खेल
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'नेशनल हॉकी ग्राउंड'जमशेदपुर पर भारत और पाकिस्तान के बीच लड़कियों का हॉकी फाइनल मैच खेला जा रहा था।
खेल अपने चरम पर था ।भारत को जीतने के लिए सिर्फ एक गोल चाहिए था। रिया (उपकप्तान) मनजीत( कप्तान) को बाल पास करने का इशारा कर रही थी, पर मनजीत लगातार बाल को गोल कोर्ट की ओर धकेल रही थी।
एक खेल ग्राउंड पर था, एक मनजीत के मन में चल रहा था।
अगर रिया को मैंने पास दिया,और उसने गोल किया तो , रिया 'वुमन ऑफ सीरीज' बन जाएगी। और नहीं दिया, तो शायद हम जीत ना पाए।
क्या करूं ?क्या ना करूं ?मैं मनजीत गोते खा रही थी ।
मैच खत्म होने में मात्र 1 मिनट बचा था, अचानक मनजीत के दिमाग में कोच के शब्द कौंधे.."खेल सिर्फ अपने दम पर नहीं, खेल भावना से खेला जाता है हार-जीत उसके बाद आती है हमारी सर्वप्रथम प्राथमिकता हमारा देश है" और मनजीत ने तुरंत बाल रिया को पास दे दी।
और ,और ये गोल !
भारत फाइनल जीत चुकाथा। एक बार फिर खेल की जीत हुई और स्वार्थ हार गया।
