उपाय

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श्री उमाकांत अपने प्रकांड विद्वान पिताजी स्वर्गीय रमाकांतजी द्वारा सिखाई गई कई ऊपरी विद्याओं के अल्पज्ञाता थे, पर रट्ट तोता होने की वजह से उन्होंने काफी कुछ कंठस्थ कर लिया और पिताजी की विरासत में मिली गद्दी और जजमान संभाल लिए। जजमानों की जन्म कुंडली बनाना और बाँचना, हस्त रेखाएँ देख कर भविष्य फल बताना, न्युमरोलौजी (अंक ज्योतिष), इत्यादि। वे जन्म से लेकर शमशान घाट से पहले तक के कर्म कांड भी जानते हैं, जैसे की जन्म के बाद छठी की पूजा, बच्चे को प्रथम बार अन्न खिलाने (अन्न प्रासन) की पूजा, सत्यनारायन भगवान की कथा, सुंदरकांड पाठ, अखंड रामचरित्र मानस पाठ, महामृत्युंजय जप,आदि। शादी-ब्याह के संस्कृत श्लोक भी कंठस्थ थे, अतः शादी-ब्याह भी करा देते। कष्ट या संकट निवारण के उपाय भी बता देते।

पिताजी ने समय की आवश्यकता को समझते हुए आपको दो विषयों हिंदी और संस्कृत में ऍम.ए. करवा दिया था। व्याकरणाचार्य या पी.एच.डी. का जोड़-तोड़ नहीं बैठ पाया। पिताजी की गद्दी पुराने कानपुर के तंग मोहल्ले हूलागंज में थी, जिसमें गद्दे पर नीचे बैठना पड़ता था। पिताजी के जाने के बाद यानी पिताजी के परलोक सिधारने के बाद, आपने कानपुर के पोश एरिया स्वरुप नगर में एयरकंडिशन शोरूम बनवाया है। बाहर के कमरे में रिसेप्शन ऑफिस था। एक अच्छी रिसेप्शनिस्ट, दो कंप्यूटर ऑपरेटर और दो चपङासी।

अच्छे सोफे और कुर्सी मेज। उमाकांतजी दुकान चलाने के अच्छे जानकार बन गए। सभी काम व्यवसायिक रूप से करते। अलग-अलग कार्य का फीस का बोर्ड भी ऑफिस में लगा है। जैसा की अल्ट्रासाउंड करने वालो के यहाँ वैधानिक चेतावनी लिखी रहती है की यहाँ प्रसव पूर्व लिंग की जानकारी नहीं दी जाती, यह दंडनीय अपराध है, वैसे ही आपके रेट बोर्ड पर नीचे दो नोट लिखे थे: १. यहाँ संतान योग तो बताया जाता है, परन्तु लड़का या लड़की होने का योग नहीं बताया जाता। २. हमारे धर्म शास्त्रों में लड़का होने के गारनटेड उपाय लिखे होने की हमें कोई जानकारी नहीं है।

ज्यादतर उच्च कुलीन और धनाड्य परिवार आपके रेगुलर कस्टमर यानी की जजमान है। फीस एडवांस लेते। अपने स्टाफ को अच्छी सैलरी और सहूलियत देकर खुश रखते, जिससे की आने वाले कस्टमर्स का अच्छे वातावरण में स्वागत कर सके।

भविष्यवाणी के सही होने या न होने के और उपाय के भी फलीभूत होने या न होने के ५०% ५०% चांस होते हैं, क्योंकि वास्तव में ज्ञान तो है नहीं, केवल दुकान चलाने का हुनर है। यह व्यवसाय ऐसा है की अगर भविष्यवाणी सही हो गई या उपाय फलीभूत हो गया तो जजमान मिठाई व दक्षिणा जरूर देने आयेगा और नए कस्टमर भी लाएगा या भेजेगा और अगर भविष्यवाणी नहीं सही हुई या उपाय नहीं फलीभूत हुआ तो हो सकता है की कस्टमर दूसरी दुकान पर ट्रायल के लिए चला जाये और यह आने जाने का क्रम अनवरत चलता रहता है। बस शुरू में थोड़ी सी प्रैक्टिस चल जाये।

उमाकांत बचपन से हमारे सहपाठी और लंगोटीया यार थे। उमाकांत के पिताजी को हम ताऊजी कह कर बुलाते थे। उनसे भी हमें हमेशा पुत्रवत स्नेह मिलता था। उमाकांत के गद्दी गुरु तो उनके पिताजी थे पर इस तरह के रट्टू तोता कर्मकांडियों और अल्पज्ञानी भविष्य वक्ताओं को कानपुरी भाषा में एक गुरु घंटाल की भी जरूरत होती है। हमारे बताये हुए दिशा निर्देशों का उमाकांत बचपन से ही पालन करते और हमें अपना सबसे बड़ा हितैषी मानते और जब से पिताजी की गद्दी संभाली तब से हमको ही अपना दूसरा गुरु या गुरु घंटाल मानते।

आंधी आये या तूफ़ान, दिन में कम से कम एक चाय हमारे साथ बिना पिए ना उनको चैन, ना हमको। चाहे हमारा घर या हो या चाहे उनका घर या ऑफिस हो, उस चाय के दौरान वह पिछले २४ घंटे की उगाल और भड़ास हमें सुना देते। कुछ जरूरी और काम का विचार विमर्श भी होता।

एक दिन एक रईस नौजवान जजमान अपनी तीन वर्ष पुरानी पत्नी के साथ उमाकान्त के यहाँ संतान योग पूछने आये। रिसेप्शन पर फीस जमा कराई। उमाकांत ने दोनों की जन्म कुंडली देखी और कुछ गुणा-भाग कर, नौ गृहों का लेखाचित्र बनाकर और शनि, मंगल आदि शब्दों का प्रयोग करके लगभग ११ माह बाद संतान योग बताया। उसके बाद वह दम्पति पूछने लगा की लड़का होगा या लड़की। उमाकान्त ने फौरन उन्हें रेट बोर्ड के नीचे लिखे नोट याद दिलाये। वह दम्पति बहुत जुझारू और दुनियादार था। पत्नी ने अपना बड़ा सा पर्स खोला और २,००० रूपये के नए नोट की गड्डी टेबल पर रख दी, पूरे २ लाख रूपये। पत्नी ने उमाकांत से कहा की कोई ऐसा बहुत सरल उपाय बताइये, जिसमें कोई अनुष्ठान ना करना पड़े, फिर भी पुत्र रत्न की प्राप्ति हो। पत्नी ने यह कहते हुए नोटों की गड्डी उमाकांत की तरफ खिसका दी। उमाकांत ऊपरी तौर पर तो संयमित रहे, पर दो लाख रूपये के लालच में शरीर के अन्दर हर हिस्से में लार टपक रही थी। एक तरफ ऊपरी मन से उस दम्पति को अपने लिखे हुए नोट या नियमों का हवाला देते रहे, दूसरी तरफ यह सोचते रहे की ऐसा कोई उपाय उन्हें पता भी नहीं है।

नोटों की गड्डी को उमाकांत ने हाथ नहीं लगाया। जजमान पत्नी अपनी बात की रट लगाए थी। पक्की जिद्दी, हठधर्मी। ऐसी ही परिस्थितियों में उमाकांतजी को हमारी यानी अपने गुरु घंटाल की याद आती थी। हमसे विचार विमर्श करने की सोच कर दम्पति से अगले दिन आने को कहा और नोटों की गड्डी ले जाने को कहा। जजमान पत्नी नोटों की गड्डी उठाने को तैयार नहीं और पति महोदय की इतनी हिम्मत नहीं की बीच में कुछ भी बोल सके। आखिर में यह तय हुआ की नोटों की गड्डी जजमान के बैठने वाली साइड में मैज की दराज में रख दी जाये और वे लोग अगले दिन प्रातः १० बजे आये।

दोपहर के भोजन अवकाश में उमाकांत ने हमे फ़ोन लगाया और समस्या बताई और शाम तक समस्या का निराकरण बताने का आग्रह किया। इस तरह के मामलों में उमाकांत और हमारे बीच एक समझौता था कि उमाकांत बिना झिझक फीस का आधा हमें थमा देते थे। ईश्वर ने शायद हमें कुछ एक्स्ट्रा निर्णय बुद्धि दी थी। ऐसा कोई उपाय हमें ज्ञात नहीं था। मोटी फीस डकारने के लिए केवल तुक्का मारना था। हमारे बताये उपाय का परिणाम गलत निकलने पर ज्यादा से ज्यादा क्या होगा, यही होगा की फीस लौटानी होगी। ५० – ५०% चांस थे। अतः यह निर्णय लिया कि उपाय बता देते हैं और उपाय के परिणाम आने की अवधि तक यानी लगभग एक साल फीस की रकम दो लाख रूपये की बैंक में फिक्स्ड डिपोजिट करा देंगे और परिणाम प्रतिकूल आने पर दो लाख रूपये वापस कर देंगे। फिर भी लगभग १४,०००/- रूपये बैंक के फिक्स्ड डिपाजिट पर ब्याज तो हमें मिलेगा ही, यानी की कम से कम ७ - ७,०००/- रूपये दोनों को मिल ही जायेंगे और अगर तुक्का सही बैठ गया तो १,०७,०००/-१,०७,०००/- रूपये के वारे न्यारे।

उपाय भी ऐसा बताना था, जो ना सिर्फ अति सरल हो बल्कि हमारे कुछ विश्वासों से मेल खाता हो। हम लोगों में १०८ का बहुत महत्व है, जैसे की पूजा की माला में १०८ मनके होते हैं, हम नाम या मंत्र की माला फेरते हैं। उसी तरह का उपाय ईश्वर ने हमारे मस्तिष्क में भेजा। हम शाम को उमाकांत के पास गए और चाय के साथ उपाय और फीस के रूपयों का निवेश बता आए।

अगले दिन शोरूम खुलते ही दम्पति हाज़िर हुए। उमाकांत ने उपाय बताया की ६ हफ्तों तक अपने इष्ट को याद कर लगातार १०८ घंटो के लिए घर के बाहर का बल्ब जलाना है यानी की ६ हफ्तों तक हर बुधवार शाम को लगभग ७ बजे बल्ब का स्विच ऑन करना है और अगले हफ्ते सोमवार प्रातः सात बजे फिर इष्ट को याद कर बल्ब का स्विच बंद करना है। इस सरल उपाय से पुत्र रत्न की प्राप्ति होगी। इस से ज्यादा सरल उपाय कुछ हो नहीं सकता था। दम्पति ने प्रसन्नता से विदा ली। उमाकांत ने उसी दिन दो लाख रूपये की बैंक में फिक्स्ड डिपोजिट करवा दी।

लगभग १२ माह बाद दम्पति मय पुत्र रत्न और ढेर सारी महँगी मिठाइयों (बादाम और काजू की बर्फी, बंगाली मिठाई), फल, नमकीन, उमाकांत के परिवार के लिए कपड़े और कीमती उपहार और ५१,०००/- रुपयों की दक्षिणा का पैकेट के साथ उमाकांत के चरणों में नतमस्तक थे, यानी उपाय फलीभूत हुआ। उमा कान्त ने ना ना करते हुए सब स्वीकार किया और बिना आत्म बल के ही तीनों को ढेर सारे आशीर्वाद दे दम्पति के जाते ही उमाकांत ने मिठाई का एक डिब्बा अपने ऑफिस में खाने के लिए और ५१,०००/- रुपयों की दक्षिणा में से ३१,०००/- रुपये कर्मचारियों में बँटवा दिए। बैंक से फिक्स्ड डिपॉजिट तुड़वाई और मय सब सामान और बची हुई दक्षिणा के साथ हमारे पास आ गए। हमें गले लगा कर अपने जीतने का शुभ समाचार सुनाया। सब का आधा-आधा हमारे हवाले किया, चाय पी गई। रुपयों के अलावा बाकी सब कुछ हमने उमाकांत को लौटा दिया। उसके बाद उमाकांत ख़ुशी-ख़ुशी अपने घर को लौट गए।




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