36 गुण
36 गुण
पंडितजी:राम ! राम ! ठकुराईन !
ठकुराईन:राम राम पंडित जी ! आज इधर,कैसे दर्शन दिए ।
पंडित:अरे मैंने सोचा, अपनी संध्या बिटिया भी उन्नीस
की हो चली है, ब्याह नहीं करना क्या उसका ?
पीछे एक बहुत अच्छा रिश्ता आया है, तुम कहो तो बात बढ़ाएं।
ठकुराईन: ना, ना !तुमसे ना करवाना कोई रिश्ता !पिछले साल सुमित्रा की पोती और जग्गू के बेटे का रिश्ता करवाया था तुमने.... दोनों ही कर्म कुट रहे हैं।
पंडित:ये तो कर्मो का लेखा है। इसमें मेरी क्या गलती ?
सुमित्रा :हमारी पोती बहुत लाड़ प्यार से पली है। हम कोई काम नहीं करवाते उससे। सुबह भी देर से उठे हैं। उसे ऐसा घर बताना, की पूरे छत्तीस गुण मिले, और राज करे।"
एक बात वताओ ठकुराईन !
अगर मैंने छत्तीस गुण मिलाए,
लड़की खुद आलसी, निकम्मी, दूजे पर आश्रित। छत्तीस गुण मिलाने से लड़का भी वैसा ही मिलेगा, ये तो बनी बात न की समान गुण ही मिलेंगे।
यही बात जग्गू की बहू के साथ है जैसा लड़का वैसी लड़की। राज ही तो कर रहे हैं।
मेरी मानो, तो यह कुंडली -वुण्डली कुछ ना होता, इन के फेर में ना पड़ो... सीता मैया को भी वनवास जाना पड़ा था, तुम तो घर परिवार और लड़का देखो और अपने बच्चों को लायक बनाओ।
एक ही पल में सैकड़ों बच्चे पैदा होते हैं तो क्या सब की किस्मत एक जैसी होती है ? यह सब तो कर्मों का हिसाब है ठकुराइन ! अच्छा चलता हूँ।
राम राम !