प्रश्नचिन्ह
प्रश्नचिन्ह
(रात दस बजे का वक्त सोने की तैयारी )
नवल अपनी पत्नी सोनिया का हाथ पकड़कर..
नवल :सोनू तुम बहुत अच्छी हो, तुम्हें पाकर मैं धन्य हो गया। आज तुम ना होती, तो ना मैं बीमार मां को गांव से ला पाता ना वो इतनी जल्दी स्वस्थ हो पाती।
घर, नौकरी, मां, सब कुछ कितनी अच्छी तरह संभालती हो तुम।
सोनिया :वह मेरी भी तो मां है नवल, क्यों ऐसा बोल रहे हो ?
नवल ;थैंक यू सोनिया !
सोनिया: सुनो एक बात कहनी थी,
नवल:बोलो ना प्लीज..
सोनिया :तुम तो जानते हो, मैं अपनेमम्मी पापा की इकलौती संतान हूं, पापा के जाने के बाद मम्मी बहुत अकेली हो गई है। फिर उम्र का भी तकाजा है।
क्यों ना हम उन्हें यहां ले आए, उनका भी मन लग जाएगा। नवल :सोनू यार! कैसी बात कर रही हो ?
दामाद के घर जाकर भी कोई रहता है क्या ? फिर हमारा रूटीन भी डिस्टर्ब होगा...
उन्हें कहना कभी कभी यहां आ जाया करो.. ना हो तो कोई चौबीस घंटे वाली नौकरानी रख ले।
सोनिया :पर वह तुम्हारी भी तो मां हुई।
नवल:सो जाओ सोनिया.. यह सब बातें सिर्फ तुम्हारी कहानियों में अच्छी लगती है।
सोनिया मन ही मन सोच रही थी, यह कैसा एक तरफा रिश्ता है मेरी मां भी तो नवल की मां हुई।
यह मां पापा का गणित, प्रश्न चिन्ह बनकर ताउम्र सोनिया को सालता रहेगा।
