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शिखा श्रीवास्तव

Inspirational

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शिखा श्रीवास्तव

Inspirational

उसकी दुनिया

उसकी दुनिया

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अंजू बहुत प्यारी-प्यारी कहानियां लिखती थी। रिश्तों के खूबसूरत रंगों से सजी हुई कहानियां।

उन्हें पढ़कर सब सोचते थे कि इस लड़की के जीवन में प्रेम ही प्रेम होगा। इसके रिश्तों में खूबसूरती होगी, तभी तो ये अपनी कहानियों में इतनी प्यारी दुनिया रच पाती है।

लेकिन, हकीक़त कुछ और ही थी। अंजू भावनात्मक रूप से बेहद तन्हा थी। उदासी उसके जीवन का अटूट हिस्सा बन चुकी थी। कोई ना था जो उसे प्रेम भरी नज़रों से देखता, स्नेह भरा हाथ उसके सर पर रखता।

माता-पिता के लिए वो एक ऐसी बेटी थी जो कुरूप तो थी ही, जिसकी शादी के बाज़ार में कोई जगह नहीं थी, और ना ही ढेर सारा दहेज़ देकर लड़के वालों को मोह सके, ऐसी क्षमता भी उसके घरवालों की थी।

इसलिए वो दिन-रात अंजू पर सरकारी नौकरी पाने के लिए दबाव डालते थे कि शायद इसी के बलबूते कोई उसे अपने घर की बहू बना ले।

लेकिन अफ़सोस यहाँ भी अंजू की किस्मत ने उसका साथ नहीं दिया। बहुत कोशिशों के बाद भी वो कोई परीक्षा उत्तीर्ण नहीं कर सकी। हालांकि अपना खर्च चलाने के लिए उसने एक गैर-सरकारी संस्था में नौकरी खोज ली थी, लेकिन फिर भी अपने घरवालों की नज़रों में वो बोझ ही थी।

अंजू के परिवार की नज़रों में ना उसकी इस नौकरी की कोई अहमियत थी ना उसके द्वारा रची गयी उन कहानियों की जिसका एक बड़ा पाठक-वर्ग बन चुका था।

उसके भाई-बहन भी अक्सर उसका उपहास उड़ाया करते थे।

अंजू किसी से कुछ नहीं कहती थी। बस उसके जीवन में जो कमी थी, उसे वो अपनी कहानियों के जरिये दूर करने की कोशिश करती थी। उसकी एक ही ख़्वाहिश थी कि वो कुछ ऐसा लिखे की उसे पढ़कर दुनिया में कुछ लोग तो प्यार की, रिश्तों की अहमियत समझ जाये और किसी के आँसू पोंछ सकें।

एक दिन संस्था के पते पर अंजू को एक चिट्ठी मिली, जो उसके एक पाठक ने लिखी थी।

"आदरणीय लेखिका जी,

 नमस्कार

मैं आपकी रचनाओं को नियमित रूप से पढ़ता हूँ। आपकी कहानियों के सकारात्मक पहलू ने मुझे वो रास्ता दिखाया जिस पर चलकर मैं अपने बिखरे हुए रिश्तों को फिर से समेट पाया।

आपकी लेखनी को नमन करते हुए मैं सदैव आपका आभारी रहूँगा।

बस आप इसी तरह सुंदर रचनाएं लिखती रहिये।

आपका प्रशंसक।"

इस चिट्ठी को पढ़कर बरसों के बाद अंजू के होठों पर सच्ची मुस्कुराहट आयी थी। इस चिट्ठी में लिखे शब्दों ने आज अंजू को भी एक नई दिशा दिखायी थी।

उसने तय कर लिया कि वो नौकरी के साथ-साथ फिर से अपनी पढ़ाई शुरू करेगी। अंजू के घरवालों को जब इस विषय में पता चला तो उन्होंने उसका खर्च उठाने से साफ मना कर दिया। लेकिन उसकी संस्था की मैनेजर ने उसे पूरा सहयोग देने का वचन दिया। अंजू ने नए सत्र में मनोविज्ञान विषय के साथ स्नातक में दाख़िला ले लिया। एक-एक कदम आगे बढ़ाती हुई अंजू आज स्नातक, स्नातकोत्तर के बाद डॉक्टरेट की डिग्री के साथ शहर की प्रसिद्ध मनोचिकित्सक बन चुकी थी।

अपने मरीज़ों के जीवन में छाये हुए अंधेरे और अकेलेपन के अहसास को दूर करती हुई अंजू का जीवन भी अब तन्हा नहीं रह गया था।

अपने मनोबल की बदौलत अंजू ने साबित कर दिया था कि शादी से इतर भी एक खूबसूरत ज़िन्दगी हो सकती है। सिर्फ शादी और पति का नाम ही एक स्त्री की आखिरी मंज़िल नहीं है। अंजू के मरीज़, और उसकी रचनाओं के पाठक ही अब उसकी दुनिया थे।

अपनी कहानियों की किताब के मुख्य-पृष्ठ पर छपी अंजू की तस्वीर में उसकी संतोष भरी मुस्कुराहट स्पष्ट झलक रही थी।

अपनी किताब को हाथ में लिए हुए वो मन ही मन चिट्ठी भेजकर उसे प्रेरणा देने वाले पाठक के साथ-साथ उन सभी पाठकों के प्रति आभारी महसूस कर रही थी जिन्होंने उसके चेहरे की जगह उसकी प्रतिभा की सुंदरता को सराह कर उसे सदैव के लिए निराशा के गर्त में जाने से बचा लिया था।


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