उम्मीदों के हत्यारे

उम्मीदों के हत्यारे

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"सोनू ! ये देखो मैं एक्वेरियम के लिए बहुत ही बेशकीमती मछली लाया हूँ, जाओ अपनी मम्मी को बोल दो।" प्रबुद्ध ने अपने पोते को आवाज देते हुए कहा।

"जी दादाजी ! पर मां घर पर नहीं पापा को बुलाता हूं"

"अनिरुद्ध ! कहाँ है अपर्णा ?"

"आती होगी पापा.. लो आ गई.. अरे कहाँ रह गई थी, देखो पापा कितनी सुन्दर मछली लाए हैं,".." दादू ! इतने बड़े पानी की मछली टैंक में रह जाएगी ?" अनिरुद्ध और सोनू सुनहरी मछली में व्यस्त थे। 

"अरे सोनू ! किस चीज़ की कमी है बेटा हमारे यहां, हम व्यवस्था रखेंगे.. हाँ अपर्णा ! देखो गहरे पानी की है, तुम्हें तो पता ही अनोखी और बेशकीमती चीज़ इकट्ठा करना मेरा शौक है, इतना कमाया है तो शौक पूरे होने चाहिए "प्रबुद्ध के मुँह से उनका एश्वर्य बोल रहा था।

" पापा जी ! ये फॉर्म पर हस्ताक्षर चाहिए, मुझे एक स्कूल में आवेदन देना है शिक्षिका के लिए बी. एड करके बैठी हूं ऐसे ही" अपर्णा ने सुनहरी मछली पर तरस भरी नजर डालते हुए कहा।

" पागल हो अपर्णा ! तुम्हें पता है पापा को तुम्हारा बाहर काम करना पसंद नहीं फिर भी सबका मूड खराब करोगी, किस चीज़ की कमी है ?.. बी. एड की डिग्री का इस्तेमाल सोनू पर करों" अनिरुद्ध ने झाड़ते हुए कहा।

" दादू ! ये सुनहरी मछली तड़प रही है, लगता है मर जाएगी.. देखो ना" सोनू चीखने लगा।

" मरने दो, हम नई लाएंगे बेटा.. टेंशन ना ले तू" प्रबुद्ध ने सोनू को गोद में लेकर पुचकारते हुए कहा।

अपर्णा ने देखा हत्यारों ने एक तरफ उस मछली की जान ले ली दूसरे तरफ उसके उम्मीदों की भी, और कोई शोर ना हुआ.. लग गई वो फिर से हर रोज़ की तरह अपने काम पर।


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