आँसू
आँसू
सुचिता अस्पताल के रूम नंबर 201 में बैठी बार-बार आंखों में उमड़ आये आंसुओं को पोछ रही थी,
पर आंसू थे, जो थमते नहीं थे । दो दिन पहले ही उस की बारह वर्षीय बेटी पलक की एक्सीडेंट में मौत हो गई थी। सामने रंजीता थी, आंखों पर पट्टी लगाएं, आज उसकी आंखों की पट्टी खुलने वाली थी ।
रंजीता की मां ज्योति :मेम साहब यह इतना बड़ा संदूक क्यों लाए हो ?इसमें क्या है ?
सुचिता: ज्योति यह मेरी बेटी पलक की अंतिम इच्छा है... ज्योति: हम समझे नहीं मेम साहब !
सुचिता:तुम तो जानती हो ज्योति, पलक को पढ़ने का कितना शौक था ..सारा दिन पुस्तकें पढ़ती थी और रंजीता को भी तो साथ बिठाकर कहानियां सुनाती रहती थी।
और फिर तुम भी तो कहती थी कि काश रंजीता देख पाती तो उसे तुम पलक जैसे ही खूब पढ़ाती।
हाँ ज्योति !!इसमें पलक की सारी पुस्तके हैं ।यह पुस्तकें अब तुम्हारी बेटी के पास जीवित रहेगी मेरी बेटी की निशानी बनकर।।
ज्योति: पर मेमसाहब पलक बिटिया को तो यह अपनी जान से भी प्यारी थी।
सुचिता: हां ज्योति, तभी तो सारी पुस्तकें मैं तुम्हें दे रही हूं। मरने के पहले पलक अपनी आंखें रंजीता को दे गई। अब मैं पलक का सपना रंजीता के द्वारा देखूंगी..
इसकी सारी पढ़ाई का खर्च में उठाऊंगी.. और इसे बड़ा अफसर बनाऊंगी।।
आज दोनों ही माँए रो रही थी।पता नही खुशी में या दुःख में।ये परिस्थितियां भी कभी कभी बहुत अजीब होती है।
और आँसू, दुःख, सुख दोनों के सांझा।एक ही सिक्के के दो पहलू।
