प्रॉमिस
प्रॉमिस
सुधा, मेरी जीवन सुधा, देखो आज भी बिल्कुल समय से आ गया हूं। ठीक दो बजे, दीवार से लगी तुम्हारी पसंदीदा टेबल पर। कॉफी का आर्डर भी दे दिया है ।
पेंतालिस वर्षों का लंबा अंतराल बीत गया, यहां आते आते।
यह जगह भी तो चाय की टपरी से बढ़ते बढ़ते कॉफी हाउस बन गई है। जीवन के, यौवन के अनमोल पलों की साक्षी है यह जगह।
शादी के बाद मेरे संयुक्त परिवार को तुमने इस तरह अपनाया, अपना सारा समय... सुबह की चाय से, माँ बाबूजी की देखरेख, सोने तक, पल-पल समर्पित कर दिया। पहले तो मैं भी खफा था.. तुमसे.. मुझसे शादी की है या घर से ?
तब यह युक्ति निकाली थी मैंने ..यह छोटी सी टपरी मंदिर के भी पास है, मेरे दफ्तर के भी पास।
मैं लंच टाइम में और तुम मंदिर के बहाने रोज दोपहर दो बजे यही साथ साथ में, कॉफी के साथ यादों के खजाने भरते रहे ।अब मैं भी रिटायर और तुम, तुमने तो जिंदगी से ही रिटायरमेंट ले लिया।
पर देखो मैं अब भी अपना वादा निभा रहा हूं ।रोज दो बजे यही आता हूं, पुरानी यादों की जुगाली करने।
बस तुम्हारे हिस्से की कॉफी भी मुझे पीनी पड़ती है ..चलो समय हो गया, कल मैं फिर आऊंगा....सुधा।