उसका अपराधी
उसका अपराधी
काशी के मनिकर्निका घाट पर सेठ जनार्दन दास अग्रवाल मायूस से सीढ़ियों पर बैठे थे,एक साधू बहुत देर से उनकी मनोदशा को समझने का प्रयत्न कर रहा था।
कुछ देर बाद सेठ जी उठे, गंगा के जल को अंजलि में भरकर मुंह धोया ,फिर थोड़ा से सीढ़ियों से नीचे उतरकर पैर गीले किए,शरीर पर जल के छींटें मारे और वापस आ गए।
अब साधू ये देखकर चुप ना रह पाए और सेठ जी से बोले__
ये क्या महाशय?बिना डुबकी लगाएं ही गंगा मैया से आ गए, ऐसे आधे अधूरे स्नान से चिंताएं नहीं मिटा करती,बल्कि और भी ज्यादा बढ़ जाती हैं।
आपको कैसे पता कि मैं चिन्तित हूं, सेठ जी ने पूछा।
आप इतनी देर से सीढ़ियों में किसी समस्या का समाधान ही खोज रहे थे परन्तु अभी तक आपको शायद कोई रास्ता नहीं मिला, मुझे अपनी समस्या बताने योग्य समझते हो तो बता सकते हैं,शायद मेरे पास आपकी समस्या का कोई उपाय हो,साधू महाराज बोले।
मेरी बेटी प्रेम-विवाह करना चाहती है लेकिन मैं यह नहीं चाहता, मैंने उसके लिए एक बहुत अमीर घर का लड़का देखा है,सेठ जी बोले।
आप की बेटी जो चाहती है वहीं करें, ऐसा ना हो कि आप उसकी शादी अमीर घराने में कर दें और उसका दुष्परिणाम आगे चलकर आपको भुगतना पड़े,साधू बोले।
परन्तु, बाबा!इसका क्या दुष्परिणाम हो सकता है,सेठ जी ने पूछा।
तो सुनो, तुम्हें एक कहानी सुनाता हूं और साधू ने कहानी कहनी शुरू की___
बहुत समय पहले की बात है,एक गांव में दो विधवा रहा करतीं थीं, दोनों ही अच्छी पड़ोसिन और अच्छी सहेलियां थीं, बेचारी दोनों दूसरों के खेतों में काम करके अपनी गुजर बसर किया करती थीं, उनमें से एक का नाम संतोषी था, संतोषी के एक बेटी थी जिसका नाम ऊषा था।
दूसरी का नाम गायत्री था,जिसके एक बेटा था और उसका नाम सूरज था,सूरज पढ़ाई में बहुत अच्छा था, गायत्री उसे डाक्टर बनाना चाहती थी, दोनों बच्चे बचपन से एक साथ खेलकर बड़े हुए और बड़े होकर दोनों के मन में प्रेम का अंकुर भी फूट गया लेकिन मांओं को ये बात पता नहीं थीं।
सूरज की पढ़ाई के लिए अब पैसे की जरूरत थी तो, गायत्री ने एक अमीर घर की लड़की से सूरज का रिश्ता तय कर दिया, जबकि सूरज उस समय शहर में था,सूरज ने लड़की को नहीं देखा।
ये बात पता चलते ही ऊषा बहुत दुखी हुई, कुछ दिनों बाद लड़की का भाई शादी की तारीख तय करवाने गायत्री के घर आया तब संतोषी और ऊषा दोनों ही गायत्री के घर में मौजूद थीं,लड़की के भाई ने ऊषा को देखा तो ऊषा उसे पसंद आ गई, उसने ये बात घर में बताई, घरवालों ने भी ऊषा को देखा और पसंद कर लिया और कुछ दिनों में ही शादी की तैयारियां होने लगीं, ऊषा खुश नहीं थीं और उसने ये सब गायत्री और संतोषी को बता दिया कि वो तो सूरज से प्यार करती है लेकिन संतोषी और गायत्री को ये मंजूर ना हुआ और सूरज की गैर-हाजिरी में ही ऊषा की शादी कर दी गई।
इधर ऊषा अपने पति रमेश को कभी नहीं अपना पाई तो रमेश भी ऊषा से चिढ़ा चिढ़ा रहने लगा, कुछ दिनों में ही उसे शराब की लत भी लग और पराई स्त्रियों में अपना मन लगाने लगा,ये बात पता चलने पर संतोषी बहुत दुखी हुई,उसे लगा कि उसने अपनी बेटी की जिंदगी बर्बाद कर दी।
इधर सूरज जब शहर से लौटा तो ऊषा के बारे में जानकर उसे बहुत दुख हुआ लेकिन गायत्री ने सोचा कि एक बार शादी हो जाएगी तो सूरज का गुस्सा खत्म हो जाएगा और जब शादी में सूरज और ऊषा मिले तो दोनों के आंखों से आंसू बह निकले, शादी के बाद सूरज भी अपनी पत्नी ललिता को अपना नहीं बना पाया,ये बात ललिता के भाई रमेश को पता चली तो वो बहुत ही गुस्सा हुआ ।
फिर एक दिन ऊषा अपने पति रमेश के साथ मायके आई,बगीचे में ऊषा और सूरज मिले,ऊषा ने रमेश से कहा मुझे भूल जाओ, लेकिन रमेश बोला मैं तुम्हें नहीं भूल सकता और ना ही ललिता को कभी अपना पाऊंगा,ये बातें रमेश ने भी छुपकर सुन ली और अब उसके सिर पर खून सवार हो गया और रात होने पर उसने ऊषा और सूरज का कुल्हाड़ी से कत्ल कर दिया,इसके लिए रमेश को उम्र कैद की सजा हुई लेकिन उसके अच्छे व्यवहार के कारण उसकी सजा कम हो गई लेकिन रमेश को इसका अब भी बहुत पछतावा है।
साधू ये कहते कहते चुप हो गए।
लेकिन आपको कैसे पता कि रमेश को अभी भी पछतावा है,सेठ जी ने पूछा।
क्योंकि रमेश मैं ही हूं और मैं उसका अपराधी हूं,काश मैं ने दोनों के प्यार को समझा होता,साधू बोले।
अब मुझे आपकी बात समझ आ गई, मैं अब अपनी बेटी के पसंद के लड़के से ही उसकी शादी करूंगा और इतना कहकर सेठ जी चले गए।