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Neelam Tolani

Drama

3  

Neelam Tolani

Drama

उम्मीद...

उम्मीद...

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काका...ओ ..काका ...sss

कहाँ पर हो ?

अरी बिटिया... आ जाओ ! इधर रसोई में ही...

देखो गरमा गरम फुल्के बना रहा हूं, तुम भी खाकर जाना।

(रश्मि अंदर आते हुए)

आप भी न, काका !जब तक काकी थी, ठीक था... दो-दो कमाऊ बेटे हैं। फिर नालायक भी नहीं है ..

उनके पास क्यों नहीं चले जाते हो? न हो तो,छह छह महीने बारी बारी से रह लो दोनों के पास, यह क्या सारा काम खुद करना है।

( काका मुस्कराते हुए)

जिसे तुम काम कह रही हो ना ,यह हमारी जीवनदायिनी ऊर्जा है। क्या कहते हैं... तुम्हारी भाषा में हाँ 'किक' मिलती है इससे...

सुबह से योगा,हँसोड़ क्लब ,पत्र पत्रिकाएं, खाना बनाना, यह सब मेरे शरीर की मशीन को चलाते रहते हैं। जिंदगी भर हथेलियों का रुख जमीन की तरफ रखा है, अब आसमान की तरफ नहीं होगा। फिर यह याद रखो 'नाउम्मीदी' जो है उम्मीद से ही आती है। उम्मीद है, कि कुछ गड़बड़ हुआ... तो बच्चे संभाल लेंगे इसे ताउम्र बने रहने दो बेटा !

ले ले ..गरमा गरम दाल फुल्का खा कर देख।


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