उसके मैसेज
उसके मैसेज
सुबह-सुबह मोबाइल में विवेक का मैसेज देख कर निशा का माथा चकरा गया, बार-बार यही सोचते हुए कि काश! हम उस दिन ना मिले होते वो उस दिन को कोसते हुए याद करने लगी।
नई दिल्ली के रेलवे स्टेशन पर ट्रेन का इंतजार करते हुए निशा का वक्त नहीं कट रहा था, वह जल्दी से घर पहुंच जाना चाहती थी; आकाश और बच्चों के पास। यह सेमिनार उसको हमेशा उबाऊ लगते हैं लेकिन जाना ही पड़ता है।
एक फौजी साजो-सामान के साथ आकर उसी बेंच पर बैठ गया निशा थोड़ा खिसक गई और अपने मोबाइल में ही कुछ लिखने लगी। थोड़ी देर बाद वह असहज महसूस करने लगी क्योंकि उसको ऐसा लगा फौजी बार-बार उसकी तरफ देख रहा है, वह उठ कर जाने ही वाली थी कि-
"निशा??" फौजी ने सवाल कर दिया।
"हाँ!!" कहते हुए निशा ने उस फौजी की तरफ देखा।
"मैं विवेक.........विवेक शर्मा........"
"अरे विवेक तुम? और तुम फौजी बन गए हो?" निशा ने सवाल किया।
अपने साथ पढ़ने वाले लड़के विवेक को देखकर निशा खुश हो गई लेकिन पहचान पाना थोड़ा मुश्किल था तभी उसको वक्त लगा वैसे बीस साल का लंबा अंतराल भी हो गया था तभी वह नहीं पहचान पाई।
"मैं फौजी हूँ या यह कहना चाहिए मैं फौजी था........."
"क्यों!! थे क्यों?" निशा ने सवाल किया।
"मैं १६ साल की सर्विस के बाद अब वी आर एस लेकर वापस घर लौट रहा हूं........थोड़ी देर में ही ट्रेन आने वाली है तो फोन का आदान-प्रदान हुआ दोनों को एक ही तरफ जाना है एक ही शहर लेकिन डब्बा अलग-अलग है। ऐसे में दोनों अपने-अपने डब्बे में चले जाएंगे।
निशा ट्रेन में भी खुशी महसूस कर रही है उसको अच्छा लग रहा था इतने टाइम के बाद विवेक से मिलकर विवेक क्लास का बहुत ही अच्छा सीधा-साधा और पढ़ाकू लड़का था, उसकी कई बार क्लास में विवेक से बात होती थी, अब इतने समय में बहुत सारी क्लास की सहेलियां और लड़के मिल भी गए हैं फेसबुक के माध्यम से तो उसको कई बार विवेक की याद आती थी; उसको ढूंढने की भी कोशिश करती थी ।
घर पहुंचकर आकाश और बच्चों से मिलकर निशा सब कुछ भूल गयी फिर से अपने काम में लग गई वही यूनिवर्सिटी जाना आकाश को ऑफिस जाना बच्चों का स्कूल जाना सब नॉर्मल चलता रहा।
एक दिन विवेक का मैसेज आया फिर अक्सर आने लगा निशा को भी उससे बात करना अच्छा लगता था।
लेकिन कभी-कभी उसे लगता कि विवेक उससे कुछ कहना चाहता है; वह बार-बार बहाने से यह जताने की कोशिश करता है कि क्लास के दिनों में मैं तुम्हें बहुत पसंद करता था, लेकिन इस डर से कि मैं तुम्हारे लायक नहीं हूँ इसलिए मैंने कभी प्रपोज नहीं किया सोचा कुछ बन जाऊंगा, तब तुमसे कहूंगा लेकिन तब तक तुम्हारी शादी हो गई थी।
उसकी बातों को कहने का तरीका अलग होता था लेकिन मतलब यही था घुमा फिरा कर अपनी बात समझाना चाहता था।
निशा को यह सब पसंद नहीं आ रहा था इसलिए उसने धीरे-धीरे थोड़ी दूरी बनाना शुरु कर दिया मैसेज का जवाब नहीं देना, बिजी होने का बहाना बनाना ताकि वह समझ जाए और वह बार-बार मैसेज ना करें।
लेकिन आज के इस मैसेज ने जिसमें उसने लिख दिया है कि मैं तब भी तुम्हें ही प्रेम करता था, आज भी तुम्हें ही प्रेम करता हूं; तुम ही मेरा पहला और अंतिम प्यार हो। निशा को उसकी ये बात बर्दाश्त नहीं हो रही है कि उसने उस जैसी शादीशुदा एक पारिवारिक स्त्री से ऐसी बात कहने की हिमाकत करी है।
इस पूरे प्रकरण में उसे एक बात अच्छी तरह समझ आ गई थी कि परपुरुष, चाहे वो स्कूल कॉलेज के दिनों कितना ही अजीज रहा हो ऐसे पुरुषो को शादीशुदा महिलाओ को बिलकुल फोन नंबर नहीं देना चाहिए, देर सबेर वो पुरुष फालतू की समस्याएं खड़ी कर ही देता है। उसे सीख मिल चुकी थी कि पुरुषो को अपना मोबाईल नंबर सोच समझ कर ही देना चाहिए। वो सिर पकड़ कर सोच रही थी कि काश दिन हम ना मिले होते सोचते हुए उसने मोबाइल में ब्लॉक का बटन दबा दिया।