जीव विज्ञान का विद्यार्थी था । उनकी सिर्फ रसायनशास्त्र की कक्षा साथ में होती थी वह भी कभी-कभी I बस वह दोनों एक ही कॉलेज में थे। 

 जीजीआईसी से होने के कारण सलोनी की कभी लड़कों को देखने या लड़कों से बातें करने की हिम्मत ही नहीं होती थी। वैसे भी साँवले रंग की सलोनी अपनी ही हीन भावना में दबी थी। घर में चाची ताई के सारे बच्चे मतलब सलोनी के चचेरे भाई बहन गोरे चिट्टे थे। बचपन से ही वह सब उसे कल्लो कह कर बुलाते थे। आज वह समझ पाती हैं कि शायद यह उनका उसके प्रति प्यार था पर सलोनी मे हीन भावना भरने के लिए पर्याप्त कारण था । एक कमी हो तो ठीक, ऊपर से सलोनी लंबी भी थी, काली, कजरारी, बड़ी बड़ी आँखें, जिन्हें देखते ही भैया लोग बोलते घूर कर क्यों देख रही हो ? अब वह क्या बोलती ? कि घूर नहीं रही हूँ। अब क्या आँखे खोलना भी गुनाह है ? इसीलिए वह हमेशा आँखें नीचे रखकर ही सब से बात करती थी । और तो और उसके कमर से नीचे तक लहराते घने काले बाल, उसे लगता था सब काला ही काला है उसके पास। वैसे माँ को लगता कि सलोनी का लम्बा कद उसके काले होने की वजह हैं। शायद माँ गलत नहीं थी। लम्बा कद होने के कारण बचपन से ही उसे खेलो में शामिल किया जाता था। बाद में खेलना उसका शौक बन गया। खेलों के इस स्तर तक आने के लिए धूप हो या बारिश अभ्यास बहुत करना होता था। माँ को लगता था कि धूप में ज्यादा खेलने, दौड़ने के कारण उसका रंग दब गया है। पर उसके सहपाठी कहते वह दौड़ती नहीं उड़ती हैं। सहपाठी मतलब उसने, ऐसा पहली बार तो उसने ही कहा था। 

 उसका महाविद्यालय में प्रथम वर्ष था, अंतर महाविद्यालीय खेल प्रतियोगिताएँ चल रहीं थी। सौ मीटर और दो सौ मीटर फर्राटा दौड़ में वह प्रथम आयी थी। उसकी सहेलियाँ उसे बधाई देकर जा चुकी थी। सलोनी भी सामान समेटकर निकलने की तैयारी कर रहीं थी। तभी वह आया। बधाई देने के लिए उसने हाथआगे बढ़ाये और बोला, "कमाल का दौड़ती हो। वास्तव में तो तुम दौड़ती नही उड़ती हो। तुम्हारे दौड़ते समय ऐसा लग रहा था मानो पैर जमीन को छू ही नहीं रहें थे"। उसके बधाई देने को उठे हाथ हवा में ही रह गये। सलोनी ने दोनों हाथ जोड़कर उसका आभार व्यक्त किया। उसने मुस्कुरा कर एक बार अपने हाथों को एक बार सलोनी को देखा फिर अगले दिन के लिए शुभकामनाएँ देकर चला गया। सलोनी बाद में बहुत देर तक सोचती रहीं, क्या उसे बुरा लगा होगा ? क्या उसे हाथ मिलाना चाहिए था ? 

बरबस ही उसके हाथ सालों पहले आगे बढ़े हाथ से हाथ मिलाने को आगे बढ़ आएँ । फिर से उसकी मीठी सी याद सलोनी के अधरों पर मुस्कान रख गयी थी। कभी कभी सलोनी सोचती काश वह थोड़ी छोटे कद की होती तो शायद कहीं छुप जाती, शायद तब यूँ धूप मे अभ्यास भी ना करना पड़ता । शायद तब उसका कृष्ण वर्ण इतना गहरा नहीं' होता। शायद तब माँ का बनाया चिरौंजी का उबटन उसके कृष्ण वर्ण को निखार पाता। लंबे कद की होने के कारण वह सहेलियों के समूह में भी अलग दिखती थी । उसकी सहेलियों के समूह में एक से बढ़कर एक सुंदर लड़कियाँ थी । तो भी किसी की नजर उस पर भी टिकेगी यह तो सलोनी ने सपने में भी नहीं सोचा था । 

उसे याद है कालेज खुले हुए कुछ महीने हो गये थे। उस दिन बेमौसम की बारिश शुरू हो गयी थी। सलोनी दूर से आती थी तो बारिश शुरू होने से पहले ही कालेज पहुँच गई थी । बाकी सहेलियाँ सब चौक के नाके पर मिलते थे, फिर सब साथ ही आते थे। पर उस दिन बारिश के आसार देखकर वह सीधे ही कॉलेज चली आई थी । उसकी कोई सहेली अभी तक पहुँची नहीं थी । वह अकेली बरामदे में खड़ी थी । तभी वह आया। अरे यह तो शायद वहीं हैं जिसने उसे शुभकामनाएँ दी थी । सलोनी अचकचा गई । पहली बार कोई लड़का, भाइयों को छोड़कर उसके इतने करीब खड़ा था । उसकी परफ्यूम की खुशबू या शायद उसकी पुरुषोचित महक सलोनी को बहका रही थी । वह कुछ समझ नहीं पा रही थी पर मन कह रहा था आज यह वक्त यहीं रुक जाए । वह क्यों आया था ? क्या कहने वाला था ? सलोनी को कुछ मालूम नहीं था ना ही उसे मालूम करना था । उस लड़के की साँसों की महक, शायद उसने संतरे वाली गोली खाई थी, सलोनी महसूस कर रही थी । वह घबरा कर दो कदम पीछे हुई पर पीछे दीवार थी। वह लड़का मुस्कुराता हुआ बोला, "अरे डरो मत खा नहीं जाऊँगा। तुम बहुत अच्छी खिलाड़ी हो। खेलती रहना हमेशा, लड़कियाँ ना परिवार के दबाव में आकर कुछ समय बाद खेलना छोड़ देती है। तुम खेलती रहना। अच्छा सुनो तुम इतने हल्के रंग के कपड़े क्यों पहनती हो ?" यह कैसा सवाल था ? सलोनी की मर्जी वह चाहे जिस रंग के कपड़े पहँने।

 वैसे उस लड़के ने सलोनी की दुखती रग पर हाथ रख दिया था । सच में यह सलोनी की मर्जी नहीं थी। मन तो सलोनी का भी ललचाता था, गहरे गुलाबी, पीले, हरे कपड़े पहनने के लिए पर हमेशा उसे डॉंट दिया जाता। इतने साँवले रंग पर इतने गहरे रंग के कपड़े अच्छे नहीं लगते, कोई हल्का रंग पसंद करो और वह मन मसोस कर रह जाती। वह सोचती, "अगर मेरा रंग साँवला है, अगर मैं अपने पिता का रंग लेकर आई हूँ तो इसमें मेरा क्या कसूर ? लोग तो कहते हैं "पितृमुखी बेटी सुखी" फिर मेरे साथ ऐसा क्यों है "? 

सलोनी उस लड़के की बातों का कोई जवाब नहीं दे पाई। बस सब भूल कर अपनी बड़ी बड़ी आँखों से उसकी और ताँकने लगी । 

वह फिर बोला, "हे भगवान तुम्हारी आँखें .... ! 

"अरे यह क्या किया मैंने" सलोनी घबरा गयी ? अब यह भी बोलेगा घूर क्यों रही हो ?

 पर उसने कहा, " उफ्फ तुम्हारी आँखें कितनी गहरी है कि कहीं देखने वाला डूब ना जाएँ। पर नहीं वह डूबेगा नहीं तुम्हारी यह घनी बड़ी-बड़ी पलके उसे बचा लेंगी। क्या इसीलिए तुम हमेशा अपनी आँखे झुकाकर रखती हो"?

 हे भगवान! वह यह सब क्या कह रहा था ? सलोनी को कुछ समझ नहीं आ रहा था । क्या वह भी उसका, उसके कृष्ण वर्ण का मजाक उड़ा रहा था ? 

फिर उसने धीरे से पूछा, "किताबें पढ़ने का शौक है क्या"? 

असमंजस में पड़ कर सलोनी ने धीरे से पूछा, "किताबें मतलब ? मैं बारहवीं में स्कूल में द्वितीय आई हूँ"। 

वह हँसा और बोला, "अरे नहीं शिवानी जी को पढ़ा है कभी ?"

 सलोनी ने इनकार में सिर हिलाया। 

 वह बोला, "मैं शिवानी जी की रचनाओं का बहुत बड़ा प्रशंसक हूँ। तुम साक्षात मुझे उनकी कहानी की नायिका जैसी लगती हो । क्या तुमने कृष्णकली पढ़ी है" ? 

सलोनी ने फिर से इनकार में सिर हिलाया। 

 वह बोला, "अच्छा तो पढ़ना, तब ही तुम मेरी बात का विश्वास कर पाओंगी" ।

 सलोनी अचरज से उसे देख रही थी। यह लड़का पागल हैं या उसका मजाक उड़ा रहा है ? काली कलूटी सलोनी उसे शिवानी जी की रचनाओं की नायिका लग रही थी ? उसने तो सुना था, कक्षा में एक बार हिंदी शिक्षिका ने बताया था कि शिवानी जी की नायिका नख से लेकर शिख तक बहुत खूबसूरत होती है । सलोनी के चेहरे पर बरबस ही हँसी आ गई । कैसे बेवकूफ बना रहा है । इसे क्या हासिल होगा, यूँ उसे बेवकूफ बना कर ? इतना खूबसूरत है इसे तो कोई भी लड़की मिल जाएगी । यह क्यों उसके साथ खेल कर रहा है ?

बारिश बंद हो चुकी थी। सामने से सलोनी की दो-तीन सहेलियाँ आती दिखी और वह उस लड़के को अनदेखा करके उनकी ओर बढ़ गई। अगर वह सब सहेलियाँ उसे किसी लड़के के साथ देख लेती तो बिना बात के बात बढ़ती | वह सब ऐसे प्रश्न पूछती जिनके उत्तर सलोनी के पास नहीं थे। मसलन वह कौन था ? क्या नाम था ? क्या सलोनी उसे जानती है ? क्या बाते कर रहा था ? पर उसकी बातें सलोनी को अंदर से गुदगुदा रही थी । सलोनी सोच रही थी "क्या सच में मैं शिवानी जी की नायिका सी दिखती हूँ ? क्या मुझे शिवानी जी का उपन्यास खरीद कर पढ़ना चाहिए ? घर में मम्मी को क्या बोलूँगी ? क्या मम्मी उपन्यास खरीदने देंगी ? नहीं ना किसी सहेली से पूछना पड़ेगा, अगर होगा तो माँग कर ही पढ़ना पड़ेगा" । उस लड़के की वह बातें बारिश की बूंदों सी, सलोनी के अंतर्मन को सींच गई थी । उस का खुद पर इठलाने का मन कर रहा था । सलोनी सोचती, "कौन था वह ? काश किसी से तो उसका नाम पता पूछ पाती ! पर कैसे पूछती उस दिन के बाद से कभी रसायनशास्त्र की कक्षाएँ साथ में हुई नहीं, और सलोनी की सहेलियों ने उसे देखा ही नहीं था। वैसे भी सहेलियों से बातें करती तो वह बात का बंतगङ बना देती। सलोनी दिन रात सोचती, कौन था ? जो मेरे सूखे मरुस्थल से मन पर अमृत वर्षा कर गया था । 

जाने अनजाने अब सलोनी उसके ख्यालों में खोई रहती । उसका एक मन कहता, पागल तारीफ करना एक बात है , प्यार करना अलग, पर यौवन की दहलीज पर खड़ा मन और तन दोनों ही उस लड़के की बातों को सोच सोच कर, उसके ख्यालों में प्रफुल्लित होते । 

और एक दिन अचानक क्लास के निकलते समय उसने कहा, "यह लो तुमने नोट्स माँगे थे। अपने पास ही रखना, मुझे जरूरत होगी तो माँग लूँगा। मुख्य मुख्य बिंदु मैंने रेखांकित कर दिए हैं । ध्यान से पढ़ना" । इतना कहकर वह सलोनी के हाथों में एक किताब थमा कर चला गया। सलोनी उस लड़के के हाथों के स्पर्श के कारण अभी भी काँप रही थी । कैसा अजीब सा एहसास था। मानो वह किताब नहीं लव लेटर पकड़ा कर गया था । उसका दिल जोरों से धड़क रहा था। सहेलियाँ कुछ पूछ पाती उससे पहले ही सलोनी तेज कदमों से दूसरी कक्षा में चली गई । "मैं उससे नोट्स माँगूंगी. . . इतने बुरे दिन मेरे . . "? यह सोचकर सलोनी मन ही मन गुस्सा हो रही थी। किताब बगैर देखे अपनी किताबों में छिपा दी । घर पहुँचकर देखा तो शिवानी जी की कृष्णकली की बिल्कुल नई किताब थी । क्या उसने पढ़ी थी । या नई किताब खरीद कर सलोनी को पकड़ाई थी । पर उस किताब से भी सलोनी को उसकी खुशबू आ रही थी । उस किताब को छू कर वह उसके हाथों के स्पर्श को महसूस कर रोमांचित हो रही थी । मन में बहुत उत्सुकता थी आखिर इस किताब में ऐसा क्या लिखा है कि उसने सलोनी का इसे पढ़ना जरूरी समझा I 

शिवानी जी की कहानी "कृष्णकली" के अनुसार कहानी की नायिका श्यामल वर्ण की थी। जिसकी आँखें व बाल बहुत ही सुंदर थे । क्या सच में सलोनी भी सुंदर है ? क्या सच में वर्ण कोई मायने नहीं रखता हैं ? क्या सलोनी की बड़ी बड़ी काली आँखें लोगों को डराती नहीं, डूबा देती हैं । क्या उसके काले बालों की लंबी चोटी नागिन सी लहराती, नागपाश है जो सामने वाले के मन को बाँध लेती है ? 

उस किताब में जहाँ-जहाँ नायिका अपने श्याम वर्ण पर गर्व करती है, उसे रेखांकित किया गया था। एक जगह नायिका कहती है, "लाल रंग जितना साँवले पर खिलता है उतना क्या कभी गोरे रंग पर खिल सकता है ? संथाल सुंदरियों की काले कोबरे जैसी चिकनी काली पीठ पर शिथिल जुड़े में लगा रक्त जवा का पुष्प कितना सुंदर लगता है" । 

सलोनी सोच में पड़ गयी थी , "क्या सचमुच वह सच कह रहा था ? मैं साँवली हूँ तो क्या हुआ ? मैं शिवानी जी के उपन्यास की नायिका सी सुंदर भी तो हूँ"। इन्हीं कुछ पंक्तियों ने सलोनी में नया आत्मविश्वास भर दिया। 

उसने मन में दृढ़ निश्चय किया, "नहीं इस बार मैं भी गहरे रंग के कपड़े खरीदूँगी । यह फीके रंग नहीं पहनूँगी । मैं भी अपने जीवन को रंगों से सजाऊँगी। हाँ मैं साँवली हूँ तो क्या हुआ ? इसका मतलब यह तो नहीं कि चमकीले चटक रंग मेरे लिए नहीं है"। 

यह सोचते ही सलोनी का चेहरा चमकने लगा । वह एकदम से शुरू नहीं कर पायी, पर धीरे-धीरे उसने अपने दुपट्टे से शुरू किया । सभी हल्के रंगों के सलवार कमीज पर उसने गहरे रंग के दुपट्टे लेने शुरू किए । लोगों ने, बहनों ने, सहेलियों ने टोका भी तो वह मुस्कुरा कर रह गयी, क्योंकि किन्ही एक जोड़ी आँखों में उसके लिए प्रशंसा का भाव होता होगा । सलोनी को लगता था, वह कभी सामने भले ही ना आए, पर वह उसे कहीं ना कहीं से शायद देखता होगा । और फिर धीरे-धीरे सलोनी चटक रंग के कपड़े पहनने लगी। बिना किसी के कुछ कहने की परवाह किए बगैर । 

 सलोनी के स्नातक का दूसरा साल अंत होने वाला था । सीनियर को दी गई विदाई पार्टी में उसने चटक टमाटर के रंग की लाल चौड़ें पाड़ की हरी बॉर्डर वाली साड़ी पहनी। साथ में काले धागे में ताँबे के ताबीज के साथ काली मोती और मूँगे की माला, कानों में काली मोती और मूँगे के टॉप्स । माथे पर लाल रंग की बिन्दी मानो घने बादलों के बीच से सुर्योदय हो रहा हो। सच कहूँ तो यह सब तैयारी उसने न जाने कब से शुरु कर दी थी । शायद उसने मन ही मन खुद को शिवानी जी की नायिका की तरह सजाना शुरू कर दिया था। 

जब वह तैयार होकर बाहर निकली तो उसकी मम्मी की आँखें उसे देखकर भर आई । उन्होंने सलोनी को काजल का टीका लगाते हुए बोला, "कितनी सुंदर लग रही है मेरी बिटिया। कहीं किसी की नजर ना लग जाएँ"। उसने मुस्कुराते हुए कहा, "मम्मी तुम्हारी कल्लो को काजल के टीके की जरूरत नहीं है। यह शेर भी शायर ने मेरे लिए लिखा है।

 इतना काला रंग भगवान की शरारत है 

गालों पे तिल बना रहा था स्याही फैल गयी

 इतना कह कर सलोनी खिलखिला कर हँस दी। पर आज उसकी मम्मी को उसकी मुस्कुराहट में मायूसी नहीं उसका आत्मविश्वास दिखा। आज सलोनी अपने साँवले रंग पर शर्मिन्दा नहीं थी।

सलोनी की मम्मी को वह दिन याद आ गया जब सलोनी शायद सिर्फ पाँच साल की थी। उसके चचेरे बड़े भाई के जन्मदिवस की पार्टी में उन्होंने अपनी लाड़ली को लाल रंग का खूबसूरत सा फ्रिल वाला फ्राक पहना कर भेजा था। कितनी खुशी खुशी वह पार्टी में शामिल होने गयी थी। पर पता नहीं वहाँ पार्टी में क्या हुआ जब तब वह तैयार होकर पार्टी के लिए निकलती, सलोनी रोती हुई वापस आ गयी। लाख पूछने पर उसने बताया कि वह सब उसे चिढ़ा रहें थे। उसके बाद से लोगो की टीका टिप्पणियों से घबराकर वह कभी किसी भी पारिवारिक समारोह में नहीं जाती थी। आज बहुत दिनों बाद उसे यूँ तैयार होकर बाहर जाते देख उसकी मम्मी बस प्यार और बेबसी से मुस्कुरा दी और भगवान से प्रार्थना करने लगी कि आज उनकी लाडली का दिल कोई ना दुखाएँ।

वहाँ कालेज पार्टी में सबकी नजरें सलोनी पर ही थी। लोग आश्चर्यचकित थे या फिर स्वीकार नहीं कर पा रहें थे कि साँवली सी सलोनी भी खूबसूरत लग सकती हैं। पर सलोनी की नजरें उसको ढूँढ रही थी । वह कहीं नहीं दिख रहा था। लगभग पिछले डेढ़ साल से वह किताब देने के बाद से ही वह सलोनी को नहीं दिखा। सलोनी प्रार्थना कर रही थी, "काश एक बार वह मुझे दिख जाए। काश आज वह मुझे देखें और कहें देखो मैं सच कहता था ना . . तुम बिल्कुल शिवानी जी की नायिका सी लगती हो। काश सलोनी उसे धन्यवाद कह पायें। काश. . . पर भगवान कहाँ सुनते है। वह आज भी सलोनी को नहीं दिखा। 

 सलोनी में आत्मविश्वास भरकर वह ना जाने कहाँ गायब हो गया। तृतीय वर्ष की परिक्षाएँ भी खत्म हो गयी। पर वह नहीं दिखा। परिणाम आने के बाद जिस दिन सलोनी मार्कशीट लेने गई थी, उसे थोड़ी देर हो गई थी। उसे कॉलेज से एलसी भी निकलवानी थी। उसे लगा वहीं काउंटर पर वह भी खड़ा था। सलोनी को अच्छे से याद है, उस दिन सलोनी ने गहरा पीला मिट्टी के रंग का सलवार कुर्ता पहन रखा था। उस पर पीला दुपट्टा लिया था । बालों की ढीली चोटी करके वेणी लगाई थी और कैसा संयोग था उसने भी पीली शर्ट पहनी थी। सलोनी काउंटर पर बात करने लगी तो वह रुका था । क्लर्क कागज़ात तैयार करने लगा तो वह धीरे से सलोनी से बोला, "यह वेणी हमेशा लगाना, तुम पर बहुत अच्छी लगती है । सुनो मैंने तुम्हारी आँखों में वह देखा है जो मेरे दिल में है । मैं कोई वादा तो नहीं करता, पर नसीब में होगा तो मिलेंगे, पर इंतजार मत करना"। ऐसा बोलकर वह चला गया। अरे कहाँ चला गया। इतनी जल्दी तो कोई गायब ही हो सकता है। वह सच में वहाँ था ? या सलोनी के मन का भ्रम था । क्या सलोनी हर पल उसके बारे में सोचती है इसलिए सलोनी को उसके वहाँ होने का आभास हो रहा था। 

उफ्फ कितनी सारी बातें करनी थी I कितने सारे सवाल पूछने थे । इतने दिन कहाँ थे ? क्या कर रहें थे। धन्यवाद देना था कि तुम्हारी एक प्रसंशा भरी निगाह और किताब ने मेरी जिन्दगी जीने का ढंग बदल दिया। पर इतने समय बाद उसे सामने देखकर सलोनी थोड़ा हतप्रभ रह गई थी । इसलिए बात करने की बजाय सलोनी सोच में पड़ गयी, "क्या लड़का है ? फिर भूल भुलैया जैसी बातें करके चला गया। वह कौन होता है ? कहने वाला कि इंतजार मत करना । मेरी मर्जी मैं करूँगी" । 

 पर कहाँ चल पाती है लड़कियों की मर्जी । कालेज से निकलने के साथ ही खेलकूद भी छुड़ा दिया गया। इतना अच्छा रेलवे में भर्ती हो सकती थी खेल के आधार पर । पर उसे बीएड़ करना पड़ा। सलोनी अभी बी. एड. कर ही रही थी कि घर में रिश्ते आने लगे और सलोनी को देखने दिखाने का कार्यक्रम शुरू हो गया । मम्मी हर बार कहती, "वही लाल वाली साड़ी पहनना । तुम पर बहुत अच्छी लगती है" । पर देखने वाले रूप नहीं रंग देखते थे । सीरत नहीं सूरत देखते थे । गुण नहीं दहेज चाहते थे । सबका वही कहना था, लड़की सांवली है दहेज में इतना तो देना ही पड़ेगा, नहीं तो रूपवती गोरी कन्याओं की कमी नहीं है। साल दर साल सरकते जा रहे थे । अब तो माँ ने लाल वाली साड़ी को पहनने के लिए बोलना भी बंद कर दिया था। बेचारी साड़ी कितना सलोनी के दुर्भाग्य का बोझ ढ़ोती ? सलोनी बी. एड. कर के पास के ही स्कूल में पढ़ाने भी लगी । एम ए करने के बाद उस ने पीएचडी के लिए भी अप्लाई कर दिया । उसके मम्मी पापा उसके लिए दूल्हे की खोज में कुम्हलाते जा रहे थे । वहीं दूसरी ओर सलोनी की शैक्षणिक योग्यता दिन पर दिन उस मे निखार ला रही थी यह अलग बात है कि दहेज के लालची लोगों को सिर्फ सलोनी का काला रंग दिख रहा था ।

आखिर एक दिन पापा बहुत खुशी-खुशी घर आए । एक रिश्ता आया है । लड़का डाक्टर है । दहेज की कोई माँग नहीं है । लड़की भी पसंद है । पर चाहते हैं एक बार लड़की भी लड़के से मिल ले। सलोनी के हाथ उन लोगों के आने वाले दिन ना जाने क्यों लाल वाली साड़ी पर चले गए । उस ने वही लाल साड़ी पहनी और गले में वही काली डोरी में गुंथे मूँगे और काली मोती के बीच में तांबे का ताबीज बांध लिया । बालों का जूड़ा ना बनाकर ढीली सी चोटी लटका ली, वेणी भी लगा ली थी । सलोनी खुद अपने आप पर चकित थी। पर पता नहीं क्यों आज यह सब करने का मन कर रहा था । 

तय समय पर वह सब आयें। अभिवादन और कुशल क्षेम पूछने की रस्मों के बाद सलोनी चाय लेकर पहुँची । वहाँ लड़के के माता-पिता व बहन थे और पास में ही एक गहरा साँवला सा लड़का बैठा था | अच्छा यह भी साँवले है l इसीलिए शादी के लिए तैयार है । इन्हें भी लड़की नहीं मिल रही होगी । हाथी के दाँत खाने के और दिखाने के और । खैर सलोनी सुशील कन्या की तरह बैठ गई । जो सवाल पूछे गए उनके जवाब दिए I तभी लड़के की माँ ने बताया कि लड़का ट्रैफिक में फस गया है, अभी आ ही रहा होगा। मतलब यह लड़का नहीं है । क्या लड़का इससे भी ज्यादा साँवला होगा ? तभी दरवाजे पर आहट हुई । एक सुदर्शन गौर वर्ण युवक हल्की दाढ़ी मूछें चौकोर फ्रेम का चश्मा लगाए हुए, ने घर के अंदर प्रवेश किया। काफी दमदार आवाज में देर से आने की माफी माँगी । कुछ देर बाद पापा ने सलोनी को उसको लेकर लॉन में जाने को बोला। वह दोनों बाहर आए। वह बोला, "लगता है शिवानी जी को पढ़ना आपको बहुत अच्छा लगता है । बिल्कुल शिवानी जी की उपन्यास की नायिका लग रही हैं आप"। सलोनी ने चौंक कर उसे देखा। वह मुस्कुरा रहा था । यही बात तो सालों पहले उसने कही थी । सलोनी ध्यान से उसे देख रही थी । ना तो गोल चश्मा था, ना ही वह लड़कपन का चेहरा, ना ही वह बचकानी आवाज पर वह शायद वही था । पर उसके मुस्कुराते चेहरे पर सलोनी से पूर्व परिचय का कोई भी चिन्ह नहीं था । सलोनी पशोपेश में थी। क्या यह वहीं है ? अगर हाँ तो इसके चेहरे पर पहचान के भाव क्यों नहीं है। सलोनी का एक बार मन भी किया कि पूछूँ , क्या तुम वहीं हो ? पर वहीं कौन ? सलोनी तो उसका नाम भी नहीं जानती। किसी अनजान से ऐसे पूछना कि क्या तुम वही हो जिसने मुझे शिवानी जी की किताब दी थी कितना अजीब सा लगता है ना । अगर यह वह नहीं हुआ तो वह सलोनी के बारे में क्या सोचेगा ? वैसे भी शिवानी जी की रचनाओं को पसंद करने वाले प्रशंसकों की कमी थोड़ी ना है । वही क्यारी से गेंदें का एक फूल तोड़ कर सलोनी की ओर बढ़ाते हुए बोला, "मेरे सपनों की नायिका सी तो तुम हो ही। बोलो क्या बनोगी मेरे जीवन की नायिका"। 

अनजाने में उसके बारे में सोचते हुए बरबस उनके हाथ सालों पहले दिये गये फूल को स्वीकार करने के लिए आगे बढ़ आयें । वह फूल जो तब वह संकोच वश स्वीकार नहीं कर पायी थी और लजाकर घर के अन्दर आ गयी थी। क्योकि तब शादी के लिए सिर्फ लड़का / लङकी , पंसद आना पर्यात नहीं था। दान दहेज की बातें मुख्य भूमिका निभाती थी। 

वास्तव में अब सलोनी के मन के अंदर एक द्वंद प्रारंभ हो गया था। अभी तक तो वह निश्चिंत थी क्योंकि कोई उसे पसंद ही नहीं करता था । पर अब वह क्या करें ? क्या उसका इंतजार करें ? एक ऐसे अनजान शख्स का जिसे वह जानती भी नहीं, जिससे मिल कर बिछड़े हुए सालो हो चुके हैं । या स्वीकार कर ले उसको, जो उसके जैसा ही है । क्या यह वही है ? सलोनी को उससे एक बार पूछ लेना चाहिए । "आखिर पूछने में क्या हर्ज है"? उसके मन ने कहा ।"नहीं पूछा तो भी क्या हर्ज है ? कोई वादा तो किया नहीं था । वह हो ना हो क्या फर्क पड़ता है" मन ने दूसरी दलील दी। 

इसी उहापोह में डूबते उतराते सलोनी कोई भी निर्णय ले पाती कि मम्मी पापा ने खुशी से झूमते हुए खुशखबरी सुनायी कि उन लोगों को सलोनी पंसद आ गयी है। उन लोगों ने शादी के लिए हाँ कर दी है। उन लोगों की बस एक ही माँग है..... सलोनी मन ही मन मुँह बनाते हुए बोली, "हुँह औकात दिखा दी ना। कहाँ तो कह रहे थे कि कुछ दहेज नहीं चाहिए। और यहाँ देखो फरमाइशे शुरू भी हो गयी" । तब से सलोनी के पापा बोले, "वह लोग शादी जल्दी से जल्दी करना चाहते हैं" । ऐसा कहकर जब पापा ने सलोनी की ओर देखा तो सलोनी तो लजा गई हाय राम ! उसके तो कान तक दहकने लगे शरम के मारे। 

पहला शुभ मुहुर्त देख कर सलोनी की शादी भी हो गई और सलोनी अपने ससुराल भी आ गई। 

( वर्तमान में) 

तभी सलोनी के पति ने आकर सलोनी के काँधे को थाम कर हिलाते हुए बोला, "कहाँ खो गयी, चलो घर चलना है या नहीं"। सलोनी उसे देखकर मुस्कुरायी और बोली, "चलती हूँ ना बस एक मिनट"।

सलोनी उस दुकान के अन्दर गयी जहाँ से आवाजें आ रही थी। वहाँ कुछ लड़कियाँ शायद सहेलियाँ या फिर बहनें होगी, कपड़े खरीद रहीं थी। एक लड़की जिसका रंग थोड़ा दबा था वह बड़ी मायूसी से सामने पड़े कपड़े के ढेर को देख रहीं थी। मानों वह निर्णय नहीं ले पा रहीं थी कि उसे क्या खरीदना है। सलोनी ने उन सब के विशेषतया उस साँवली लड़की के सामने जा कर खडे होते हुए पूछा, "क्या मैं अच्छी नहीं लग रहीं हूँ ? क्या यह गहरा रंग मुझ पर अच्छा नहीं लग रहा है" ? 

अचानक से पूछे गये प्रश्न एवं उसकी अचानक की उपस्थिति से वह लड़कियाँ थोड़ा उलझन में पड़ गई । उस साँवली सी लड़की ने हिम्मत जुटाकर आँखों में प्रशंसा के भाव लाते हुए बोला, "नहीं आप तो बहुत सुंदर लग रही हो और यह रंग भी आप पर बहुत अच्छा लग रहा है" । 

 "हॉं मैं तुमसे यही कहना चाहती हूँ कि जब हमारे अंदर आत्मविश्वास होता है तो हमारे चर्म का वर्ण कोई भी हो उससे फर्क नहीं पड़ता है। हम जो कुछ भी पहनते हैं हमारे ऊपर अच्छा लगता है। वैसे भी चर्म वर्ण तो हम बदल नहीं सकते हैं पर अपना व्यक्तित्व बना सकते हैं । हमारा दमकता हुआ व्यक्तित्व हमें खूबसूरत बनाता है । तो आज के बाद से भूल जाओ कि तुम्हारा रंग क्या है, बस वही पहनो जो तुम्हें अच्छा लगता है", सलोनी ने बोला। और हाँ अगर अपने ऊपर, अपने रंग पर हीन भावना हो तो शिवानी जी की उपन्यास कृष्णकली अवश्य पढ़ना" । वह दूर खड़ा होकर उसे देख कर मुस्कुरा रहा था। 

इतना बोलकर उन लड़कियों को अचंभित और उस साँवली सी लड़की को हाथों में गुलाबी रंग की ड्रेस थामने की हिम्मत देकर सलोनी अपने पति के साथ घर वापस आने के लिए निकल गई। 

कार में बैठकर आँखें मूँद कर सलोनी सोच रही थी,

"जिंदगी के हर पन्ने पर तुम्हारा नाम है 

पर तुम मेरी जिंदगी में कहीं नहीं हो" । 

वही सलोनी का पति उसे देख कर मन ही मन सोच रहा था, "क्या आज की सलोनी को देख कर कोई सोच सकता है यह वही डरी सहमी सी अपने साँवले रंग की हीन भावना से ग्रस्त लड़की है" । 

उसे मालूम था अब सलोनी आँखे बंद करके उसी लड़के को याद कर रही है, जिसने उसे कृष्णकली पढ़ने की सलाह दी थी। 

 उसे कैसे मालूम ? अरे वही तो है वह ! पर उसने आज तक अपना परिचय, अपना रहस्य सलोनी के सामने उजागर नहीं किया है । यहाँ तक तब भी नहीं, जब उसकी लाइब्रेरी में शिवानी जी की सारी किताबों के बीच में सलोनी को सिर्फ एक किताब कृष्णकली नहीं दिखी । तब उसने बड़ी मासूमियत से बोल दिया था, "अरे ! वह किताब तो मेरा दोस्त ले गया था, पढ़ने के लिए । उसने वापस ही नहीं किया"। 

तब सलोनी ने अपनी किताब ले जाकर वहाँ रखते हुए कहा, "यह किताब किसी ने मुझे दी थी पढ़ने के लिए। वो वापस कभी मिला ही नहीं इसलिए वापस नही कर पायी। अब आपका संग्रह पूरा हो गया है"। 

सलोनी मन ही मन सोचती थी, "पता नहीं मुझे क्यों लगता है, यह वही है, यह स्वीकार क्यों नहीं करते है" । 

और वह मन ही मन कहता, "तुम्हारा दोहरा प्यार मिल रहा है तो मैं स्वीकार क्यों करूँ कि मैं वही हूँ । वैसे भी तुम उसका एहसान मानती हो कि उसने तुमको तुमसे परिचित करवाया। पर मुझे मेरे एहसानों से लदी तुम नहीं, सिर्फ और सिर्फ तुम और तुम्हारा प्यार चाहिए। वैसे भी कितनी मजा आती है यह सोच कर कि तुम जिसे मन ही मन जिसे प्यार करती हो मतल.ब तुम्हारा पहला प्यार भी मैं हूँ और अधिकारिक प्यार भी मैं ही हूँ। 

इनकी कहानी तो पूरी हो गई है या यूँ कहें कि शुरू हो गई है । उसके कहने पर एक लड़की का जीवन बदला और उस एक लड़की ने ना जाने कितनी लड़कियों को हीन भावना से मुक्त करवाया। अब हमारी और आपकी बारी है, लड़का हो या लड़की उनमें चर्म वर्ण से संम्बधित श्रेष्ठ्ता या हीनता की भावना ना पनपने दें। नहीं तो शिवानी जी की कृष्णकली हैं ना समझाने के लिए। 


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